राकेश ओमप्रकाश मेहरा और संजय लीला भंसाली अपनी-अपनी शैलियों में लता बायोपिक बनाने पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। संजय लीला भंसाली की फिल्मों में राग, रंग और ध्वनि का अतिरेक होता है। कभी-कभी तो यह राग, रंग और ध्वनि की आरंजी लगता है। राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘रंग दे बसंती’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ यथार्थवादी फिल्में है। अतः भंसाली और मेहरा की फिल्म एक ही विषय पर होते हुए दो विभिन्न फिल्म लगेंगी। उनमें लता को खोजने के लिए प्रयास करना होगा।
बहरहाल दार्शनिक बर्गसन ने सिने विधा के आविष्कार के बाद ही कहा था कि मशीनी कैमरे में और मानव मस्तिष्क के कार्य करने में बहुत कुछ समानताएं हैं। मनुष्य की आंख सिनेमा के कैमरे की तरह है और विचार पटल एक बड़ा स्क्रीन है। मनुष्य की प्रतिभा भांति-भांति के बिम्ब रचती है। अधिकांश आम लोग अपने एकाकीपन में विगत की यादों के चलचित्र ही देखते हैं। इतना ही नहीं स्वप्न में भी फिल्म चलती रहती है। यादें जीवन में बड़ा महत्व रखती हैं। हम वर्तमान में अपने अच्छे कार्यों से भविष्य के लिए यादें ही रचते हैं।
लता मंगेशकर ने अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में कभी खुलकर कुछ नहीं कहा। एक बार एक खाड़ी देश में लता समारोह का आयोजन किया गया था। लता जी अपने वाद्य यंत्र बजाने की टीम के साथ गीतों का चुनाव और क्रम पहले ही तय कर लेती थीं। खाड़ी देश के आयोजक ने निवेदन किया कि वह कार्यक्रम का प्रारंभ ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ गीत से नहीं करें, क्योंकि खाड़ी देश में यह पसंद नहीं किया जाएगा। लता जी ने कहा कि वह कार्यक्रम के लिए ली राशि अभी लौटा रही हैं परंतु निर्धारित कार्यक्रम में परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
आखिरकार आयोजक ने उनकी बात मान ली। कार्यक्रम में ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ गीत पर तालियां बजाई गईं और उसे दूसरी बार सुनने का आग्रह भी किया गया। संगीत और साहित्य संसार में कोई संकीर्णता नहीं होती। लंदन में रॉयल एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंस नामक संगठन है। संगठन ही चुनता है कि किस कलाकार को ‘रॉयल’ में अपनी कला प्रस्तुत करने की आज्ञा दें। लता मंगेशकर ने कभी कोई आवेदन नहीं दिया फिर भी उन्हें वहां आमंत्रित किया गया और कार्यक्रम अत्यंत प्रशंसित हुआ।
कभी-कभी निर्माता गीत रिकॉर्डिंग के बाद तय रकम अदा नहीं करते। लता जी को राज सिंह डूंगरपुर पर विश्वास था। उन्होंने यह काम अपने हाथ में लिया इसके बाद सब कुछ व्यवस्थित हो गया। प्रस्तावित लता बायोपिक में लता की भूमिका कौन सा कलाकार करेगा। आशा भोंसले, मीना और हृदयनाथ मंगेशकर का किरदार कौन अभिनीत करेगा। दशकों पूर्व राज कपूर ने लता मंगेशकर को एक कथा सुनाई थी, जिसमें गायिका का मुख्य पात्र है और नायक एक अभिनेता है। लता जी ने प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया।
दशकों बाद राज कपूर ने उसी कथा में अनेक परिवर्तन करके उसे ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ नाम से बनाया। फिल्म में एक महत्वपूर्ण संदेश यह था कि बांध की ऊंचाई अधिक नहीं होनी चाहिए, उनके टूट जाने पर भारी तबाही हो सकती है। कुछ लोगों ने ऊंचे बांध का अर्थ स्वयं की ऊंचाई से जोड़ लिया। जगह-जगह छोटे बांध सस्ते होते हैं और उपयोगी भी होते हैं।
बहरहाल लता बायोपिक बनाना बहुत कठिन है परंतु ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए। लता मंगेशकर सच्चे अर्थों में भारत रत्न हैं। उनके गीत आज भी पाकिस्तान में भी सुने जाते हैं। दुबई और अल शारजाह के माध्यम से यह गीत वहां पहुंचते हैं। संगीत की कोई सरहद नहीं होती। लता की आवाज आज हम दसों दिशाओं में गूंजती हुई प्रतीत होती है।
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