फिल्मकार रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सूर्यवंशी’ दीपावली के एक दिन बाद सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है। गौरतलब है कि महामारी के समय अनेक सिनेमाघर बंद हो गए। रोहित शेट्टी का प्रयास है कि अब सिनेमाघर धूमधाम से खुल जाएं। ‘सूर्यवंशी’ इस ढंग से बनाई गई है कि घटनाक्रम में नाटकीय मोड़ पर ‘सिंबा’ का रणवीर सिंह अभिनीत पात्र समस्या के निदान के लिए अपनी मूल वर्दी में ही उपस्थित होता है।
इसी तरह अन्य महत्वपूर्ण मोड़ पर अजय देवगन अभिनीत पात्र ‘सिंघम’ भी परदे पर प्रस्तुत होगा। फिल्म में अक्षय कुमार अभिनीत पात्र एक अपराधी को पकड़ने का प्रयास कर रहा है। इसी तरह शाहरुख खान अभिनीत ‘पठान’ में ‘एक था टाइगर’ का एक पात्र प्रवेश करता है। ‘पठान’ में ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ अभिनीत फिल्म ‘वॉर’ के पात्र ‘पठान’ की सहायता के लिए प्रस्तुत होते हैं।
इस तरह अनेक सितारों द्वारा सभी पात्र नई फिल्म के लिए प्रमुख पात्र की सहायता के लिए प्रस्तुत हो जाते हैं। हॉलीवुड में इस तरह के प्रयोग किए जा चुके हैं। सारे प्रयास दर्शक को सिनेमाघर में लाने के लिए किए जा रहे हैं। ओ.टी.टी मंच ने दर्शक को घर बैठे मनोरंजन देने का प्रयास किया है। इस तरह सारे फिल्मकार मिलकर दर्शक को सिनेमाघर में आमंत्रित कर रहे हैं।
फिल्म देखने का आनंद टेलीविजन या मोबाइल से कई गुना सिनेमा घर में ही आता है। ओ.टी.टी पर फिल्म के सीन के कुछ अंश स्पष्ट नजर नहीं आते और पार्श्व संगीत के कुछ स्वर भी दब जाते हैं। वर्तमान में सितारों का जमावड़ा किया जा रहा है और अगर विगत समय में यह होता तो राज कपूर, दिलीप कुमार, देवानंद एक ही फिल्म में नजर आते। धर्मेंद्र, मनोज कुमार और राजेंद्र कुमार एक ही फिल्म में दिखाई देते।
सारांश यह है कि सिनेमा में इंद्रधनुष का मनभावन सीन हम देख पाते। क्या राजनीति के क्षेत्र में इसी तर्ज पर सारे नेता एकजुट होकर मानव कल्याण का काम कर सकते हैं ? उस काव्य की कल्पना करें जिसे कबीर, गुरु रविंद्र नाथ टैगोर और जयशंकर प्रसाद मिलकर रचते। क्या मुंशी प्रेमचंद, शरत और राजिंदर सिंह बेदी संयुक्त प्रयास करते? दरअसल, सृजन संसार में एकल प्रयास का ही महत्व है।
प्रकाशन क्षेत्र और कृषि में सहकारिता का आदर्श काम आता है। ज्ञातव्य है कि अजय देवगन के संयुक्त परिवार में अनेक लोग एक ही बंगले में रहते हुए भी अपना स्वतंत्र कार्य करते हैं। ऋषिकेश मुखर्जी की राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म ‘बावर्ची’ में एक संयुक्त परिवार भीतर ही भीतर बंटा हुआ है। ‘बावर्ची’ का पात्र ऐसे ही परिवार में सबको एकजुट कर अपना काम करके चला जाता है।
काश, स्कूल में सप्ताह में एक दिन छात्र शिक्षा दें और पढ़ाने वाले छात्रों की तरह कक्षा में बैठें। होलकर कॉलेज के अंग्रेजी साहित्य विभाग में प्रोफेसर के.के केमकर इसी तरह का प्रयोग करते थे। विजय आनंद की फिल्म ‘काला बाजार’ में सारे फुटकर व्यापारी आंशिक मुनाफा प्राप्त करते हुए संयुक्त प्रयास द्वारा बाजार पर एक व्यक्ति के अधिकार को तोड़ते हैं।
शांताराम की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ में मेहनतकश लोग अवाम को सस्ते में माल बेचते हैं, तो दलाल उनकी पिटाई करता है। ज्ञातव्य है कि 1928 में बारदोली किसान आंदोलन की सारी मांगे तत्कालीन हुकुमत-ए- बरतानिया ने स्वीकार कर लीं थीं। गोया की मनुष्य की शारीरिक रचना में प्रकृति ने सहकारिता आदर्श को प्रस्तुत किया है। सारे अंग मस्तिष्क के आदर्शों का पालन करते हैं।
बांया हाथ, दाएं हाथ से नहीं लड़ता। मस्तिष्क, बाएं और दाएं में सामंजस्य बनाता है। दोनों पैर अलग-अलग दिशा में नहीं जाते। मानव शरीर में ही आग और पानी में कोई द्वंद्व नहीं है। पेट में भूख की ज्वाला उठते ही पचाने के लिए आवश्यक तरल पदार्थ उपस्थित हो जाता है। मस्तिष्क में बाईं ओर का तर्क, दाएं ओर की भावना का सम्मान करता है। अत: एकता में शक्ति होती है, विभाजन हमें कमजोर करता है।
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