दिवाली की चकाचौंध ने एक बात के लिए तो आश्वस्त कर दिया कि हम कितनी ही आर्थिक मंदी के दौर से गुजरें, कहीं न कहीं अपनी मस्ती ढूंढ ही लेते हैं। दरअसल इसके पीछे हमारी सबसे बड़ी ताकत है हमारे परिवार। पिछले दिनों स्वामी अवधेशानंद गिरिजी से हुई भेंट के दौरान उन्होंने भारतीय परिवार की व्यवस्था का विश्लेषण करते हुए कहा, हर मुसीबत के बाद भारतीय लोग क्यों जल्दी से उबर जाते हैं, इसके पीछे सबसे बड़ा सहारा है हमारे परिवार।
अमेरिका में जब आर्थिक मंदी का दौर आया तो वहां परिवार का ढांचा बहुत आहत हुआ, लेकिन भारत में परिवार के कारण ही हम हर संकट से पार पाकर फिर अपनी मस्ती में डूब जाते हैं। भारतीय परिवारों में अच्छी व्यवस्था है वानप्रस्थ की। स्वामीजी का कहना था हमें इस व्यवस्था को और पुष्ट करना है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने जिन चार आश्रमों की व्यवस्था दी है (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) ये चारों एक जीवनशैली है। गृहस्थ जीवन के बाद एकांत व होश के साथ हर गतिविधि करने वाला वानप्रस्थ होता है। इसका अगला कदम है संन्यास। संन्यास यानी सबका त्याग, वानप्रस्थ यानी क्या छोड़ना-क्या पकड़ना की समझ। तो जब समय आए, परिवार के जीवन में वानप्रस्थ का जीवन जीएं, क्योंकि यह वह कड़ी है जो पूरी पारिवारिक व्यवस्था को स्वस्थ व समृद्ध रख हमें मुसीबत से उबार देगी।
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