गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा (फेसबुक), अमेजन, ट्विटर में क्या समानताएं हैं? दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नोलॉजिकल कम्पनियां होने के अलावा हाल ही में इन सभी ने बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नौकरी से भी निकाला है। बात केवल इनकी ही नहीं, पूरे टेक-सेक्टर में लाखों लोगों ने हाल में काम से हाथ गंवाया है।
ये दुनिया की सबसे बेहतरीन नौकरियां थीं। अकसर कराए जाने वाले ‘बेस्ट प्लेसेस टु वर्क’ सर्वेक्षणों में उनका नाम सबसे ऊपर आता था। ये कम्पनियां तरक्की का वादा करती थीं, इनके ऑफिस बड़े कूल हुआ करते थे, यहां फ्री-लंच मिलता था, मोटी तनख्वाहें थीं और स्टॉक के विकल्प भी मुहैया थे।
साथ ही वे अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम, वर्क फ्रॉम बीच, अनलिमिटेड छुटि्टयां, एग्जॉटिक लोकेशंस से ऑफसाइट काम और अपने पेट-एनिमल को ऑफिस लाने तक की सुविधाएं भी देती थीं। लेकिन चंद महीनों में सब बदल गया। चाहे दशकों से कम्पनी में काम करने वाले कर्मचारी हों या हाल ही के कैम्पस-रिक्रूट्स- उनमें से बहुतों को नौकरी से निकाल दिया गया है।
हमारे देश में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, डन्ज़ो, शेयरचैट, रीबेल फूड्स, कैप्टन फ्रेश, भारतएग्री, ओला, देहाट, स्किट.एआई, कॉइन डीसीएक्स, लेड स्कूल, बाउंस, कैशफ्री, स्विगी जैसी भारतीय कम्पनियों ने भी हाल में अनेक लोगों को नौकरी से निकाला है।
आने वाले दिनों में और भी जॉब-कट्स होंगे। मुक्त-बाजार वाली इकोनॉमी में आपका स्वागत है। हम अकसर आर्थिक उदारीकरण के लाभों पर बात करते हैं और निजी क्षेत्र को बढ़ावा देते हैं, लेकिन हम इसके स्याह पहलू की उपेक्षा कर देते हैं। और वो यह है कि निजी क्षेत्र क्रूर और भावनाहीन है।
यह मुनाफे और ग्रोथ की सोच से संचालित होता है। शेयरधारकों को रिटर्न देना उसका मकसद होता है। जब सब ठीक चल रहा हो तो ये निजी कम्पनियां अपने कर्मचारियों की बड़ी परवाह करती मालूम होती हैं, लेकिन जैसे ही स्थितियां प्रतिकूल हुईं और कम्पनी की परफॉर्मेंस दबाव में आई, वह इस समस्या का समाधान करने के लिए जो बन पड़ेगा, वह करेगी। इसमें आपको नौकरी से निकालना भी शामिल है। बुरा लगा हो तो सॉरी।
आमतौर पर टेक-सेक्टर फलता-फूलता है, लेकिन आज उसमें गिरावट आने के दो मुख्य कारण हैं। एक, कोविड के कारण आया टेक-बूम लोगों की उम्मीद से कम ही दीर्घायु साबित हुआ। इस कालखंड में टेक-कम्पनियों ने जरूरत से ज्यादा लोगों की भर्ती कर ली थी, उन्हें लगा था कि दुनिया अब हमेशा ही ऑनलाइन डिलीवरी और वर्चुअल मीटिंग के भरोसे रहने वाली है।
वे गलत साबित हुए। दूसरा कारण यह है कि स्टार्टअप सेक्टर में आया बूम भी अब खत्म हो चुका है। बूम के समय कम्पनियां हर कीमत पर ग्रो करने पर ध्यान केंद्रित किए हुए थीं। लेकिन आज सेंटिमेंट्स बदल गए हैं। ब्याज दरें ऊंची हैं और निवेश करने वाले लोग अब इन कम्पनियों से प्रॉफिट्स की मांग कर रहे हैं। ऐसे में कॉस्ट-कटिंग का मतलब कर्मचारियों को निकालना हो जाता है।
इसी कारण सरकारी नौकरी का महत्व पहले से भी ज्यादा बढ़ गया है, क्योंकि उसे सुरक्षित माना जाता है। आज करोड़ों भारतीय सरकारी नौकरी की चाह में हैं। ऐसे में हम क्या करें? क्या निजी क्षेत्र में भावनाओं की कोई जगह नहीं होती और वहां से आपको कभी भी दरकिनार किया जा सकता है? कुछ हद तक हां। क्योंकि निजी क्षेत्र की कम्पनियों की पहली जिम्मेदारी अपने शेयरधारकों के प्रति होती है।
वास्तव में, जबसे ले-ऑफ होने लगे हैं, बड़ी टेक-कम्पनियों के शेयर्स में उछाल आया है, जिससे शेयरधारकों की मोटी कमाई हो रही है। लेकिन निजी क्षेत्र के साथ अच्छी बात यह है कि वह लॉन्ग-टर्म में कर्मचारी को अच्छा वेतन देता है।
जो कर्मचारी ले-ऑफ से बच गए हैं, वे आज भी सरकारी नौकरी वालों की तुलना में ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। नौकरी गंवाने वालों के पास भी नए जॉब का अवसर है, बशर्ते वे धैर्य रखें और दूसरी जगहों पर अप्लाई करते रहें। एक अच्छे प्राइवेट सेक्टर कॅरियर के लिए आप यह सब कर सकते हैं :
1. आपको अच्छी तनख्वाह मिलती है, लेकिन नौकरी सुरक्षित नहीं है तो बचत करें। मान लें कि आपको आधी ही तनख्वाह मिल रही है, शेष की बचत करें। आपके पास इतनी सेविंग्स (नेस्ट-एग) तो होनी ही चाहिए कि नौकरी छूटने की दशा में नया जॉब मिलने तक एक से दो साल सर्वाइव कर सकें।
2. यह न समझें कि कोई एक सेक्टर बेस्ट है। ऐसी कोई कम्पनी नहीं है, जिसके हमेशा मुनाफे में रहने की गारंटी हो। ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब टेक-कम्पनियां बड़ी हॉट मानी जाती थीं, पर आज वैसा नहीं है। फाइनेंस और रीयल-एस्टेट सेक्टर भी अच्छे-बुरे दौर से गुजर चुके हैं। जरूरत पड़ने पर सेक्टर बदलने में बुराई नहीं है। नौकरियों की तलाश का दायरा व्यापक बनाएं।
3. किसी नौकरी से भावनात्मक सम्बंध न बनाएं। निजी क्षेत्र की कम्पनियां जो पिकनिक, रिट्रीट, ऑफसाइट वगैरा देती हैं, वो इसलिए नहीं कि वहां सब एक-दूसरे से प्यार करते हैं। उसका कारण इतना भर है कि हालात अभी बेहतर हैं। लेकिन वो हमेशा अच्छे नहीं रहेंगे। भावनाओं का निवेश अपने परिवार और दोस्तों में करें। क्या आपने कभी सुना है कि किसी ने मृत्युशैया पर कहा हो- काश, मैंने ऑफिस में और समय बिताया होता या और अच्छे पॉवरपॉइंट प्रजेंटेशन दिए होते?
ग्लैमरस मल्टी-नेशनल नौकरियों की सच्चाई
आज निजी क्षेत्र में जो ले-ऑफ हो रहे हैं, वो हमारे लिए आंख खोल देने वाले हैं। गीता में अनासक्ति का उपदेश दिया गया है। जीवन में अगर किसी जगह यह डिटैचमेंट कारगर है तो वह ये ग्लैमरस मल्टी-नेशनल नौकरियां हैं। बुरा वक्त आते ही वो कम्पनियां आपको नौकरी से निकाल देंगी। इसलिए वहां काम करते समय अच्छे समय का मजा लें और बुरे समय के लिए खुद को तैयार रखें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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