समय का चक्र निरंतर घूमता रहता है। आज, कल में बदलते हुए आने वाला दिन हो जाता है। अरसे पहले एक मनोरंजक फिल्म बनी थी, जिसका नाम था ‘टाइम मशीन’। कहानी में वैज्ञानिक एक कार बनाता है, जिसमें बैठकर आप गुजरे हुए दौर की यात्रा कर सकते हैं। समय के बारे में फिल्मकार चेतन आनंद की फिल्म ‘कुदरत’ में क़तील शिफ़ाई का लिखा गीत है कि, ‘खुद को छुपाने वालों का, पल-पल पीछा ये करे, जहां भी हो मिटे निशां, वहीं जा के पांव ये धरे, फिर दिल का हर एक घाव, अश्कों से ये धोती है, दुख-सुख की हर एक माला, कुदरत ही पिरोती है।’
ऐसी कई वस्तुएं हैं, जो अब काम नहीं आतीं परंतु हमें वो याद आती हैं। एक दौर में घरो में स्टोव, भोजन पकाने के उपयोग में था। अत: केरोसिन से चलने वाला स्टोव लौट सकता है, क्योंकि रसोई गैस के दाम प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। इलेक्ट्रिक कार बहुत महंगी है और इसे रिचार्ज करने वाले ठिकाने अभी तक बनाए नहीं गए हैं। इस तरह हम बैलगाड़ी युग में जा सकते हैं, जहां हमारी मुलाकात गाड़ीवान हीरामन से हो सकती है। बड़ी रोमांचक कल्पना है कि गाड़ीवान हीरामन का नया नाम मुसाफिर महात्मा गांधी हो।
ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी अपने पास हमेशा एक घड़ी रखते थे। समय की नब्ज पकड़ने वालों ने इस वर्तमान का आकल्पन नहीं किया था। टाइपिंग का भी एक दौर था। टाइपराइटर का लोकप्रिय ब्रांड रेमिंगटन हुआ करता था। टाइपिंग करने वाली महिला और जॉनी वॉकर पर गुरु दत्त ने अपनी फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ में गीत प्रस्तुत किया था। इसका यह अर्थ है कि 1955 तक तो टाइपराइटर हुआ करते थे। 1839 में स्थिर छायांकन करने वाले कैमरे का आविष्कार हुआ।
चलती-फिरती तस्वीरें लेने वाला कैमरा लुमियर बंधुओं ने 1895 में ईजाद किया। अभिव्यक्ति का यह नया माध्यम अनेक दौर से गुजर कर आज भी कायम है। अब यह डिजिटल हो गया है। कहीं हैंडसेट फोन भी इस्तेमाल होते हैं। मोबाइल क्रांति ने इन्हें पुरातन वस्तु में बदल दिया है। पेंडुलम वाली घड़ी अब इस्तेमाल नहीं होती। गुरुदत्त की ‘साहब बीवी और गुलाम’ में घड़ी बाबू का पात्र, सामंतवादी कोठी में लगी सभी घड़ियों में चाबी भरता है। हरींद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने घड़ी बाबू का पात्र अभिनीत किया था।
बिमल रॉय की फिल्मों में प्रस्तुत कंपनी का प्रतीक चिन्ह मुंबई के रजब अली टॉवर की घड़ी रहा है। पहले कलाई घड़ी, पिता से पुत्र और पुत्र से पोते तक इस्तेमाल की जाती थी। गुरु दत्त की फिल्म का गीत है, ‘सुनो गजर क्या गाए, समय गुजरता जाए।’ जावेद अख्तर फरमाते हैं कि ‘चलती हुई ट्रेन से देखने पर हमें स्थिर खड़े वृक्ष भागते हुए से दिखते हैं।’ उनका कथन है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हम स्थिर खड़े हैं और समय चलती हुई ट्रेन की तरह भाग रहा है। कहावत है कि समय बलवान हो तो गधा भी अपने को पहलवान समझने लगता है।
समय की धोबी पछाड़ सबको चित्त कर देती है। बलराज साहनी अभिनीत फिल्म का गीत उम्मीद देता है, ‘रात भर का है मेहमां अंधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा, रात जितनी भी संगीन होगी, सुबह उतनी ही रंगीन होगी।’ समय की गणना की लोकप्रिय अवधारणा ईसा मसीह के क्रॉस पर चढ़ाए जाने के दिन से की जाती है।
पंचांग को भी विश्वसनीय माना जाता है। कहते हैं कि हरियाणा में भृगु संहिता नामक किताब में सारे मनुष्यों का भूतकाल, वर्तमान और भविष्य दर्ज है। समय की अबूझ पहेली में नहीं उलझते हुए हमें वर्तमान को खुलकर और जी भर का जीना चाहिए। हर पल सक्रिय और सृजनशील बने रहना चाहिए।
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