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एन. रघुरामन का कॉलम:आप अपनी जरूरत को लेकर जिद करेंगे, तो आप अपनी दुनिया बदलेंगे, लेकिन याद रखें कि आपकी जिद अच्छे उद्देश्य के लिए हो, जिसकी समाज सराहना कर सके

2 वर्ष पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

कुछ राज्यों में सरकारी स्कूलों समेत कुछ स्कूल गुरुवार से नए अकादमिक सत्र के लिए शुरू हो गए। क्लास वर्चुअली ही चल रही हैं। शिक्षकों से छात्रों को इंटरनेट, फोन, टीवी और रेडियो की उपलब्धता के आधार पर बांटने कहा गया है। जिनके पास इनमें से कोई भी संचार साधन नहीं है, वहां शिक्षक माता-पिता से आस-पड़ोस में ऐसे डिवाइस खोजने कहेंगे। शिक्षकों को डिजिटल अंतर या बंटवारे के कारण उपस्थिति को लेकर संशय था। दूसरी तरफ बच्चे, गरीब माता-पिता पर फोन और लैपटॉप खरीदने का दबाव बना रहे हैं, जिसे दिलाने में वे सक्षम नहीं हैं। लेकिन कुछ अलग कहानियां भी हैं।

इनमें बच्चे जिद्दी थे, माता-पिता गरीब थे लेकिन समाज बच्चों की जिद से प्रभावित हुआ और उनकी हरसंभव मदद की। अगर आप उसे फूल बेचते हुए देखेंगे तो तुरंत उसकी पीढ़ी को लेकर नकारात्मक भावना आएगी। क्योंकि 16 वर्षीय बनशंकरी हमेशा मोबाइल देखती रहती है। वह बेंगलुरु के शक्ति देवते मंदिर के बाहर फूल बेचती है और सुबह 8 से दोपहर 2 बजे के बीच और फिर शाम को चार घंटे दुकान पर बैठती है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि मोबाइल पर उसका ध्यान मनोरंजन के लिए नहीं, उसकी क्लास के लिए रहता है।

जब बेंगलुरु के नगरीय निकाय के प्रमुख गौरव गुप्ता को उससे पूछने पर यह पता चला तो उन्होंने बनशंकरी का ऑनलाइन क्लास के लिए समर्पण देखकर इस सोमवार को लैपटॉप देने का वादा किया। हालांकि पहले उसका पूरा ध्यान परिवार की इस मुश्किल वक्त में मदद करने पर था और उसे शिक्षा की तरफ ज्यादा आकर्षित नहीं होना था लेकिन कोविड और उसके असर ने उसे खुद के लिए ‘संकल्प’ लेने के लिए प्रेरित किया कि वह डॉक्टर बनकर अनगिनत लोगों की मदद करेगी। इसीलिए वह हमेशा मोबाइल में आंखें गड़ाए रहती थी।

झारखंड की 11 वर्षीय तुलसी कुमार का उदाहरण देखें। पांचवीं की यह छात्रा ऑनलाइन शिक्षा जारी रखने के लिए स्मार्टफोन लेना चाहती थी। वह आम बेचकर जो भी कमाती, परिवार के राशन में खर्च हो जाता। लेकिन उसने मोबाइल खरीदने की ठान ली और लॉकडाउन में सड़क किनारे आम बेचने लगी। एक पत्रकार ने उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की।

बच्ची की पढ़ाई की यह ललक मुबंई के एक बिजनेसमैन के दिल को छू गई और उन्होंने 10 हजार रुपए प्रति आम की दर से 12 आम खरीदे, साथ ही उसे मोबाइल भी दिया। बिजनेसमैन अमेय हेटे ने इतनी कीमत इसलिए चुकाई क्योंकि वे बच्ची की जीजीविषा से और हर परिस्थिति में सपने पूरा करने के प्रयास से बहुत प्रभावित हुए।

गोवा में छात्रों के पास गैजेट हैं, लेकिन उनकी समस्या दूसरी है। बीएसएनएल का नेटवर्क। वे जंगल से गुजरते हुए, अपनी जान जोखिम में डालकर ऊंची जगह पहुंचकर नेटवर्क तलाशते हैं। उन्हें जंगल में सिर्फ जानवरों का जोखिम नहीं है, बल्कि मानसून में जंगली रास्ते फिसलन भरे हो जाते हैं।

छात्रों ने कई बार अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। फिर खराब नेटवर्क कनेक्टिविटी के कारण ऑनलाइन क्लास के लिए संघर्ष कर रहे सत्तारी तालुका के कोडव, सत्रे और डिरोड गांव के छात्रों ने तंग आकर मंगलवार को वालपोई के बीएसएनएल ऑफिस तक विरोध में जुलूस निकाला। और गुरुवार को बीएसएनएल ने उनकी समस्या सुलझाने का फैसला लिया।

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