बाकी सबकी तरह संग्रहणीय चीजों की दुनिया भी बदल गई है। भारत में जन्मे और सिंगापुर में बसे उद्यमी विग्नेश सुंदरसेन और उनके व्यापारिक साझेदार आनंद वेंकटेश्वरन ने हाल ही में छद्म नाम बीपल से विख्यात कलाकार माइक विंकेलमान की एनएफटी आर्ट 69.3 मिलियन डॉलर (लगभग 500 करोड़ रु.) में खरीदी, तो सारी दुनिया को झटका-सा लगा। कला और इसकी नीलामी की नीरसता भरी पुरातन दुनिया में आखिरकार डिजिटल का प्रवेश हो गया।
इस सौदे ने हमारा ध्यान नीलामी वाली कृतियों से हटाकर सॉफ्टवेयर की दुनिया की तरफ कर दिया है। ब्लॉकचैन। संक्षेप में कहें तो इस एक बड़ी खरीदी ने कला को लोकतांत्रिक बनाया है, ये हमें दा विंची और पिकासो की दुनिया से दूर ले गई है, जिसे निजी खरीदार चोरी हो जाने के डर से अपनी दीवारों पर सजाने के बजाय छुपाकर रखते हैं। इसने कला के पारंपरिक मूल्यांकन से ध्यान हटाया है और डिजिटल आर्ट को सबसे आगे लाकर रख दिया है।
वैसे कला की सही कीमत क्या है? ये मुश्किल सवाल है क्योंकि कीमत कलाकार की महानता साबित नहीं करती। ये दूसरी चीजों से तय होती है। जैसे कलाकार की अन्य कृतियों की उपलब्धता, उसका आकार, पिछली नीलामी में कीमतें। और कई बार सनक से भी। पेरिस के लूव्र संग्रहालय में स्थायी तौर पर प्रदर्शित मोनालिसा की आखिरी बार 1962 में कीमत 100 मिलियन डॉलर आंकी गई थी, उस हिसाब से आज ये 900 मिलियन डॉलर की हो सकती है।
पर रिकॉर्ड कीमत पर 3 साल पहले लियोनार्डो दा विंची की ‘साल्वाटर मुंडी’ के लिए 3.38 हजार करोड़ रु. दी गई थी। रोचक है कि दुनिया की यह सबसे महंगी पेंटिंग महज 25 बाय 18 इंच की है। कलाकृतियों की प्रमाणिकता के सवालों के बीच ये अविश्वसनीय गति से सराही जा रही हैं। पर, हां बीपल की कृति के नए मालिकों ने कला के युग में नई शुरुआत की है। डिजिटल आर्ट का युग। और नॉन फंजिबल टोकंस या एनएफटी। सवाल है कि एनएफटी की कीमत लाखों में क्यों है? किसने पहली एनएफटी बनाई? इसे कितने में बेचा गया?
2019 में पेरिस में एक स्ट्रीट आर्टिस्ट पास्कल बोयार्ट ने दीवार पर एक पेंटिंग बनाई। ये उहेन डुलकुआ की प्रसिद्ध पेंटिंग ‘लिबर्टी लीडिंग द पीपुल’ से प्रेरित थी। पर इसमें आधुनिकीकरण का तड़का था। पास्कल ने किंग चार्ल्स-10 के दौर के आंदोलनकारियों की जगह पीली जैकेट पहने प्रदर्शनकारी बनाए। अधिकारी इससे खुश नहीं हुए। उन्होंने इसे रंग दिया। ये कलाकृति मिट गई थी, हमेशा के लिए। पर रुकिए जो बच गया था, वो डिजिटल संस्करण था। पास्कल ने इसे सैकड़ों हिस्सों में बांट दिया और हरेक हिस्से को 0.5 इथेरियम पर बेचना शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे उसका काम लोकप्रिय हो गया और आखिरकार उसका रेड जेस्टर का एनएफटी 75 इथेरियम या एक लाख 12 हजार डॉलर में बिका, जितना उसने कमाया था उससे कहीं ज्यादा। एनएफटी नए तरह के युवा कला संग्राहकों को आकर्षित कर रही है। जब बीपल ने 10 सेकंड का वीडियो 6.6 मिलियन डॉलर में बेचा। और इस सबसे ऊपर जैक डोर्सी के पहले ट्वीट का एनएफटी 17.37 करोड़ रुपए में बिका। अब सारी दुनिया एनएफटी की ओर जा रही है।
हुसैन का क्या होगा? या नीलामी में आजकल पसंदीदा चल रहे गायतोंडे व फ्रांसिस न्यूटन सूजा? अनुमान मुश्किल है। उनका मूल्य तो बढ़ेगा पर ज्यों-ज्यों नए खरीदार एनएफटी की ओर जाएंगे, आगे ये वृद्धि धीमी हो सकती है। और चित्रों की चोरी की योजना बनाने वालों के लिए रेमब्रांट पसंदीदा बने रहेंगे। पर हैकर्स अपना भाग्य बिटकॉइन और इथेरियम में बेचने वाले कलाकारों पर आजमाएंगे।
ये डिजिटल इंडिया के लिए क्रिप्टोकरंसी पर अपनी नीति पर पुनर्विचार करने का समय है। नहीं, आरबीआई की बाध्यकारी क्रिप्टोकरंसी नहीं। वह क्रिप्टो की मूल प्रवृत्ति खत्म कर देगी। जो लोग अपनी कला, ट्वीट, संगीत, कविता और वीडियो एनएफटी के तौर पर ब्लॉकचैन के जरिए बेचना चाहते हैं और क्रिप्टो में कमाना चाहते हैं, उन्हें ऐसा करने दें। अगर वे टैक्स का भुगतान करते हैं, तो रोकने की जरूरत क्या है?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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