क्या आप जिंदगी में अपना लक्ष्य या ‘स्वधर्म’ हासिल कर पाए हैं, जैसा जैसा श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा था? हमेशा से आपको कहा गया कि क्या करना है। जन्म से ही माता-पिता ने आपके लिए चुनाव किए- कहां पढ़ेंगे, क्या पहनेंगे, यहां तक कि क्या खाएंगे। शायद तभी जब आपने चुनाव किया तो सीधा जंक फूड पर कूद पड़े क्योंकि असल में आपने विद्रोह किया।
शायद आपके माता-पिता ने विज्ञान चुनने का दबाव डाला हो, उन्हें उम्मीद रही हो कि आप डॉक्टर या इंजीनियर बनेंगे या सिविल सेवक। पर इस प्रक्रिया में आधे रास्ते तक, भले ही आप उसमें सफल हों और लक्ष्य हासिल कर लिया हो, लेकिन तब भी आप खुद को नाखुश पाते हैं। और आप सोचना शुरू कर देते हैं कि मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है? उन सपनों (मेरे माता-पिता के सपने, जो कि मुझे लगा कि मेरे हैं) को हासिल करना कैसे मुमकिन हो और तब भी भ्रमित हैं।
असल में हकीकत यह है कि शायद आप अपने स्वधर्म से जितना सोचा था, उससे कहीं अधिक दूर हैं। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार अपने स्वधर्म के विपरीत काम करना यानी परधर्म वास्तव में कुछ भी न करने की तुलना में और ज्यादा बुरा है!
ऐसे में हम अपने जीवन का लक्ष्य कैसे खोज सकते हैं? यहां कुछ तौर-तरीके हैं, जिन्हें मैंने खुद आजमाया है और अपने विद्यार्थियों के साथ भी प्रयोग किया है और यह हमेशा कारगर रहा है।
1. अपने बचपन के बारे में सोचें। ऐसा क्या था, जिससे आपको सच्ची खुशी मिलती थी और आपको कहां सुकून मिलता था? क्या यह संगीत था या कोई कला या गणित का कोई सवाल हल करना? स्कूल में किस चीज में सबसे ज्यादा आनंद मिलता था और किस काम में अच्छे थे?
2. अब जब आप बड़े हो गए हैं तो उस हुनर का क्या हुआ? ज्यादा संभावना है कि लोग आप पर हंसते हों या कहा हो कि वह फिजूल था और आपको जाकर पढ़ाई करनी चाहिए।
3. उस हुनर के बारे में सोचें और देखें कि क्या कोई तरीका है कि उसे फिर से अपनी जिंदगी में वापस लाया जा सके। यह शायद छोटे तरीके से हो सकता है। क्या कोई जरिया है कि उसे अपने काम में लेकर आएं? अगर हां तो कैसे?
4. अब एक मिनट के लिए आंखें बंद करें और सोचें कि आप वह काम कर रहे हैं- बचपन के उस जुनून को जी रहे हैं, उसमें ट्रेनिंग बढ़ा रहे हैं, फिर इस क्षमता के साथ उभरकर आ रहे हैं कि उसके लिए लोग आपको पैसे दे रहे हैं। अपने उस हुनर से कुछ पैसा बनाएं और दुनिया की सेवा करें।
जीवन का उद्देश्य खोज पाना मुश्किल होता है, खासकर तब, जब आप उससे बहुत दूर जा चुके होते हैं या उसे लंबे समय से नजरअंदाज कर रहे होते हैं। पर स्वधर्म खोजने में कभी भी देर नहीं होती, क्योंकि जब आप इसे पा लेंगे और उसका अनुसरण करेंगे, तभी पता चलेगा। वो अहसास बहुत अनोखा और बलवती होता है। मुझे उम्मीद है कि नई ऊंचाइयां पाने में यह लेख आपकी कुछ मदद करेगा।
जीवन का उद्देश्य खोजना मुश्किल होता है, खासकर अगर आप उससे बहुत दूर जा चुके होते हैं। पर अपना स्वधर्म खोजने में कभी देर नहीं होती, क्योंकि जब आप इसे पा लेंगे तब अहसास अनोखा होगा।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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