पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मियां शाहबाज शरीफ ने पिछले दिनों एक ऐसी बात कह दी, जिसे कहने के पहले पाकिस्तान के नेता दस बार सोचते हैं। उन्हें डर लगता है कि कहीं उनकी कुर्सी न हिल जाए। अबूधाबी की यात्रा के दौरान शाहबाज ने कह दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए।
युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं है और भारत व पाकिस्तान, दोनों ही परमाणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र हैं। यदि दोनों के बीच युद्ध हो गया तो कौन बच पाएगा? दोनों देशों को कश्मीर की समस्या बातचीत करके हल करनी चाहिए। मियां शाहबाज के इस प्रस्ताव पर भारत सरकार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की है लेकिन पाकिस्तान में इसकी भर्त्सना का ज्वालामुखी फट चुका है।
विरोधी नेता शाहबाज पर हमला करने से नहीं चूक रहे हैं। पाकिस्तान के टीवी चैनलों की बहस में अपने प्रधानमंत्री को लोग जमकर कोस रहे हैं। वे कह रहे हैं कि शाहबाज की नाव डूब रही है, उनसे पाकिस्तान सम्भल नहीं रहा है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय छवि चमकाने के लिए खुद को संजीदा नेता के रूप में पेश कर रहे हैं।
वे अमेरिका जैसी भारतपरस्त महाशक्तियों को भी खुश करने में लगे हैं। मुझे लगता है भारत से बातचीत का प्रस्ताव शाहबाज का तात्कालिक पैंतरा रहा होगा। वे संयुक्त अरब अमीरात इसीलिए गए थे कि उन्हें उसके जो बिलियन डाॅलर लौटाने थे, उसकी तिथि आगे बढ़ा दी जाए और उन्हें एक बिलियन डाॅलर का नया कर्ज भी मिल जाए।
ये दोनों काम हो गए। तो बताइए वे खुश होंगे या नहीं? उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात के शासक मोहम्मद बिन जायद अल नाह्यान से गुजारिश की कि वे भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता क्यों नहीं करते? अबूधाबी व दिल्ली के सम्बंध घनिष्ठ हैं, यह सबको पता है।
इस तरह का आग्रह गलत नहीं है लेकिन लगता है मियां शाहबाज ने यह प्रस्ताव अचानक खुलेआम रख दिया। अबूधाबी के शेख की प्रतिक्रिया क्या रही, यह पता नहीं लेकिन दोनों राष्ट्रों की ओर से जो संयुक्त विज्ञप्ति जारी की गई है, उसमें इसका जिक्र नहीं है।
यदि सचमुच शेख नाह्यान मध्यस्थता करने लगें तो दोनों देशों की कटुता काफी कम हो सकती है। लेकिन शाहबाज अभी जितनी मुसीबतों में फंसे हैं, वे बढ़ती चली जा सकती हैं। उनके विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि वे भारत के आगे घुटनेटेकू मुद्रा धारण कर रहे हैं। पाकिस्तान में चुनाव जीतने के लिए ऐसी छवि बड़ा खतरा बन सकती है। पंजाब और पख्तूनख्वाह की विधानसभाएं भंग हो चुकी हैं और इमरान खान आम चुनाव के लिए ललकार रहे हैं।
मियां शाहबाज के बयान देने के कुछ घंटों में ही पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय अपने प्रधानमंत्री की छवि को मैला होने से बचाने में जुट गया। उसने कहा कि यह द्विपक्षीय बातचीत तो जरूर हो, लेकिन पहले भारत सरकार धारा 370 की वापसी करे। इतना ही नहीं, कश्मीर को पाकिस्तान के हवाले करे।
कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश पाकिस्तान के हर शासक ने की है। युद्ध, आतंकवाद, घुसपैठ आदि सभी हथकंडे इस्तेमाल करने के बावजूद पाकिस्तान के लिए आज तक कश्मीर एक आकाशकुसुम बना हुआ है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों को कश्मीर पर कब्जा करने की बात बार-बार दोहरानी पड़ती है, क्योंकि यही वह सब्जबाग है, जिसे दिखा-दिखाकर वे जनता को फुसलाते हैं।
कश्मीर पर कब्जा करने का बहाना इतना जबर्दस्त है कि इसी के चलते फौजी लोगों ने पाकिस्तान पर सिक्का जमा रखा है। आश्चर्य तो यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों और फौजी शासकों ने जिस संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को गले में माला की तरह लटका रखा है, उसे उन्होंने ठीक से पढ़ा तक नहीं है।
उन्हें पता ही नहीं है कि उस प्रस्ताव में पहली शर्त यह है कि पाकिस्तान सबसे पहले तथाकथित आजाद कश्मीर को खाली करे यानी वहां से अपने फौजियों और नौकरशाहों को हटाए। उसके बाद ही वहां जनमत संग्रह हो सकता है। जनमत-संग्रह में भी तीन विकल्प हो सकते हैं।
पूरा कश्मीर या तो भारत में मिले या पाकिस्तान में मिले या आजाद हो जाए। पाकिस्तानी नेता लोग कश्मीर की आजादी के तीसरे विकल्प को सिरे से रद्द करते हैं। वे कश्मीर के आजादी के एक दम विरोधी हैं लेकिन इस मुद्दे पर चुप रहते हैं। 75 साल से लड़ते-लड़ते उन्हें पता चल गया है कि वे भारत के कश्मीर पर किसी भी हालत में कब्जा नहीं कर सकते।
पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति अभी ऐसी नहीं है कि कश्मीर जैसे नाजुक मुद्दे पर भारत से संवाद कर सके। यदि शाहबाज गम्भीर हैं तो पहले राजनयिक संबंधों को ठीक करें और बंद पड़े दक्षेस को शुरू करें। मियां शाहबाज ने भारत से बातचीत का बयान क्या सोचकर दिया, इसकी असलियत तो वे ही बता सकते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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