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भारतीय रेलवे ने रिडेवलपमेंट प्रोग्राम में प्राइवेट सेक्टर को जोड़कर रेलवे स्टेशनों को अपग्रेड करने का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किया है। भारतीय रेलवे स्टेशन विकास निगम लिमिटेड (IRSDC) और रेल भूमि विकास प्राधिकरण (RLDA) को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इन स्टेशनों में अमृतसर, नागपुर, साबरमती (अहमदाबाद), CSMT (मुंबई), देहरादून, नेल्लोर, पुडुचेरी, तिरुपति, नई दिल्ली, एरनाकुलम और लखनऊ शामिल हैं।
स्थानीय रियल एस्टेट डेवलपर्स, राष्ट्रीय इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय फंड्स ने इसमें रुचि दिखाई है। पहले भी इस दिशा में कई प्रयास हुए, लेकिन अधूरी तैयारियों के कारण कामयाबी नहीं मिली। नई दिल्ली और CSMT के लिए लगभग 10 साल पहले निजी विकास की बात हुई थी, लेकिन प्रक्रिया शुरुआती चरणों से आगे ही नहीं बढ़ी। 2012 में IRSDC बनाया गया, उसने 5 स्टेशनों की प्रक्रिया शुरू की, जिसमें एक ही नतीजे पर पहुंचा।
फिर 2017 में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां प्राइवेट सेक्टर को दी गईं और उन्हें अपने प्रस्ताव जमा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यह अनुमान गलत निकला कि डेवलपर खुद स्थानीय शहरी एजेंसियों से सामंजस्य बैठाकर मुद्दे सुलझा लेंगे। कुछ समय पहले IRSDC ने सफलतापूर्वक हबीबगंज (भोपाल) स्टेशन का टेंडर दिया, जिसमें ऑपरेशन और स्टेशन के रखरखाव की छोटी अवधि शामिल है। पुराने अनुभवों का महत्वपूर्ण सबक यह है कि भूमि के स्वामित्व पर तत्परता जरूरी है।
बोली लगाने वाले उस भूमि पर स्पष्ट नाम चाहते हैं, जो प्रोजेक्ट का हिस्सा है। भूमि के रिकॉर्ड अक्सर आसानी से नहीं मिलते। अतिक्रमण भी बड़ी बाधा है। भूमि इस्तेमाल की अनुमति पर अस्पष्टता तीसरी चुनौती है। उदाहरण के लिए ऐसी परिस्थितियां रही हैं, जहां एक सरकारी एजेंसी ने दूसरी को भूमि दी, लेकिन केवल परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए, यानी उसके आवासीय या व्यावसायिक विकास में इस्तेमाल की अनुमति नहीं है।
सरकार को सही जानकारी देने के साथ, बाद में उठने वाली ऐसी तमाम समस्याओं के लिए बोली लगाने वालों की क्षतिपूर्ति पर काम करना चाहिए। अतीत में अनुमतियां भी बड़ी बाधा रही हैं। परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान रेलवे प्राधिकरणों द्वारा कुछ अनुमतियों की जरूरत होगी, जिसमें समय लग सकता है क्योंकि कई विभाग अलग-अलग पहलुओं से समीक्षा करेंगे। इससे भी चुनौतीपूर्ण है रेलवे से बाहर की अनुमतियां, जैसे शहरी प्रबंधन एजेंसियां आदि।
इस चुनौती का सामना करने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। पहला, प्राधिकरण कई अनुमतियां नीलामी प्रक्रिया से पहले ही ले रहे हैं। दूसरा, विशेष योजना प्राधिकरण के रूप में प्राधिकरण खुद कई अनुमतियां देने में सक्षम होगा, जिससे डेवलपर को कई एजेंसियों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। तीसरा, संबंधित एजेंसियां एक आधारभूत मास्टर प्लान अप्रूव करेंगी, जिसे डेवलपर को दिया जाएगा।
अगर डेवलपर इस प्लान में ज्यादा बदलाव नहीं करता, तो अनुमतियों में कम समय लगेगा। निर्माणकार्य के दौरान की अनुमतियों के अलावा निजी ऑपरेटर को संचालन की अवधि में भी विभिन्न एजेंसियों संग काम करना होगा। यह भी बोली लगाने वालों की चिंता का एक विषय है। स्टेशन के अंदर ऑपरेटर को यात्रियों की सुविधा से जुड़ी सेवाओं में प्रतिबद्धता दर्शानी होगी, भले ही यात्री सेवाओं के कई पहलू रेलवे के कार्यक्षेत्र में हों। स्टेशन के बाहर भी ऑपरेटर को पार्किंग, ट्रैफिक आदि मुद्दों पर स्थानीय एजेंसियों से सामंजस्य बैठाना होगा।
बोली लगाने वाले निवेशकों को आकर्षित करने के मामले में भी लचीलापन चाहेंगे। रेलवे पुनर्विकास परियोजना, इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल एस्टेट का मिश्रण है, जिसमें आमतौर पर अलग-अलग तरह का वित्तपोषण होता है। यह मुश्किल मुद्दा है, क्योंकि रेलवे प्राधिकरण दोनों को अलग-अलग करना नहीं चाहेंगे।
परियोजना का पूरा लाभ तभी मिलेगा, जब दोनों घटकों पर एकीकृत ढंग से योजना बने व क्रियान्वयन हो, जिसका उद्देश्य यात्री सुविधा बढ़ाना और व्यावसायिक विकास के अवसरों का लाभ उठाना हो। इनोवेशन कर ऐसी शर्तें तय करनी होंगी, जिससे दोनों उद्देश्य पूरे हों। अगर इसमें सफलता मिलती है तो न सिर्फ यात्रियों की सुविधा बढ़ेगी, बल्कि ये महत्वपूर्ण केंद्र शहरी परिदृश्य को आकार भी देंगे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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