न्याय का दर्शन है कसूरवार भले छूटे, बेगुनाह को सजा न हो। पर झूठे मुकदमों, आधारहीन आरोपों, मीडिया ट्रायल, लोकनिंदा, आत्मवेदना सजा से भी भयावह होती है। दूसरे विश्वयुद्ध की बड़ी घटना पुनः चर्चा में है। परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर पर अमेरिका में सोवियत जासूस होने का आरोप (1954) लगा था। सभी गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक होने के वर्षों बाद उन्हें अब निर्दोष पाया गया है।
ओपेनहाइमर ने पहला परमाणु परीक्षण (1945) देखा तो गीता की पंक्तियों में पहली प्रतिक्रिया दी, ‘अब मैं मृत्यु (संहार) हूं, संसार का विनाशक!’ राष्ट्रपति रूजवेल्ट के कार्यकाल में वे गोपनीय हथियार प्रयोगशाला के चीफ थे। अमेरिका ही नहीं, मित्र राष्ट्रों के हीरो माने गए थे। उन्हीं के बम ने निर्णायक जीत दिलाई।
अमेरिकी परमाणु आयोग के अध्यक्ष बने। पर सफलता की कीमत बड़ी होती है। ईर्ष्या, द्वेष, षड्यंत्र जैसे अदृश्य तत्व महज व्यक्ति का जीवन ही प्रभावित नहीं करते, मुल्कों के भविष्य पर भी असर डालते हैं। ओपेनहाइमर इसी के शिकार हुए। 1967 में वे कैंसर से नहीं रहे। उनके जीवनी लेखक कायिव वर्ड ने कहा, 1954 में जो हुआ, वह न्याय के नाम पर प्रहसन था। पर ऐसी घटना हर मुल्क में मिलेंगी। प्रामाणिक लोगों को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है।
भारत के शीर्ष अंतरिक्ष वैज्ञानिक नंबी नारायणन का मामला लें। केरल पुलिस ने (1994) आरोप लगाया पाकिस्तान को गोपनीय सूचनाएं बेचने का। 1996 में स्थानीय अदालत ने उन्हें निर्दोष बताया। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। दो दशकों बाद शीर्ष अदालत ने कहा, यह केस ही मनगढ़ंत है।
तब प्रो. नारायणन ने कहा कि जिंदगी बोझ बन चुकी थी, पर झूठे दाग के साथ न जीने के भाव से, दो दशकों तक न्याय के लिए भटका। जीवन का श्रेष्ठ समय, ऊर्जा, संकल्प सब ध्वस्त। इसरो के वैज्ञानिकों पर गहरा असर पड़ा। अंतरिक्ष में हैवी रॉकेट छोड़ने की योजना को भारी धक्का लगा। तथ्यों का संकेत है कि यह भी एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा था।
इस वर्ष की शुरुआत में पहाड़ी के एक शिखर से कैनबरा शहर का सुंदर दृश्य हम देख रहे थे। सुंदर आर्किटेक्चर, प्लानिंग, श्रेष्ठ लैंडस्केप व डिजाइन। इस खूबसूरत राजधानी के आर्किटेक्ट थे, अमेरिकी वाल्टर ग्रिफिन। उनकी पत्नी मारिओन ग्रिफिन 20वीं सदी के तीन प्रभावशाली शिल्पकारों में से एक मानी गईं। 1908 में ऑस्ट्रेलिया की ख्वाहिश हुई, दुनिया की सबसे खूबसूरत राजधानी बनाने की। संसार के बड़े आर्किटेक्टों को बुलाया।
130 श्रेष्ठ वास्तुकारों में से चुने गए ग्रिफिन। इस सुंदर राजधानी की नींव उन्होंने डाली। काम आगे बढ़ा। फिर आंतरिक प्रतिस्पर्द्धा सामने आई। जांच के लिए ‘रायल कमीशन’ बना। ग्रिफिन दम्पती मेलबर्न-सिडनी में बड़े काम करने लगे। उन्हीं दिनों भारत के संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) के लखनऊ विवि का एक प्रोजेक्ट भी उन्हें मिला।
1936 में कृषि प्रदर्शनी का दायित्व मिला। लखनऊ की पायनियर प्रेस बिल्डिंग भी ग्रिफिन दम्पती की देन है। छह दशकों में दुनिया के तीन महाद्वीपों में इस दम्पती ने वास्तुशिल्प के यादगार भवन बनाए।
उधर जांच कमीशन गठन के कुछ ही वर्षों बाद ऑस्ट्रेलिया सरकार ने गजट प्रकाशित कर उल्लेख किया कि ग्रिफिन के कैनेबरा प्लान में परिवर्तन संसद की अनुमति के बिना संभव नहीं है। यह ग्रिफिन के काम पर ऑस्ट्रेलिया सरकार की प्रामाणिकता की मुहर मानी गई। पर कैनबरा जांच प्रकरण उन्हें आहत कर गया।
ऐसे निर्दोषों की वेदना का उत्तर न्याय प्रणाली या व्यवस्था के पास आज भी नहीं है। शायद महाभारत का प्रसंग इस संदर्भ में सांत्वना हो। कृष्ण के न रहने पर द्वारका की स्त्रियों को लेकर अर्जुन हस्तिनापुर लौट रहे हैं। बीच में भीलों से युद्ध होता है।
भील सब छीन ले जाते हैं। गांडीवधारी अर्जुन पराजय से सुध-बुध खो बैठते हैं। महर्षि व्यास के पास जाते हैं। पूरा प्रसंग बताते हैं। व्यास, अर्जुन को कहते हैं, कर्ता व्यक्ति नहीं होता। समय या काल का यह प्रताप है। व्यक्ति नहीं, परिस्थितियां निर्णायक होती हैं।
सफलता की कीमत बड़ी होती है। पेशेवर ईर्ष्या, द्वेष, षड्यंत्र जैसे अदृश्य तत्व महज व्यक्ति का जीवन ही प्रभावित नहीं करते, मुल्कों के भविष्य पर भी असर डालते हैं। इसके अनेक उदाहरण आज मौजूद हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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