राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने हाल ही में देश की आर्थिक वृद्धि दर से जुड़े अनुमान जारी किए। ये कई कारणों से महत्वपूर्ण है। एनएसओ ने जीडीपी ग्रोथ या वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की दर 9.2% रहने का अनुमान लगाया है। यह आरबीआई के 9.5% अनुमान से थोड़ा कम और सरकार के 10 फीसदी से थोड़ा और नीचे है। जाहिर तौर पर एनएसओ के पास हालिया डाटा था, जबकि सरकार ने इस साल के शुरुआती दौर में अपना अनुमान जाहिर किया था।
9.2% की यह वृद्धि दर वित्तीय वर्ष 2020 से 1.3% ज्यादा है। इसका मतलब है कि हम कोविड के पहले वाले स्तर तक बस पहुंच ही गए हैं और कोविड के कारण लगे लॉकडाउन से हुए नुकसान की भरपाई लगभग हो गई है। असली वृद्धि वित्तीय वर्ष 2023 से होना शुरू होगी। हालांकि 9.2% की यह वृद्धि दर नॉमिनल जीडीपी में बहुत अधिक वृद्धि दर के साथ मेल खाती है, जो मुद्रास्फीति को भी ध्यान में रखती है। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर 17.6%, 232 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है, जबकि वित्तीय वर्ष 2022 के लिए ये 223 लाख करोड़ रुपए थी।
इससे राजकोषीय घाटे का अनुपात को फायदा है, जो जिसका बजट 6.8% था। ये अनुपात 0.3% नीचे आएगा। दूसरी बात यह है कि आरबीआई को तरलता वापसी के दृष्टिकोण पर गंभीरता से पुनर्विचार करना होगा। ऐसी उम्मीद थी कि फरवरी 2022 में रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने के साथ शायद पहला कदम उठाया जाएगा (बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर जिस रेट पर ब्याज मिलता है, अभी यह 3.35% है।)पिछली बार आरबीआई ने कहा था कि जबकि वृृद्धि दर स्थायी थी, लेकिन टिकाऊ बने रहने का विश्वास नहीं जता सकते, इसलिए वह विराम लिया गया।
अब जबकि वृद्धि दर उसके अनुमान से भी थोड़ी कम है, मतलब आरबीआई अभी भी उसी विराम वाले मोड से चलेगा। तीसरा सरकार को खुद बजट पर कड़ी मशक्कत करनी होगी, हालांकि अधिकांश गुणा-भाग अब तक पूरे हो चुके होंगे। ओमिक्रॉन और तीसरी लहर ने इस जोड़-घटाने को पक्के तौर पर निराश किया होगा और यहां तक कि एनएसओ भी गंभीरता के आधार पर पूर्वानुमानों को 9.2% से नीचे की दिशा में संशोधित करने की जरूरत की बात कही है।
इसका ये भी मतलब है कि सरकार को एक बार फिर से बजट में कुछ कठोर निर्णय लेने पड़ेंगे, खासतौर पर खर्चों के लिहाज से, जहां अन्यथा अपेक्षा की जाती थी कि सरकार पूंजीगत व्यय पर अधिक खर्च करेगी। अब, विकल्पों पर फिर से गौर करने की जरूरत है और एक बार फिर से ध्यान गरीबों को राहत देने पर होगा और सब्सिडी तीसरी लहर की गंभीरता और लॉकडाउन पर निर्भर करेगी। निश्चित तौर पर स्वास्थ्य पहला मुद्दा होगा क्योंकि सराकर ने बूस्टर डोज देना शुरू कर दिया है, जो इस वर्ष का अन्य प्रमुख कार्यक्रम होगा।
राष्ट्रीय आय के अनुमान से दो रोचक तथ्य सामने आते हैं। पहला जीडीपी में कीमती सामानों के ऊंचे हिस्से के ट्रेंड से जुड़ा हुआ है, हालांकि ये परेशान करने वाला है। वित्तीय वर्ष 2020 में 1.2% यह वित्तीय वर्ष 2022 में 1.9% हो गया है। इसका क्या मतलब है? सोने पर खर्च बढ़ा है, यह देश के आयात में भी झलकता है, जो साल 2021 में 50 बिलियन डॉलर को पार कर गया। लोग वित्तीय बचत के बजाय सोने और स्टॉक के साथ क्रिप्टो करेंसी में निवेश कर रहे हैं, जो कि अच्छा ट्रेंड नहीं माना जाता।
विकास में गिरावट के कारण बहुत ज्यादा तरलता है, जहां बैंकों के पास जमाराशियां लेने का साधन नहीं है और पैसे लगाने की चंद साधन ही हैं। इसलिए जमा पर ब्याज दरें कम हैं, जिसका अर्थ यह हुआ कि परिवार अन्य जोखिम भरे विकल्पों की ओर चले गए हैं। ये अच्छा संकेत नहीं है। दूसरा पूंजी निर्माण है, जो कि निवेश है। एनएसओ ने ‘सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) के 27.1 से बढ़कर 29.6% रहने का कहा है।
चूंकि अभी निजी निवेश कम है, ऐसे में यह धरातल पर नहीं लगता और राज्य भी अपनी राजकोषीय प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए पूंजी पर खर्च नहीं कर रहे हैं। यह केवल केंद्र है जो थोड़ा-बहुत कर रहा है, हालांकि इस मद में राशि कम है। इसलिए ये आंकड़े संशोधित होंगे। इस सबका क्या मतलब है? अर्थव्यवस्था वित्तीय वर्ष 2020 की स्थिति पर वापस आ चुकी है, हालांकि इन अनुमानों में एनएसओ ने तीसरी लहर और उसके प्रभावों को शामिल नहीं किया है।
इसका मतलब है कि आरबीआई को ब्याज दरें बढ़ाने से पहले अभी और इंतजार करना होगा, जो महंगाई बढ़ने के साथ बचत करने वालों के लिए अच्छी खबर नहीं। अगले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति 5-6% के आसपास रहने की उम्मीद की जा सकती है। चूंकि एनएसओ अनुमानों द्वारा प्रदान किया गया उच्च आधार अपेक्षा से अधिक है, ऐसे में बजट तैयार करने में सरकार को कुछ फायदा होगा, लेकिन कोविड की तीसरी लहर के कारण संकट की आहट के मद्देनज़र सरकार को वित्तीय वर्ष 2023 के लिए कुछ अतिरिक्त राहत राशि फिर से सुरक्षित रखनी होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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