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हरिवंश का कॉलम:2021 से 30 के दशक को एआई अविश्वसनीय ढंग से बदल देगा। दुनिया बड़े बदलावों की ओर है

3 महीने पहले
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हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति - Dainik Bhaskar
हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति

इतिहास 2022 को कैसे याद करेगा? वैज्ञानिकों द्वारा न्यूक्लियर फ्यूशन में असाधारण उपलब्धियों के लिए? दिसंबर 5, रात एक बजे कैलिफोर्निया की एक प्रयोगशाला में वैज्ञानिकों को मिली असाधारण सफलता के लिए? या शायद इससे भी बड़ी घटना के लिए।

अमेरिका के पूर्व वित्त मंत्री लॉरेंस समर्स क्या मानते हैं? उनका मत है, चैटबाॅट्स (चैट जीपीटी) की उपलब्धि, मानव इतिहास में प्रिंटिंग प्रेस, बिजली, पहिया और आग की खोजों की तरह है। ओपन एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) द्वारा विकसित यह चैटबॉट्स खास विषय पर प्रवाहमय, स्पष्ट और प्रासंगिक सामग्री तैयार कर सकता है।

उपयोगकर्ता को निजी सूचनाएं दे सकता है। रिपोर्ट लिख सकता है। भारी-भरकम जटिल चीजों का सारांश बना सकता है। कठिन शोधपत्रों-लेखों का सार बताकर वैज्ञानिकों-शोधकर्ताओं की मदद कर सकता है। आगे शोध का विषय सुझा सकता है। यानी अब मशीनें सृजन की भूमिका में हैं।

अब तक इंसानी मस्तिष्क का ही रचनात्मकता (सृजन) पर एकाधिपत्य था। हर इंसान अलग तरह का। पर अब जीवन, समाज या व्यवस्था में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का प्रयोग जितना बढ़ेगा, विशेषज्ञ बताते हैं व्यक्ति की निज पहचान गौण होगी। यानी मनुष्य पर भारी मशीन।

कार्तिक होसनागर (व्हार्टन विश्वविद्यालय) शोधों का निष्कर्ष बताते हैं, आज इंसान मोबाइल या कम्प्यूटर पर ‘एलगाेरिदम’ के अनुसार अनेक निर्णय लेता है। अमेजन पर एक तिहाई क्रय इसके तहत हो रहा है। नेटफ्लिक्स पर लोग 80 फीसदी समय ‘एलगाेरिदम’ आधारित निर्णयों के तहत बिताते हैं।

90 फीसदी समय यूट्यूब पर इसके अनुसार गुजरता है। डेटिंग एप्स के लिए भी इसका उपयोग हो रहा है। अब एआई, सॉफ्टवेयर कोड विकसित करने की भूमिका में है। ग्राफिक डिजाइन भी। शायद किताबें लिखने में भी सक्षम। इस तरह ‘एलगाेरिदम’ आज जटिल (कठिन) या उलझे सृजनात्मक काम श्रेष्ठ तरीके से करने की स्थिति में है।

एआई के विकास का लक्ष्य यह है कि मशीनें, मनुष्य की प्रतिभा, सृजन व रचनात्मकता के बराबर हों। क्या संसार उस मुकाम पर पहुंच गया है? पूरी तरह नहीं। महज 60 वर्षों में मशीनें मनुष्य के समकक्ष आ चुकी हैं। पहले कम्प्यूटर्स सामान्य पहेलियां सुलझाते थे। फिर शतरंज में श्रेष्ठ इंसानी मस्तिष्क को हराया।

अब मानव के एकाधिकारवाले क्षेत्र ‘सृजन’ में एआई मौजूद है। पर एआई के अनेक विशेषज्ञों ने इसकी चुनौतियों-कमियों पर तत्काल गम्भीर सवाल उठाए। इससे मेटा एआई चैटबॉट गैलेक्टिका- जो इस चैटबाॅट के विकास के पीछे है- ने इसे वापस ले लिया है। नवम्बर मध्य में यह प्रयोग में आया। तीन दिनों में वापस हुआ।

वैज्ञानिक और राजनीतिक दुरुपयोग की आशंका से। यह सवाल भी संसार के सामने है कि मानव मूल्यों, नैतिक आग्रहों से कितना रिश्ता इस मशीनी संसार का होगा? विशेषज्ञ बता रहे हैं कि एआई के लिए बड़ा सख्त कानूनी प्रावधान चाहिए। युवाल हरारी ने कहा है कि नई तकनीक के प्रबंधन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नियम जरूरी हैं। एआई और बायोइंजीनियरिंग के लिए, खासतौर से।

विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इस तकनीक से डाटा एंट्री, डाटा विश्लेषण, ग्राहक सेवा, उत्पादन और परिवहन क्षेत्रों में रोजगार घटेंगे। लिखने या रिपोर्ट तैयार करने के काम भी एआई निपुणता से करेगा। लिंक्डइन संस्थापक रेड हाफमैन भी मानते हैं कि महज पांच सालों में बाजार-दफ्तरों का स्वरूप बदल जाएगा।

अधिकतर काम एआई द्वारा होंगे। उनका मानना है कि गाना लिखने, डॉक्टर का पुर्जा, मीडिया या शोधकर्ताओं के लेख, वकील की कानूनी शीट, कलाकार की तस्वीर बनाने में मशीनें अग्रणी होंगी। इससे नौकरियां खत्म नहीं होंगी पर नौकरियों का बाजार बदल जाएगा।

एआई से स्वास्थ्य क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव के द्वार पर दुनिया है। खासतौर से भारत में इसके इस्तेमाल से गांव-गांव तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का पहुंचना संभव होगा। एआई प्रगति ने संसार को सभ्यता व इतिहास के नए मुकाम पर पहुंचा दिया है।(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

महज पांच सालों में बाजार-दफ्तरों का स्वरूप बदल जाएगा। अधिकतर काम एआई द्वारा होंगे। अधिकतर कामों में अब मशीनें अग्रणी होंगी। इससे नौकरियां खत्म नहीं होंगी पर नौकरियों का बाजार बदल जाएगा।