कल्पना करें कि आप सुबह जल्दी उठे और बाहर अचानक तापमान बहुत कम है। आपका मन हो गया है कि पहाड़ों पर ट्रैकिंग के लिए जाएं, पर जूतों की हालत खराब है। आप 30 मिनट में पिज्जा डिलीवर करने वाला फूड एप खोलते हैं और जूते ऑर्डर करते! आप ब्रश करके, नहाते, ट्रैक पेंट्स पहनते उससे पहले जूते पहुंच गए।
एक और स्थिति की कल्पना करें। एक रिएलिटी शो में गैस पर तवा रखते ही प्रतिभागी को पता चलता है कि एक सामग्री कम है। कौन बनेगा करोड़पति की ‘फोन ए फ्रेंड’ लाइफलाइन की तरह उन्हें कोई भी एप इस्तेमाल की इजाजत है, जिसके वो सदस्य हों, ताकि वे तेजी से सामग्री पहुंचा सकें, तब तक वह डिश को धीमी आंच पर पकाते हैं। अब टीवी स्क्रीन दो हिस्सों में दो जगह दिखा रही है- जहां खाना पक रहा है और जहां ऑर्डर दिया गया है।
कुकिंग प्रतियोगिता में जैसे शेफ जज है, उसी तरह किराने के मामले में लॉजिस्टिक मैनेजर वहां चल रही कार्यवाही परख रहा है कि कैसे व्यापारी चाहा गया उत्पाद पहचानता है, पैक करता है और अंतिम मंजिल-कुकिंग एरिया तक कैसे तेजी से रवाना करता है। और फिर डिश तैयार होने व चखने के बाद विजेता घोषित होता है। आपको पता, कौन विजेता रहा। ये शेफ नहीं बल्कि लॉजिस्टिक फ्लोर मैनेजर रहे, जिनके बीच स्पर्धा रही कि कौन कुकिंग फ्लोर पर जिस सामान की कमी थी, उस तक तेजी से पहुंचता है।
हां, भविष्य के रिएलिटी शो में डिलीवरी एप्स के बीच स्पर्धा हो सकती है, जो मांग की महत्ता समझते हैं और उस डिश को टेस्टी बनाने के लिए चुनिंदा सामग्री तेज़ी से पहुंचा पाते हैं! असल में यह लॉजिस्टिक स्टाफ के बीच प्रतिस्पर्धा है। अगर भरोसा नहीं कि ऐसा कुछ हो सकता है, तो ‘शार्क टैंक्स’ कार्यक्रम देखिए, जहां नवीनतम बिजनेस आइडिया अपना बिजनेस शुरू करने या पुराना बिजनेस बढ़ाने के लिए एंजेल इन्वेस्टर्स से फंडिंग की स्पर्धा कर रहे हैं, जाहिर है कि उन्हें अपने बिजनेस का कुछ प्रतिशत उन्हें देना पड़ेगा।
फूड डिलीवरी मॉडल गलाकाट प्रतियोगिता से खतरे में हैं, ऐसे में अपना मुनाफा बढ़ाने की कोशिश में दुनियाभर में कई फूड डिलीवरी एप ‘सुपरमैन’ की तरह ‘सुपर एप’ बनकर सामान्य ई-कॉमर्स क्षेत्र में आकर साहसिक कदम उठा रहे हैं, ये ना सिर्फ सारे काम करता है, बल्कि बेहतर और तेज भी। ये सुपर एप अन्य प्रतिस्पर्धी एप के साथ साझेदारी करके विविध असंबद्ध सेवाएं भी एक ही मोबाइल इंटरफेस से उपलब्ध कराते हैं। अमेरिका, यूरोप व कोरिया-जापान जैसे देशों में कम से कम एक दर्जन एप ने इस दिशा में बढ़ना शुरू कर दिया है।
मतलब आने वाले दिनों में फूल, जूते, त्वचा उत्पाद किसी भी फूड डिलीवरी एप से खरीद सकते हैं। दुनियाभर में डिलीवरी का बाजार बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धी होता जा रहा है। सिर्फ इतना नहीं कई एप तो सब्सक्रिप्शन मॉडल पर जा रहे हैं, जहां ग्राहक चाहा गया सामान सबसे तेजी से मंगाने के लिए हर महीने 500 से 700 रु. तक देते हैं, जबकि एप मालिक उन्हें हर खरीद पर छूट देते हैं ताकि ग्राहकों का सदस्यताशुल्क वसूल हो जाए बल्कि उनके मासिक बजट में भी बचत हो।
यह वही है जिस पर नए एप बिजनेस की निगाह है। उन्हें स्थायी सदस्य मिलेंगे जो उनसे हर चीज़ ऑर्डर करेंगे और सदस्यों को उनकी हर जरूरत के लिए ‘वन स्टॉप विंडो मिलेगी।’ यहां एप मालिक को ज्यादा बिजनेस मिलेगा, तो ग्राहकों को अच्छी छूट और तेज डिलीवरी। फंडा यह है कि भविष्य में बिजनेस इस आधार पर मापे जाएंगे कि उनकी डिलीवरी कितनी तेज (स्पीड) है और हर चीज पहुंचाने के लिए एक ही छत के नीचे सामान किस तरह मौजूद(स्प्रेड)है।
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