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मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:बढ़ते भारत की कमान अब नए मध्यवर्ग के हाथों में

2 महीने पहले
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक - Dainik Bhaskar
मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

जब पश्चिम मंदी की चपेट में आ रहा है, चीन की गति कोविड के कारण धीमी पड़ गई है और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप बढ़ती मुद्रास्फीति से ग्रस्त हो गया है, तब भारत दुनिया की सबसे टिकाऊ और लचीली अर्थव्यवस्था के रूप में डटकर खड़ा है। वह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।

विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार 2023-24 में भारत की इकोनॉमी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। 2020 में जब कोविड के कारण लॉकडाउन लगा और 2021 में दूसरी लहर आई, तब कम ही लोगों को अनुमान रहा होगा कि उसके बाद भारत इतनी तेजी से उभरकर सामने आएगा।

जबकि ओमिक्रॉन लहर के तुरंत बाद शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल की बढ़ी कीमतों से अधिकतर विकासशील देशों की इकोनॉमी को गहरा आघात पहुंचा है। मिसाल के तौर पर, पाकिस्तान की यह हालत है कि आज उसके पास केवल चार ही सप्ताह के आयात का विदेशी मुद्रा भंडार शेष रह गया है। उसके नए सैन्य प्रमुख जनरल असीम मुनीर पिछले सप्ताह मदद की गुहार लगाने सऊदी अरब गए थे।

विकसित देशों की हालत भी कोई बहुत अच्छी नहीं है। रिपोर्टों के मुताबिक आज कम से कम 20 प्रतिशत ऐसे ब्रिटिश परिवार हैं, जिन्हें खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति के 13 प्रतिशत से ऊपर चले जाने के कारण भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है। इसी महीने बिग इशू डॉट कॉम में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि बढ़ती कीमतों ने ब्रिटिश परिवारों के घर का बजट गड़बड़ा दिया है। खाद्य असुरक्षा बढ़ती जा रही है।

बीते 12 महीनों में भोजन-सामग्रियों और गैर-अल्कोहलिक पेय पदार्थों की कीमतों में 13.3 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। फूड फाउंडेशन के मुताबिक अक्षमजनों और अश्वेत व नस्ली समूहों को तो और अधिक विषमताओं का अनुभव करना पड़ रहा है। गोरों की तुलना में उनके लिए जोखिम अधिक है।

ब्रिटेन के कुछ हिस्सों में तो हालात इतने बदतर हैं कि लोगों को भोजन में कटौती करना पड़ रही है और कभी-कभी तो वे भूखे ही सोने को मजबूर हो रहे हैं। भारत की प्रतिव्यक्ति आय आज भी ब्रिटेन की तुलना में बहुत कम है, अलबत्ता उसमें हाल के सालों में तेजी से इजाफा हुआ है। लेकिन भारत के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत चलाए गए कार्यक्रम ने यह सुनिश्चित किया है कि ब्रिटेन जिस फूड पॉवर्टी से आज जूझ रहा है, वैसी स्थिति भारत में निर्मित न हो।

इसका यह मतलब नहीं कि भारत के सामने आर्थिक चुनौतियां नहीं हैं। गरीबी आज भी भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। करोड़ों भारतीय अमानवीय परिस्थितियों में जीवनयापन कर रहे हैं। अमीर-गरीब के बीच की खाई बढ़ी है, जिससे आर्थिक विषमता की स्थिति निर्मित हुई है। लेकिन उम्मीद की किरणें कम नहीं हैं। भारत के तीव्र विकास ने एक बड़े मध्यवर्ग को जन्म दिया है।

आज भारत में मोबाइल फोन धारकों की संख्या ही एक अरब के आसपास चली गई है। ई-कॉमर्स साइट्स का कहना है कि अब नॉन-मेट्रो शहरों के द्वारा भी सेल्स में बूम लाया जा रहा है। नए मध्यवर्ग के उदय के कारण भारत आर्थिक-विकास के अगले चरण में प्रवेश कर रहा है। वह नौकरियां सृजित करेगा और आय की विषमताएं घटाएगा। बदले में उपभोग बढ़ेगा, जिससे विकास का चक्र चल पड़ेगा।

अधिक जॉब्स निर्मित होंगे और अपवर्ड-मोबिलिटी बढ़ेगी। प्राइस के सीईओ राजेश शुक्ला ने अपने हाल ही के एक लेख में इसे बहुत अच्छी तरह से बताया है कि अभी तक भारत की जनसांख्यिकी इनवर्टेड पिरामिड की तरह थी, जिसमें कुछ लोग बहुत अमीर थे और बहुत सारे लोग कम आयवर्ग के थे। लेकिन अब उसका स्वरूप डायमंड जैसा होता रहा है, जिसमें निम्न आयवर्ग के लोगों का एक बड़ा प्रतिशत ऊपर उठकर मध्यवर्ग का हिस्सा बन रहा है।

एक वैश्वीकृत हो रहे भारत में उसका मध्यवर्ग ही समाज और राजनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। जाहिर है, इससे दुनिया में भी भारत का रुतबा बढ़ेगा। अब जब भारत को जी-20 देशों की अध्यक्षता मिल गई है तो उसे अपनी इकोनॉमी को और मजबूत बना लेना चाहिए। भारत के जिस मध्यवर्ग को उसके राजनेता अभी तक हलके में लेते आ रहे थे, वही अब देश की दशा-दिशा तय करने में केंद्रीय भूमिका निभाने जा रहा है।

भारत के तीव्र विकास ने एक बड़े मध्यवर्ग को जन्म दिया है। जिस मध्यवर्ग को राजनेता अभी तक हलके में लेते आ रहे थे, वही अब देश की दशा-दिशा तय करने में केंद्रीय भूमिका निभाने जा रहा है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)