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पं. विजयशंकर मेहता का काॅलम:मौत भी शर्मिंदा है; हमने जिंदगी को इतने चटकारे लेकर खा लिया कि अब इस वक्त वह बेस्वाद-सी हो गई

2 वर्ष पहले
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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar
पं. विजयशंकर मेहता

जिसका जहां लुटता है, वो ही जानता है बर्बादी क्या होती है। बाकी तो लोग दुख बांटने भी सौदे के रूप में आते हैं। इस समय हमारे आसपास ऐसे-ऐसे दृश्य घट रहे हैं कि मौत भी शर्मिंदा है। मृत्यु से यदि पूछा जाए तो वह कहेगी, मैंने ऐसा कभी नहीं सोचा था कि मुझे इंसानों को इस तरह से ले जाना पड़ेगा। जीवन का तो स्वाद ही बदल गया है।

हमने जिंदगी को इतने चटकारे लेकर खा लिया कि अब इस वक्त वह बेस्वाद-सी हो गई। दो बातों का संबंध हमारी जीभ से है- स्वाद और विवाद। जीभ रहती है मुंह में और नौ द्वार में से सातवां मुख को कहा गया है। अपने स्वाद को सात्विक रखिए और विवादों पर नियंत्रण रखिए। इस द्वार से जो शब्द निकलते हैं, वे कलह और अशांति का बहुत बड़ा कारण बन सकते हैं।

नवरात्र चल रही हैं, इन दिनों में संकल्प लें कि हमारे शब्द संतुलित होंगे, अर्थपूूर्ण रहेंगे, मिठास के साथ बाहर आएंगे। परमशक्ति ने हमें कुछ मंत्र दिए हैं, उनमें से एक है हमारे शब्द। शब्दों को केवल बातचीत का जरिया मत मानिएगा। जो अपने शब्दों को संतुलित ढंग से, सही विचारों के साथ प्रस्तुत करते हैं, उनकी बात अपने आप में मंत्र बन जाती है। मंत्रोच्चार हमारे जीवन में शांति का बहुत बड़ा साधन है। इसलिए इन दिनों इस सातवें द्वार पर बहुत सावधानी से काम करिए।