डॉ. एम. चंद्र शेखर का कॉलम:कर्ज पर मिल रहे प्रोत्साहन बचत की आदत में बाधा बन रहे हैं

2 वर्ष पहले
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डॉ. एम. चंद्र शेखर, असि. प्रोफेसर, इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइज, हैदराबाद - Dainik Bhaskar
डॉ. एम. चंद्र शेखर, असि. प्रोफेसर, इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइज, हैदराबाद

तकनीक युवा पीढ़ी को कर्ज की नीति पर चलने वाला बना रही है और उसके भीतर से बचत के बीज को खत्म कर रही है। बैंक और नॉन-बैंकिंग संस्थान आज डेटा व आर्टीफिशियल इंटलिजेंस का इस्तेमाल करके कर्ज न लेने वालों या नए कर्ज लेने वालों के लिए बिना थके प्रोत्साहन दे रही हैं। ये वित्तीय संगठन जितनी रुचि ऋण देने में दिखा रहे हैं, उतनी बचत करने में नहीं दिखाते।

ये संस्थान तकनीक का इस्तेमाल करके ‘डेट फॉर नीड’ या ‘डेट फॉर नैसेसिटी’ जैसे अनेक इनोवेटिव उत्पाद भी पेश कर रहे हैं। वे कम ब्याज दर, शून्य प्रोसेसिंग शुल्क या शून्य ब्याज दर जैसे प्रोपोगेंडा को बढ़ावा देकर युवा पीढ़ी और मध्यम वर्ग के लोगों को कर्ज लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

फायनेंस का पहला पाठ है कि कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता। इसलिए ऋण पर मुफ्त के इंसेंटिव कैसे संभव हैं? किसी भी कर्ज से जुड़े हुए मुख्य कारक होते हैं- प्रोसेसिंग शुल्क, ब्याज दर, मासिक किस्त और स्टांप शुल्क आदि। इन पर इंसेंटिव के अलावा आज के दौर में कैशबैक, नकद छूट, रिवार्ड प्वाइंट, मुफ्त कूपन आदि कुछ ऐसे प्रोत्साहन हैं, जो कर्ज को आकर्षक बनाते हैं। प्रतिस्पर्धा के दौर में यह कैसे संभव है? अधिकांश लोग यह नहीं समझ पाते हैं कि ये वित्तीय संस्थान असल में यह सभी इंसेंटिव हमारी जेब से ही निकालते हैं।

ये कंपनियां ऋण देने से पहले ही इन ऑफरों का मूल्यांकन हमारे ऋण के साथ कर लेती हैं और इंसेंटिव के नाम पर उसे हमें पेश कर देती हैं। लोग इन प्रोत्साहनों से प्रभावित होकर कर्ज में फंस जाते है। नई पीढ़ी बचत योजनाओं से तो अनजान है, लेकिन क्रेडिट कार्ड के ऑफर, विभिन्न ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर मिलने जीरो ईएमआई की उसे पूरी जानकारी है।

तकनीक ने युवाओें को कर्ज के चक्रव्यूह में कैसे फंसाया है, इसकी बानगी देखिए। एसबीआई क्रेडिट कार्ड लिमिटेड की 2020 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 138 करोड़ लोगों की औसत आयु 28.4 साल है। 2014 में जो सकल घरेलू उत्पाद 90,000 करोड़ था वह 2020 में 1.52 लाख करोड़ हो गया। इस विकास को हासिल करने में शामिल युवाओं पर 35 फीसदी कर्ज है। इसके अलावा पिछले कुछ सालों में अनेक परंपरागत बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कमी हुई है। यहीं नहीं मध्यम वर्ग इन बचत योजनाओं पर मिलने वाले ब्याज पर टैक्स भी दे रहा है।

सही नीति न होने से इन योजनाओं से निकासी भी लगातार बढ़ रही है। पिछले 12 सालों में सकल बचत दर में भी भारी गिरावट आई है। जो बचत दर 2008 में 32.78% थी वह 2019 में गिरकर 27.6% रह गई। कोविड की वजह से इसमें और गिरावट की आशंका है। यही नहीं बैंक में जमा करने की बजाय बचत को सोने अथवा रियल एस्टेट में निवेश किया जा रहा है। इस तरह के लंबी अवधि के निवेश अर्थव्यवस्था को कुछ नहीं देते और ये वित्तीय संसाधन अनुपयोगी हो जाते हैं। यहीं नहीं सोने और जमीन की कीमतें आज आम आदमी के दायरे से बाहर हो गई हैं। इसी के परिणाम स्वरूप बाजार में नकदी की कमी होने से महंगाई बढ़ रही है और इससे कर्ज पर ब्याज दर अधिक और बचत पर कम हो गई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)