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जीवन में एक बात याद रखिए कि जैसे ही क्रोध आया, आप दिशाहीन हो जाएंगे। वैसे मनोवैज्ञानिक तो कहते हैं क्रोध में मनुष्य आधा पागल हो जाता है और पागल उसी को कहा जाता है जिसे अपनी दिशा मालूम न हो। गुस्से में धीरे-धीरे सदगुण भी खत्म होने लगते हैं। क्रोध आता कब है, जब हमारी कामनाओं की पूर्ति न हो। क्रोध करने वाला हर व्यक्ति अपने इस दुर्गुण के पक्ष में तर्क देता है कि वैसे तो हमें क्रोध नहीं आता, लेकिन सामने वाले ने कुछ ऐसा किया कि आ गया..। शास्त्रों में एक शब्द आया है- ‘क्रोधाग्नि’। मतलब गुस्से को आग कहा गया है। ऐसी आग जिसमें क्रोध करने वाला खुद भी जलता है, दूसरों को भी जलाता है। जब क्रोध की आग जलती है तो धुआं भी पैदा होगा, जिसका नाम है बेचैनी। निराशा, तिरस्कार, पश्चाताप ये सब उस धुएं के रूप हैं। एक बात ध्यान रखिए कि फायर अलार्म आग से नहीं बजता, धुएं के कारण उसमें आवाज होती है। केवल लपटें उठती रहें और धुआं न हो तो शायद यह सिस्टम काम नहीं करेगा। ऐसे ही हमें अपने शरीर में भी विवेक रूपी फायर अलार्म लगा लेना चाहिए। क्रोध की अग्नि कभी-कभी सबके भीतर जल ही जाती है, लेकिन उसके बाद उठने वाली बेचैनी, निराशा और पश्चाताप के धुएं से भीतर का फायर अलार्म बज जाना चाहिए। मनुष्य हैं तो व्यवस्था चलाने के लिए कभी-कभी क्रोध जरूरी भी हो जाता है, लेकिन बाद के संताप को मिटाने के लिए आपका धैर्य और विवेक ही काम आएगा..।
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