जिस तरह से एलन मस्क ने ट्विटर पर टेकओवर किया है, उससे हमें पता चलता है कि दुनिया के तौर-तरीके कैसे हैं। इससे यह भी खबर मिलती है कि नियम-कायदे उस गुजरे जमाने की ओर लौट रहे हैं, जब कम्पनियां देशों को अपने इशारों पर नचाती थीं, देश कम्पनियों को नहीं। सूचना प्रौद्योगिकी ने कई चमत्कार किए हैं। उसने सूचनाओं का लोकतंत्रीकरण किया है। साथ ही प्रबंधन की पोजिशनों को भी बढ़ा दिया है।
पहले मैन्युफेक्चरिंग ही इकोनॉमी का आधार हुआ करती थी और व्हाइट कॉलर व ब्लू कॉलर जॉब्स के बीच में स्पष्ट विभाजन होता था। सूचना प्रौद्योगिकी ने यह किया है कि इसने कोड लिखने वाले मेहनतकश मध्यवर्गियों को यह अहसास कराया कि वे व्हाइट कॉलर मैनेजमेंट का हिस्सा हैं। आईटी इकोनॉमी पहले तकनीक मुहैया कराती थी, अब वह सर्विस इंडस्ट्री बन गई है, लेकिन उसमें होने वाली भर्तियां तकनीक वाली दरों पर ही हैं। इससे टेक-कम्पनियां नौकरशाही के नर्क में तब्दील हो रही हैं।
जरा सोचें, एलन मस्क ने कुछ ही दिनों पूर्व ट्विटर का स्वामित्व पाया है और वे अभी तक उसके 50 फीसदी से ज्यादा स्टाफ की छंटनी कर चुके हैं। इसके बावजूद आपका ट्विटर ठीक से काम कर रहा है ना? आपने आखिरी बार गूगल को कोई नई चीज करते हुए कब देखा था? जी-मेल और गूगल-मैप के बाद उसने ऐसा कौन-सा प्रोडक्ट दिया है, जो डेढ़ लाख कर्मचारियों की वर्कफोर्स को न्यायोचित ठहरा सके?
फेसबुक पर आपने ऐसे कौन-से अनूठे फीचर्स देख लिए, जो बताते हों कि वहां 70 हजार लोग काम करते हैं? कहीं तो कुछ गड़बड़ है। तकनीक ने तीन काम किए थे। वह उत्पादन की दरों और सटीकता को बढ़ाकर अभूतपूर्व स्तरों पर ले आई थी। उसने रोजगारों में भारी कटौती कर दी थी। और वह इनोवेशन की गति को बढ़ाकर नई प्रौद्योगिकी का पथ प्रशस्त करती थी।
यही कारण है कि बीते सौ सालों में हम उससे पहले के दस हजार सालों की तुलना में अधिक प्रगति कर चुके हैं। लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी ने यह नहीं किया है, उलटे वह अपनी राह भटक गई है। आज आईफोन14 वही करता है, जो आईफोन1 उससे बेहतर तरीके से कर सकता था। नोकिया जैसे मार्केट-लीडर्स विलुप्त हो गए हैं। जब आप एक जगह आकर रुक गए हों और इसके बावजूद एकाधिकार कायम रखना चाहते हों तो क्या करेंगे? उत्तर सरल है- आप सामाजिक और राजनीतिक नियंत्रण कायम करना चाहेंगे।
जब आप एक जगह आकर रुक गए हों और इसके बावजूद एकाधिकार कायम रखना चाहते हों तो क्या करेंगे? आप सामाजिक-राजनीतिक नियंत्रण कायम करना चाहेंगे। टेक-कम्पनियां यही कर रही हैं।
21वीं सदी में टेक-कम्पनियां ठीक यही कर रही हैं। उनका फॉर्मूला ये है कि लोगों को इतना प्रभावित कर दो कि वो आपकी कही हर बात मानने लगें। उन तक पहुंचने वाली सूचनाओं को फिल्टर कर दो। वे अपने यूजर्स पर वामपंथी झुकाव वाले विचार थोपती हैं, लेकिन बोलने की आजादी से उन्हें महरूम कर देना चाहती हैं। यह दोहरा मानदंड नहीं तो क्या है?
भारत और अमेरिका में हिंसक वारदातों के दौरान लोगों को भड़काने वाले अकाउंट्स को ट्विटर ने सस्पेंड नहीं किया, लेकिन प्रेसिडेंट ट्रम्प का अकाउंट हटा दिया। यह तो साफ है कि पुराने तंत्र में जिनके न्यस्त स्वार्थ थे, वे अब बेचैन हो रहे हैं। अगर मस्क ने ट्विटर को मुनाफे की स्थिति में ला दिया तो आईटी जगत के मेहनतकशों का महिमामंडन बंद हो जाएगा।
अपनी विचारधारा के साथ सुसंगत व्यक्ति को वेरीफाई करके उसे मान्यता देने के दिन लदेंगे, क्योंकि यह फर्जी डिग्री देने की तरह है। फेसबुक की खस्ता हालत देखकर देर-सबेर शेयरधारकों द्वारा पूछा ही जाएगा कि अगर मस्क हजार लोगों के साथ कम्पनी चला सकते हैं तो इतने लोगों को रखकर हमारे मुनाफे में सेंध क्यों लगाई जा रही है? अगर मस्क ट्विटर में सफल हुए तो यह मौजूदा यथास्थिति के लिए बड़ा खतरा होगा। भारत को भी इस पर पैनी नजर बनाए रखना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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