• Hindi News
  • Opinion
  • Ashutosh Varshney's Column Freedom To Decide Abortion Will Be More In Line With The Dreams And Aspirations Of The Woman

आशुतोष वार्ष्णेय का कॉलम:गर्भपात के निर्णय की स्वतंत्रता स्त्री के स्वप्नों और आकांक्षाओं के अधिक अनुरूप होगी

एक वर्ष पहले
  • कॉपी लिंक
आशुतोष वार्ष्णेय, ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में प्रोफेसर - Dainik Bhaskar
आशुतोष वार्ष्णेय, ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में प्रोफेसर

क्या लोकतंत्र में कोई अधिकार देकर वापस लिया जा सकता है? मौजूदा अंतरराष्ट्रीय-विमर्श में यह प्रश्न एक बौद्धिक और राजनीतिक चिंता का विषय बन गया है। इसे डेमोक्रैटिक बैकस्लाइडिंग कहा जा रहा है, जिसमें भले लोकतांत्रिक व्यवस्था ध्वस्त न हो, लेकिन वो क्रमश: कमजोर जरूर होती चली जाती है। 2016 में डोनाल्ड ट्रम्प के प्रेसिडेंट बनने के बाद से अमेरिका का नाम डेमोक्रैटिक बैकस्लाइडिंग या लोकतांत्रिक फिसलन की बहस में बारम्बार आया है।

लेकिन अभी तक इस बहस का अमेरिकी पहलू कमोबेश इस तक सीमित रहा था कि नस्ली रूप से अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाए जाएं या नहीं, लेकिन ये बहस वोटिंग के अधिकार तक नहीं पहुंची थी। बीते दिनों जब अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के रो वर्सेस वेड केस में दिए गए गर्भपात के अधिकार को समाप्त करने का निर्णय लिया तो यह बहस और व्यापक हो गई, क्योंकि अब यह मतदाताओं के दमन से आगे बढ़कर नागरिक अधिकारों के दायरे में प्रवेश कर चुकी है।

अदालत ने 5-4 के बहुमत से फैसला सुनाया कि अब अमेरिका में महिलाओं को गर्भपात का अधिकार नहीं होगा। राज्यों के विधान-मंडल चाहें तो इस बारे में स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं। लेकिन अदालत के निर्णय के चंद ही घंटों के बाद अनेक राज्यों में गर्भपात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अलबत्ता डैमोक्रेट सरकारों वाले राज्य गर्भपात के अधिकार की रक्षा करने का भरसक प्रयास करेंगे, लेकिन अपेक्षा जताई जा रही है कि अमेरिका के पचास में से लगभग आधे राज्य अदालत के फैसले का समर्थन करेंगे।

यह लोकतांत्रिक फिसलन का नया आयाम है, जिसमें अब अधिकारों को वापस लिया जा रहा है। चुनाव-दर-चुनाव बहुसंख्य अमेरिकियों ने गर्भपात के अधिकार का समर्थन किया है, वैसे में अदालत के फैसले को सामूहिक आकांक्षा का हनन ही कहा जाएगा। तब भी यह इस निर्णय की मानक आलोचना नहीं हो सकती, क्योंकि अदालतें लोकप्रिय-धारणा से नहीं चलतीं, वे संवैधानिक औचित्य से संचालित होती हैं। 1973 का अदालती आदेश 14वें संविधान संशोधन (1868) पर आधारित था।

अदालत का कहना था कि यह संविधान संशोधन स्वतंत्रता और निजता की रक्षा करता है, जिसमें राज्यसत्ता हस्तक्षेप नहीं कर सकती। यानी भले ही 1787 में निर्मित अमेरिकी संविधान में गर्भपात का उल्लेख न हो, लेकिन 1868 का संविधान संशोधन गर्भपात के अधिकार की रक्षा करने वाला था। क्योंकि नागरिक स्वतंत्रता में संतान उत्पन्न करने या न करने जैसे निजी निर्णय भी शामिल होते हैं। अलबत्ता 1973 में अदालत ने यह भी कहा था कि यह आदेश परम नहीं है और ‘संभावित जीवन की रक्षा’ के दृष्टिगत उसकी सीमाएं हैं।

यह तर्क उस अदालती आदेश का आधार बना, जिसमें सरकार को गर्भावस्था के पहले तीन माह में हस्तक्षेप के अधिकार से वंचित किया गया था, लेकिन राज्यसत्ता तीसरी तिमाही में गर्भपात पर प्रतिबंध लगा सकती थी, जब ‘भ्रूण की जीवन-क्षमता’ संदेह से परे हो गई हो। यह समूची न्यायिक तर्कणा अब ध्वस्त हो चुकी है। अदालत का मत है कि 14वें संशोधन का निजता का अधिकार अब प्रासंगिक नहीं है, क्योंकि गर्भपात न केवल गर्भवती महिला का मामला है, बल्कि यह एक अजन्मे जीवन से भी जुड़ा मसला है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान में गर्भपात का उल्लेख नहीं किया गया है, न ही यह अमेरिकी इतिहास और परम्परा के साथ सुसंगत है। दूसरे शब्दों में, यह संवैधानिक से ज्यादा राजनीतिक व विधायी मामला है। लेकिन कोई भी संविधान यह पूर्वानुमान नहीं लगा सकता कि आने वाले कल में नागरिक-अधिकार कैसे होंगे। 1787 के संविधान और 1868 के संशोधन में गर्भपात का उल्लेख इसलिए नहीं किया गया था, क्योंकि तब महिलाओं की राजनीति में स्वायत्त भूमिका नहीं थी।

उन्हें तो मताधिकार ही 1920 में जाकर मिला। लेकिन आज हालात बदल गए हैं तो अधिकारों को भी बदलना ही होगा। दूसरे, गर्भपात का अधिकार समाप्त करने पर बलात्कार या कौटुम्बिक-व्यभिचार जैसी स्थितियों का क्या होगा? एक महिला को बलात्कारी का शिशु गर्भ में क्यों लेकर घूमना चाहिए? गर्भपात का अधिकार समाप्त करने से तो महिलाएं अनचाहे शिशुओं को जन्म देने के लिए बाध्य हो जाएंगी। सर्वोच्च अदालत इस महत्वपूर्ण बिंदु पर मौन है।

बच्चे को जन्म देना स्त्री के आर्थिक व सामाजिक जीवन से जुड़ा प्रश्न है। आज महिलाएं सार्वजनिक जीवन में बड़ी संख्या में शामिल हो रही हैं। हो सकता है, वो आज गर्भपात करवाएं, पर भविष्य में मां बनना चाहें।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)