अगर आप किसी नई खोजी गई मुद्रा को अप्रासंगिक बनाकर बर्बाद करने की कोशिश कर रहे हैं, तो इसका नाम ‘क्रिप्टोकरंसी’ रखना पहला कदम होगा। ‘क्रिप्टो’ का मतलब है छिपा हुआ या गुप्त और इसे आमतौर क्रिप्टो-कम्युनिस्ट बताकर शक और डर की तरह परिभाषित किया जाता है। लेकिन अब क्रिप्टोकरंसी सोने (मूल्य के स्टोर के रूप में) और डॉलर (भुगतान के स्रोत के रूप में) के विकल्प के रूप में मशहूर हो रही है।
सबसे ज्यादा ट्रेड बिटकॉइन हो रहा है, जिसकी ट्रेडिंग $55,000 से ज्यादा पर हो रही है। यह एक साल पहले की कीमत से 5 गुना है। इसने इसे सबसे लाभदायक निवेश बना दिया है और बहस शुरू हो गई है कि इस उत्साह का मतलब क्या है। क्या यह एक और वित्तीय बुलबुला है? या संकेत है कि बिटकॉइन नया माध्यम बनकर उभर रहा है, जो एक दिन डॉलर की जगह ले लेगा? कई लोग इस चिंता में बिटकॉइन खरीद रहे हैं कि सेंट्रल बैंक बड़ी मुद्राओं का अवमूल्यन कर रहे हैं। लॉकडाउन अर्थव्यवस्थाओं को जिंदा रखने के लिए केंद्रीय बैंक रिकॉर्ड गति से नोट छाप रहे हैं। दुनिया में चल रहे सभी यूएस डॉलरों में 20% पिछले साल जून में छपे थे।
लेकिन बिटकॉइन के बढ़ने का संदेश साफ है। सरकार कितना भी छाप लें या उधार ले लें, लेकिन एक लोकप्रिय प्रतिक्रिया होगी। बिटकॉइन का बढ़ना पहले ही वैश्विक वित्तीय तंत्र में घटते विश्वास को दिखा रहा है, खासतौर पर युवाओं में। 40 साल से ज्यादा आयु वाले सोना पसंद करते हैं, जिसे मानक मुद्राओं के गिरने से सुरक्षा के लिए खरीदा जा रहा है।
वे बिटकॉइन को लेकर आशंकित रहते हैं। ज्यादातर बुजुर्ग इसलिए आशंकित हैं क्योंकि बिटकॉइन की कीमत कम समय में बहुत घटी-बढ़ी है, कुछ सौ डॉलर से लेकर $60,000 तक। आज 50 साल से ऊपर के सिर्फ 3% लोग कहते हैं कि उनके पास क्रिप्टोकरंसी हैं।
युवा पीढ़ी इन बातों को नकार रही है। बतौर ‘डिजिटल नागरिक’ वे बिटकॉइन की कहानी से सहज हैं। कई न सिर्फ सोने की जगह बिटकॉइन पसंद कर रहे हैं, बल्कि टेक्नोलॉजी की सराहना करते हैं, जो पीअर टू पीअर नेटवर्क इस्तेमाल करती है, जिसपर किसी एक सरकार का नियंत्रण नहीं है। वे इसे वैश्विक वित्तीय तंत्र के विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिकरण का तरीका मानते हैं। आज 35 साल से कम के चार वयस्कों में से एक के पास क्रिप्टोकरंसी है।
युवाओं में समर्थन से बिटकॉइन का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है। यह ऐसी भविष्यवाणी है जो महामारी से पहले की तुलना में अब ज्यादा मुमकिन नजर आती है। क्रिप्टोकरंसी की लोकप्रियता शायद पारंपरिक मुद्राओं में घटते विश्वास के कारण बढ़ रही है। अमेरिकी अधिकारियों को इसे लेकर आत्मविश्वास है कि लॉकडाउन की प्रतिक्रिया में वे अवमूल्यन किए बिना असीमित डॉलर छाप सकते हैं। यूरोप और चीन लंबे समय से यूरो और रेनमिनबी को बड़ी मुद्रा के रूप में स्थापित करना चाहते हैं, लेकिन उनकी सरकारें दुनिया का विश्वास जीतने में असफल रही हैं।
अब बिटकॉइन ऐसे समय में विकल्प बनकर उभर रहा है, जब डॉलर ‘टिपिंग पॉइंट’ पर है। पिछले साल के अंत में, दशकों बढ़ते रहने के बाद, बाकी दुनिया के लिए अमेरिकी ऋण ने अपने आर्थिक उत्पादन का 50% पार कर लिया। ऐसी सीमा जो आने वाले मुद्रा संकट की ओर इशारा करती है। बिटकॉइन का उदय अब भी बुलबुला साबित हो सकता है, लेकिन अगर यह फूटा भी तो क्रिप्टोकरंसी अमेरिका समेत दुनियाभर की पैसे छापने वाली सरकारों को चेतावनी देकर जाएगी।
यह न मानकर चलें कि आपकी पारंपरिक मुद्राएं ही मूल्य रख सकती हैं या एक्सचेंज का साधन बन सकती हैं, जिस पर लोग विश्वास करें। तकनीक में पारंगत युवा तब तक विकल्प तलाशना बंद नहीं करेंगे, जब तक कि वे इसे खोज न लें। बिटकॉइन के बूम के नियमन की कोशिश, जैसा कुछ सरकारें कर रही हैं, शायद जनवादी विद्रोह में तेजी ही लाएंगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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