पुराने जमाने के वैज्ञानिक नाम कमाने के साथ ही मानवता के कल्याण के लिए आविष्कार करते थे। जबकि 21वीं शताब्दी में अधिकांश रईस टेक जायंट्स डाटा चोरी को नवाचार का नाम देकर लोगों को लूट रहे हैं। भारत में आईटी क्रांति के जनक नारायण मूर्ति ने कहा है कि फंडिंग और वैल्यूएशन के गेम से आगे बढ़कर स्टार्टअप्स को मुनाफा कमाने पर भी ध्यान देना चाहिए। अदाणी पर हिंडेनबर्ग रिपोर्ट के बाद अमेरिका में दो बैंकों के डूबने से भारत में स्टार्टअप व टेक जगत में उथल-पुथल बढ़ सकती है। इसके दो जरूरी पहलू हैं।
पहला, भारत की तीन-चौथाई सॉफ्टवेयर ऐज ए सर्विस (सास) कम्पनियों का बिजनेस अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम से जुड़ा है। अमेरिका में दो बैंकों के डूबने से भारत के 400 स्टार्टअप्स के लगभग 1.5 अरब डॉलर फंस गए हैं। बैंकिंग संकट बढ़ने से स्टार्टअप के हजारों कर्मचारियों का वेतन अटकने के साथ छंटनी की तलवार लटकने लगी है।
टाइम मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार मुनाफे के लिए निवेशकों के दबाव के बाद टेक कम्पनियों ने पौने तीन लाख कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। अनेक स्टार्टअप कम्पनियां कर्मचारियों को वेतन देने में विफल होने के साथ मनमाने तरीके से छंटनी कर रही हैं तो फिर तंगहाल अर्थव्यवस्था के दौर में उनका बेलआउट कैसे होगा?
दूसरा, ग्लोबल विलेज वाली दुनिया में राष्ट्रवाद का रिवर्स गियर लगने और सख्त कानून बनने से टेक कम्पनियों का भविष्य अनिश्चित हो रहा है। अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और कनाडा ने टिक-टॉक पर प्रतिबंध लगाए हैं। इजरायल में तानाशाही के विरोध में चल रहे आंदोलन को यूनिकॉर्न कम्पनियों के समर्थन के बाद दो महीनों में टेक सेक्टर के 1.64 लाख करोड़ का निवेश इजरायल से बाहर चला गया।
यूरोपीयन यूनियन में डाटा सुरक्षा पर सख्ती के साथ इन कम्पनियों पर नए तरीके के प्रतिबंध लग रहे हैं। डिजिटल कम्पनियों को मिल रही कानूनी सुरक्षा को खत्म करने पर अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में हो रही बहस आगे बढ़ी तो वैश्विक इंटरनेट अर्थव्यवस्था की नींव ही भरभरा सकती है।
संसद में लोकतंत्र पर हंगामे और विपक्षी राज्यों के साथ केंद्र सरकार के बढ़ते टकराव से भारत में भी टेक कम्पनियों का सेंटीमेंट्स गड़बड़ा सकता है। टेक्नोलॉजी की दुनिया में तेज गति से हो रहे बदलावों के बीच समाज, सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट में गम्भीर विमर्श के अभाव की वजह से टेक नियमन की उलझनें और बढ़ते विरोधाभास को चार तरीकों से समझ सकते हैं :
1. पिछले साल तक क्रिप्टो के जोश से देश में दीवानगी का माहौल था। रिजर्व बैंक ने इसे घातक और गैर-कानूनी बताया। लेकिन सरकार ने कानून बनाए बगैर टैक्स वसूली शुरू कर दी। अब वजीरएक्स और जेबपे जैसे क्रिप्टो एक्सचेंज रातोरात बंद होने से लाखों निवेशकों की पूंजी डूब गई। क्रिप्टो कारोबार को पीएमएलए के खतरनाक कानून के दायरे में लाने से बकाया निवेशकों में भी हड़कम्प है।
2. सन् 2014-15 में कुल टैक्स रेवन्यू का 34.5 फीसदी कॉर्पोरेट टैक्स था जो कि अब घटकर 27.4 फीसदी रह गया है। भारत की अर्थव्यवस्था में तेज गति से विकास के बावजूद कॉर्पोरेट टैक्स के कलेक्शन में भारी गिरावट खतरनाक संकट का संकेत दे रही है। टेक कम्पनियों की टैक्स चोरी और मनी ड्रेन की वजह से छोटे उद्योगों की बंदी, बेरोजगारी और असमानता का बढ़ना भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है।
3. ऑनलाइन गेम, ई-फॉर्मेसी, बाइक-टैक्सी जैसे मामलों पर कई राज्य कानून बना रहे हैं। पिछले साल मोबाइल गेम खेलने वाले 70 लाख बच्चों पर साइबर अपराधियों ने ऑनलाइन हमला किया। डिजिटल कारोबार के हर सेक्टर में ऐसे अपराधों का बोलबाला होने की शिकायत, समाधान और मुआवजे के बारे में कोई ठोस कानूनी सिस्टम नहीं है।
4. एआई-अर्थव्यवस्था डेटा के अनधिकृत और गैर-कानूनी इस्तेमाल पर आधारित है। गाइडलाइनों के आधार पर टेक अर्थव्यवस्था के संचालन के बाद अचानक सेफ हार्बर सुविधा खत्म करने के अतिरंजित दावों से कम्पनियों में डर का माहौल बढ़ता है। डेटा सुरक्षा और डिजिटल इंडिया का वर्तमान संसद सत्र में पारित होना मुश्किल दिखता है।
टेक कम्पनियों को भारत में बन रहे कानूनों में अड़ंगेबाजी करने के बजाय यह समझने की जरूरत है कि ठोस कानूनी व्यवस्था उनके ही लम्बे और सुचारु जीवनकाल के लिए जरूरी साबित होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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