पिछले दिनों जब एलन मस्क ने ट्विटर खरीदा तो उनकी बायोग्राफी पर काम कर रहे प्रसिद्ध जीवनीकार और लेखक वाल्टर आइजैक्सन ने एक रोचक बात साझा की। उस दिन मस्क ने इंडोनेशिया के एक मंत्री के साथ टेस्ला कंपनी की एक मीटिंग की और रात को दस बजे वे स्पेस एक्स कम्पनी में रॉकेट इंजिन पर चर्चा कर रहे थे।
जब दुनिया में इस घटना पर लाखों ट्वीट हो रहे थे, तब एलन मस्क ने पूरी मीटिंग में एक बार भी ट्विटर शब्द का उपयोग नहीं किया। उन्होंने सिर्फ उसी विषय पर बात की, जो वह वहां करने आए थे। वाल्टर आइजैक्सन ने इसका उल्लेख करते हुए लिखा- एलन मस्क मल्टीटास्क कर सकते हैं! वे एक साथ दुनिया की तीन बड़ी कम्पनियाें को सम्भाल सकते हैं।
लेकिन इसी घटना पर दुबारा नजर डालें तो आप पाएंगे कि मस्क दरअसल एक साथ तीन चीजें नहीं कर रहे थे। बल्कि इसके ठीक उलट जब वे एक कार्य कर रहे थे तो दूसरे को उन्होंने पूरी तरह अपने दिमाग से किनारे कर दिया था। उनका ध्यान हर वक्त एक ही कार्य पर था।
आज की दुनिया में ऐसे कई लोग दिख जाते हैं, जो गाड़ी चलाते हुए फोन पर बात कर रहे होते हैं। टीवी पर फुटबॉल का मैच देखते हुए किताब पढ़ रहे होते हैं। एक हाथ से खाना खाते हुए दूसरे हाथ से कंप्यूटर पर काम कर रहे होते हैं या मोबाइल पर कुछ देख रहे होते हैं। आज सभी अष्टभुजा बनने की मशक्कत में लगे हैं, ताकि उनकी कुल प्रोडक्टिविटी बढ़े। लेकिन क्या वाकई इससे प्रोडक्टिविटी बढ़ती है?
मुझसे चर्चा में एक संगीतकार ने बताया था कि वे जब एक कार्यक्रम में चार अलग-अलग मूड के राग गाते हैं तो ये ध्यान रखते हैं कि जब दूसरे राग पर आएं तो मन में पहले राग की कोई छाप न हो! मल्टीटास्किंग का सूत्र भी कुछ ऐसा ही है।
शोध तो यही कहते हैं कि मनुष्य का दिमाग एक साथ कई कॉम्प्लेक्स कार्य करने के लिए नहीं बना। गाना सुनते हुए पढ़ना संभव है, लेकिन गणित के सवाल हल करते हुए इतिहास पढ़ना मुमकिन नहीं। अगर हम बहुत जल्दी-जल्दी एक कार्य से दूसरे कार्य में स्विच कर रहे हैं तो हमारा उत्पादन हर कार्य में घटता जाएगा। हमारा ध्यान और हमारा फोकस टूटता जाएगा। अंत में नतीजा यह निकल सकता है कि शायद एक भी कार्य ढंग से न हो पाए।
इमरजेंसी वार्ड के चिकित्सक एक के बाद एक कई अलग-अलग मरीजों को जल्दबाजी में देख रहे होते हैं, लेकिन ऐसा करते समय वे अपने ध्यान को बहुत ही नियंत्रित रखते हैं। हमें शायद वे हड़बड़ी में दिखें, लेकिन उनके हर मिनट का फोकस तय होता है। अगर ऐसा न हो तो मरीजों की जान खतरे में चली जाएगी।
यह संभव है कि एक ही व्यक्ति दिन में अलग-अलग तरह के कई कार्य कर ले, और पूरी निष्ठा से करे, लेकिन इसके लिए यह आवश्यक है कि हर कार्य को उसी फोकस से किया जाए। आपस में घालमेल न हो। एक सुझाव है कि हर कॉम्प्लेक्स या जटिल कार्य को कम से कम बीस मिनट दिए जाएं। जैसे चार अलग-अलग विषयों की किताबें अगर दो घंटे में पढ़नी हों, तो उन्हें आधे-आधे घंटे में बांट लिया जाए। मात्र पांच मिनट में ही स्विच न कर जाएं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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