मनुष्य जीवन में कर्म और संबंध दो बातें होंगी ही सही। बिना कर्म किए कोई रह ही नहीं सकता। अगर कोई आलसी है तो वो भी उसका निष्क्रिय कर्म होगा। इसी तरह संबंध भी हमारे जीवन में होंगे ही। कोशिश की जाए कि हर कर्म में रहित की भावना हो और हर संबंध वासना से मुक्त रहे।
संबंध भी दो प्रकार के होंगे- एक अपने बनाए होंगे, दूसरे जन्म के साथ बने हुए मिलेंगे। जैसे माता-पिता, भाई-बहन। इन संबंधों में हमारा चयन नहीं चल सकता। ये ग्रान्टेड हैं। जो संबंध हमने बनाए हैं उनका रखरखाव भी हमें करना है। लेकिन जो बने हुए हैं उन्हें निभाने में अपने प्रयासों के साथ ईश्वरीय शक्ति को भी शामिल करें।
ये कुदरत का करिश्मा है कि पति-पत्नी के संबंध मनुष्य खुद के प्रयासों से बनाता है, लेकिन इसमें बहुत कुछ ईश्वरीय शक्ति की मर्जी से पहले से तय होता है। कर्म को परहित के भाव से जोड़ना तथा संबंधों को वासना रहित रखने में अपना अहंकार गिराना होगा। घमंड छोड़िए वरना ये दोनों बातें बिगड़ जाएंगी।
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