जब भी फ्रंटलाइन वर्कर शब्द मन में आता है तो डॉक्टर, नर्स और फिर उनकी मदद करने वाले हॉस्पिटल स्टाफ का ख्याल आता है। कितने लोगों ने अखबारों और सोशल मीडिया में उन कर्मियों की तस्वीरें देखी होंगी, जो पीठ पर केमिकल का टैंक लादकर, स्प्रे से बिल्डिंग सैनिटाइज करते हैं। लेकिन शायद ही किसी को उनका ख्याल आता है, जो बिल्डिंग सैनिटाइज करते हुए हानिकारक रसायनों का सामना करते हैं।
उनकी परेशानी देखकर गोवा के फटोरडा के डॉन बोस्को कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन के छात्रों ने अंतिम वर्ष के प्रोजेक्ट के जरिए उनकी समस्या हल करने का फैसला लिया। विवेक खादिलकर, सईल कामत और दृष्टि नाइक ने पहले कई रिसर्च पेपर में मौजूदा नतीजे तलाशे। उन्होंने पाया कि रोबोटिक सैनिटाइजेशन डिवाइस पर काफी काम हो चुका है, लेकिन ऐसा कोई डिवाइस नहीं है जिसमें केमिकल स्प्रे के साथ अल्ट्रावायलेट किरणों से भी सैनिटाइजेशन होता हो।
इस तरह उन्होंने इसे अपना अंतिम वर्ष का प्रोजेक्ट बनाया, जब पूरा देश लॉकडाउन मोड में था। पहला लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी उन्होंने प्रोजेक्ट जारी रखा, जिसका नतीजा है एक रोबोट जिसे 400 मीटर की दूरी से चला सकते हैं। डिवाइस केमिकल स्प्रे और अल्ट्रावायलेट लाइट, दोनों से सैनिटाइज कर सकता है। अब वे इसे पेटेंट कराने की योजना बना रहे हैं।
इसे बनाने में 95 हजार रुपए खर्च हुए। गोवा के विज्ञान और तकनीक विभाग ने प्रोटोटाइप बनाने में खर्च हुई राशि वापस करने के लिए उनके प्रोजेक्ट को चुना है। वहीं गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने रोबोट देखने के बाद इसके संभावित इस्तेमाल के लिए स्वास्थ्य सेवा संचालनालय के अधिकारियों को इसे दिखाने की अनुमति दी है। तीनों कल तक सिर्फ कॉलेज छात्र थे, आज अचानक स्थानीय हीरो बन गए हैं। दिलचस्प यह है कि ऐसे आविष्कार छोटे राज्यों से आ रहे हैं, जहां कोविड संबंधी समस्याएं अन्य राज्यों जितनी हावी नहीं हैं।
याद रखें कि सफलता के रास्ते का हुनर से कोई संबंध नहीं है। जब आप क्षमता के एक स्तर के पार चले जाते हैं, हुनर शब्द बेमानी हो जाता है। मायने यह रखता है कि आप उस हुनर से करते क्या हैं। एक बिंदु के बाद आपका रवैया ही आपको नई ऊंचाई पर ले जाकर वहां बनाए रखता है। क्योंकि हुनर से अहम पैदा होता है। हुनर एक हद तक ही समस्याएं सुलझाता है। आमतौर पर हुनरमंद क्रिकेटर नहीं जानते कि बाधा का सामना कैसे करें।
क्योंकि हुनर होने के कारण उन्हें सफलता के लिए उतना संघर्ष नहीं करना पड़ा। मुझे याद है, हर्षा भोगले ने बताया था कि विनोद कांबली के नाम स्कूल के समय में सचिन के साथ नाबाद 600 रन बनाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। लेकिन एक का कॅरिअर जल्द खत्म हो गया और दूसरा क्रिकेट का भगवान कहलाया। ऑस्ट्रेलियाई सेना में जब वे खास टीम बनाते हैं तो कैंडिडेट का कॅरिअर रिकॉर्ड देखते हैं। जो कभी असफल न हुआ हो, उसे नहीं चुनते।
उनके मुताबिक अगर व्यक्ति कभी असफल नहीं हुआ तो उसे नहीं पता होगा कि वापसी कैसे करें। इस तरह वे ऐसे लोग चुनते हैं जिन्होंने असफल होकर फिर वापसी की हो क्योंकि यही वह स्थिति होती है जहां आपके काम की नीति और रवैया आपको बचाते हैं, जो हुनर से कहीं ज्यादा जरूरी है। फंडा यह है कि क्षमता और हुनर पहला और कभी-कभी दूसरा दरवाजा खोलते हैं लेकिन सफलता का आखिरी दरवाजा खोलने के लिए आपमें वापसी करने का रवैया और वहां बने रहने के लिए जुनून होना चाहिए।
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