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योगेन्द्र यादव का कॉलम:कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण गांव और कस्बों में पहुंचा, यह भले बड़े शहरों से कम हो, लेकिन नुकसान ज्यादा करेगा

2 वर्ष पहले
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योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट सेफोलॉजिस्ट और 
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
Twitter :@_YogendraYadav - Dainik Bhaskar
योगेन्द्र यादव, सेफोलॉजिस्ट सेफोलॉजिस्ट और अध्यक्ष, स्वराज इंडिया Twitter :@_YogendraYadav

कोरोना की दूसरी लहर किसान आंदोलन के नेतृत्व के सामने दोहरी चुनौती पेश करती है। एक बाहरी चुनौती है सरकारी हमले की। दूसरी चुनौती अंदरूनी है, बीमारी से नुकसान की। एक तरफ हर आपदा में अवसर ढूंढने वाली यह सरकार कोरोना का हव्वा फैलाकर किसान आंदोलन का सफाया करने की योजना बना रही है।

दूसरी तरफ कोरोना के खतरे से आंख मूंदकर आंदोलन को बदस्तूर चलाए रखने से बीमारी फैलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए आने वाले कुछ समय में संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व को बहुत संभल कर अपनी रणनीति बनानी होगी।

पिछले सप्ताह कुछ खबरें आईं कि केंद्र और हरियाणा सरकार मिलकर एक ‘ऑपरेशन क्लीन’ की योजना बना रहे हैं। इससे किसान आंदोलन का सफाया करने की योजना है। अगर पहली चुनौती सरकारी हमले से बचाव की है तो दूसरी चुनौती संक्रमण और बीमारी से बचाव की है। सरकार द्वारा महामारी का एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का दुखद नतीजा यह हुआ है कि आंदोलनकारी किसानों को कोरोना की हर बात में षड्यंत्र की बू आने लगी है।

सरकार इस बीमारी का हव्वा खड़ा करने की कोशिश करती है तो उसकी प्रतिक्रिया में किसान सोचते हैं कि यह बीमारी है ही नहीं। सरकार की साख इतनी गिर गई है कि कोविड वैक्सीन लगाने की अपील का भी गांवों में विरोध हो रहा है। क्योंकि कोरोना की पहली लहर का ज्यादा असर गांव देहात पर नहीं हुआ, इसलिए किसान को यह भ्रम हो चला है कि किसान इस बीमारी से बचा रहेगा।

इसी विश्वास के चलते कुछ किसान नेता भी कोरोना के खतरे के बारे में हल्की फुल्की बात कर देते हैं, उसे सुनकर साधारण किसान और भी लापरवाह हो जाते हैं। लेकिन एक गंभीर नेतृत्व सच के प्रति आंख नहीं मूंद सकता। सच यह है कि कोरोना कोई प्लेग जैसी जानलेवा महामारी तो नहीं है, लेकिन एक गंभीर संक्रमण है जिससे हजारों जाने जा चुकी हैं।

सच यह है कि दूसरी लहर में अब यह संक्रमण गांव और कस्बों में भी प्रवेश कर रहा है। वहां संक्रमण बड़े शहरों से कम भी हो, तब भी नुकसान ज्यादा होगा चूंकि देहात में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बहुत जर्जर है। सच यह है कि किसानों के शरीर में कोई विशेष प्रतिरोधक क्षमता नहीं है। उन्हें भी वही सब सावधानियां बरतने की जरूरत है जो बाकी सब लोगों को।

इन दोनों चुनौतियों को मद्देनजर रखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने एक समझदार और संतुलित एलान किया है कि सरकार के ‘ऑपरेशन क्लीन’ का मुकाबला किसान आंदोलन के ‘ऑपरेशन शक्ति’ से किया जाएगा। इसके तहत पुलिस कार्रवाई की संभावना को खत्म करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने सभी किसानों को अपने मोर्चे पर वापस आने का आह्वान किया है।

पंजाब के भारतीय किसान यूनियन (उग्राहा) ने पहले ही हजारों किसानों को 21 अप्रैल से टीकरी बॉर्डर पर वापस लाने की योजना बना रखी है। बाकी संगठनों ने भी 24 अप्रैल से कटाई के लिए घर वापस गए किसानों को दिल्ली के मोर्चों पर वापस आने का आह्वान किया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बिना लाग लपेट के सरकार को ‘ऑपरेशन क्लीन’ जैसी किसी भी हरकत से बाज आने की चेतावनी दी है।

लेकिन इसके साथ ही साथ संयुक्त किसान मोर्चा ने कोरोना बीमारी के संक्रमण की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए इससे बचाव के पुख्ता इंतजाम भी शुरू कर दिए हैं। दिल्ली के इर्द-गिर्द चल रहे सभी मोर्चों पर ‘प्रतिरोध सप्ताह’ मनाया जाएगा, जिसके तहत कोरोना से बचने के बारे में सभी आंदोलनकारियों को सूचना दी जाएगी। सभी मोर्चों पर मेडिकल कैंप को मजबूत किया जा रहा है ताकि बीमारी के लक्षण होते ही तुरंत इलाज किया जा सके। सभी मोर्चों पर वैक्सीन के कैंप भी लगाए जा रहे हैं। मोर्चे ने तय किया है कि कोरोना की रोकथाम में वह प्रशासन के साथ सहयोग करेगा।

तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ शुरू हुआ यह ऐतिहासिक किसान आंदोलन एक साथ कई मोर्चों पर लड़ाई लड़ने की ऐतिहासिक जिम्मेवारी भी स्वीकार कर रहा है। काश बड़ी कुर्सियों पर बैठे बड़े नेता भी इन आंदोलनकारियों जैसी जिम्मेवारी दिखा सकते!

(ये लेखक के अपने विचार हैं)