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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:जब भी आत्मा को स्पर्श करने का मन हो, सूर्य को जल चढ़ाएं ​​​​​​​

एक वर्ष पहले
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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar
पं. विजयशंकर मेहता

हमारे देश के पास कुछ पंक्तियां ऐसी हैं जो दुनिया में अन्य किसी मुल्क के पास नहीं होंगी। इन पंक्तियों का गठन इस ढंग से किया गया है कि इनसे गुजरकर मनुष्य सीधे आत्मा तक की यात्रा पूरी कर सकता है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो हिंदू संस्कृति में दो काम बड़े दिल से किए जाते हैं- अर्घ्य (सूर्यदेव को जल चढ़ाना) और आरती। अर्घ्य देते समय सूरज से यह कहिए कि आप प्रकट होकर किरणें ही नहीं, ओज भी दे रहे हैं, और मैं आपको जो जल अर्पित कर रहा हूं, यह मात्र पानी नहीं, मेरा संकल्प है।

ऐसा संकल्प जो आपके ओज से जुड़ेगा तो मेरी सफलता स्वर्णमंडित हो जाएगी। ऐसे ही जब आरती करते हैं तो उस दौरान गाई गई प्रत्येक पंक्ति हमारे दुख-संतापों को काटती है। हमारे यहां एक आरती बड़ी मशहूर है- ‘ॐ जय जगदीश हरे..।’ करीब डेढ़ सौ साल पहले श्रद्धाराम फिल्लौरीजी ने जब यह लिखी तो उनका मकसद था कथाओं के बाद लोग उसका रसपान इन पंक्तियों से करें।

कुछ लोग कथाओं में देर से पहुंचते हैं तो अंत में इन पंक्तियों के माध्यम से भक्ति में डूब जाएं। सचमुच यह आरती सागर की लहरों की तरह हो गई। सेना के जवान जब अपनी पासिंग आउट परेड में इस धुन को गुनगुनाते हैं, तब तो देश और धन्य हो जाता है। इसलिए जब भी आत्मा को स्पर्श करने का मन हो, सूर्य को जल चढ़ाएं और ईश्वर के सामने दिल से यह आरती गाएं।