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दोनों टेक सिटी हैं और दोनों शहर देश में आईटी में नौकरी तलाशने वालों की मंजिल रहे हैं। यही इन दोनों शहरों की महानगरीय प्रकृति के साथ, यहां फैशन और ट्रेंड जैसी चीजों के फलने-फूलने के मुख्य कारणों में से एक है। दिलचस्प यह है कि दोनों शहरों में रिटायर्ड लोग भी हैं।
प्राकृतिक खूबसूरती, शानदार मौसम ने पेशेवरों के साथ रिटायर्ड लोगों को भी आकर्षित किया। चूंकि इनमें बुजुर्ग और युवा थे, यहां रियल एस्टेट बहुत फूला-फला क्योंकि एक के पास रिटायरमेंट की बचत थी और दूसरे के पास नए दौर का वेतन। यही कारण है कि आज दोनों शहरों के नगरीय निकाय तेज गति सड़कें, आधुनिक एयरपोर्ट के साथ सैनिटेशन की सुविधाएं आदि बना रहे हैं।
लेकिन सबसे जरूरी सेवा, पेयजल देने में वे अब भी जूझ रहे हैं। जब जिंदगी की इस सबसे बड़ी जरूरत ही बात हुई तो पुणे ने नगरीय प्राधिकरण को उनकी बुरी प्लानिंग के लिए दोष देना चुना, जबकि बेंगलुरु में कुछ आवासीय कॉम्प्लेक्स ने जल्द आ रहे गर्मी के मौसम को देखते हुए नगरीय निकायों पर निर्भर न रहते हुए अपनी बिल्डिंग को ‘वॉटर पॉजिटिव’ बनाने का मिशन शुरू किया है।
पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने 2018 में शहरभर में पानी की 24x7 बराबर सप्लाई के लिए 3,513 करोड़ रुपए की लागत वाली परियोजना शुरू की। वितरण तंत्र में राजस्व न देने वाले पानी के स्तर को कम करने के लिए व्यवस्थित ढंग से लीकेज पता करना और सुधारना इस परियोजना का एक मुख्य उद्देश्य था।
यह जल आपूर्ति परियोजना के लिए बॉन्ड के जरिए 200 करोड़ रुपए इकट्ठे करने वाला देश का पहला नगरीय निकाय भी था। इसकी 2021 में तीन साल की डेडलाइन खत्म हो रही है और अब तक ओवरहेड टैंक बनाने का 36% काम ही पूरा हुआ है। साथ ही पाइपलाइन बिछाने का 18% और पानी के मीटर लगाने का 8% काम पूरा हुआ है। नागरिकों और नगरीय निकाय में दोषारोपण का खेल पहले ही शुरू हो गया है।
पानी की जरूरतों में आत्मनिर्भर होने के लिए व्हाइट फील्ड्स में महंगे रहवासी इलाके ‘ब्रिगेड कॉस्मोपोलिस’ के निवासी अगले महीने से एटमॉसफेरिक वॉटर जनरेशन अपना रहे हैं। यह प्रोजेक्ट एक मार्च से प्रारंभिक स्तर पर शुरू हो रहा है, जो अभी कॉम्प्लेक्स के करीब 80 हाउसकीपिंग कर्मचारियों के अपार्टमेंट को पानी देगा। पानी एटमॉसफेरिक वॉटर जनरेटरों से आएगा, जो हवा में मौजूद नमी का द्रवीकरण कर पेयजल बनाएंगे। हवा में मौजूद भाप से पानी बनाने की विधि को एयर या एटमॉसफेरिक वॉटर जनरेशन कहते हैं।
बतौर अवधारणा यह तरीका 1900 से ही उपलब्ध है। पहले 1990 के दशक में इसे चुनिंदा उद्योगों में आपातकालीन जल आपूर्ति के लिए अपनाया गया, जैसे सैन्य बल, जहाज आदि। अब इसे आम लोगों की जिंदगी में लाने के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं और शुरुआती स्तर पर 6 महीने के लिए जनरेटर लगाए जा रहे हैं, जिसे जनरेटर कंपनी मुफ्त दे रही है।
करीब 80 हाउसकीपिंग स्टाफ 650 फ्लैट में सेवाएं देते हैं, जिनमें 2000 लोग रहते हैं। अभी वे उनके लिए करीब 12,000 रुपए प्रतिमाह पेयजल पर खर्च करते हैं। 150 लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाला जनरेटर कम से कम 100 लीटर पानी दे सकता है, जिस पर कॉम्प्लेक्स को प्रतिमाह 5000 रुपए खर्च करने होंगे। साथ ही जनरेटर की कीमत 2.95 लाख रुपए है और रखरखाव पर 10 हजार रुपए खर्च होंगे।
फंडा यह है कि आज की दुनिया में जहां पॉजिटिव शब्द डराने वाला है और हम सभी के लिए निगेटिव है, वहां ‘वॉटर पॉजिटिव’ एक नई सोच है, जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए जीने का नया तरीका है।
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