राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि भाजपा हमेशा चुनाव के मूड में ही रहती है। जवाब में लोग फिर सवाल पूछते हैं कि कांग्रेस ऐसा क्यों नहीं करती? उसे ऐसा करने से किसने रोक रखा है? हालाँकि दोनों ही बातों के लम्बे और गहरे अर्थ हो सकते हैं।
भाजपा से पूछा जा सकता है कि पाँचों साल चुनाव-चुनाव ही चिल्लाते रहेंगे तो जनता के काम कब करेंगे? कांग्रेस से पूछा जा सकता है कि आप ने अगर पाँचों साल काम ही किया था तो ज़्यादातर चुनावों में हार क्यों जाते हो? सबके अपने अलग-अलग कारण हैं। होते ही हैं।
फ़िलहाल नौ राज्यों में होने वाले चुनावों के लिए भाजपा ने बैठकें शुरू कर दी हैं। दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सोमवार से बैठक हो रही है। इसमें रणनीति बनाई जाएगी। अपने-परायों की पहचान की जाएगी जो कि पहले से है ही।
अलग-अलग प्रदेशों के प्रभारी बनाए जाएँगे, प्रभारियों के पीछे भी प्रभारी लगाए जाएँगे, जिनकी निगरानी में इन राज्यों में दिल्ली की रणनीति को शब्दश: लागू कराया जाएगा। फ़िलहाल सबसे पहले कार्यकारिणी द्वारा मौजूदा पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्ढा का कार्यकाल बढ़ाया जाएगा। उनका कार्यकाल 20 जनवरी को समाप्त होने जा रहा है जिसे आगामी लोकसभा चुनावों तक बढ़ाया जा सकता है।
दूसरी तरफ़ कांग्रेस को देखिए। नौ राज्यों के चुनावों को लेकर इधर कोई हरकत दिखाई नहीं दे रही है। फ़िलहाल राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चल रही है और उससे इतर न तो किसी कांग्रेसी को कुछ सोचने की फुरसत है और न ही किसी को कुछ करने की इजाज़त है। यही हाल रहा तो ज़्यादातर राज्यों में कांग्रेस का गुजरात जैसा हाल होने का ख़तरा बना रहेगा।
वैसे फ़िलहाल तो यही कामना की जा सकती है कि मल्लिकार्जुन खडगे साहब के हाथ में पार्टी की कमान दी गई है तो वो जो करेंगे या करवाएँगे, वो ठीक ही होगा। फ़िलहाल तो पार्टी के तमाम बड़े नेताओं का यात्रा पर ही फ़ोकस है। समझा जाता है कि इस यात्रा से पार्टी के कार्यकर्ताओं में नया जोश आया होगा। अगर यह सही है तो चुनाव में कांग्रेस को इसका कुछ तो फ़ायदा ज़रूर होगा।
जिन नौ राज्यों में चुनाव की तैयारियाँ चल रही हैं उनमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भी शामिल हैं। इन तीन राज्यों को इसलिए प्रमुख समझा जा रहा है क्योंकि फ़िलहाल इन तीन में से दो में कांग्रेस की सरकार है। भाजपा चाहेगी कि ये दोनों कांग्रेस शासित राज्यों पर अब उसका क़ब्ज़ा हो जाए। लेकिन यह उतना आसान नहीं है जितना भाजपा समझ रही है। ख़ासकर, छत्तीसगढ़ भाजपा के लिए अब भी टेढ़ी खीर बना हुआ है।
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