अगर कोई रात को दो बजे उठकर किचन में शोर करते हुए, खुद के लिए कुछ अजीब-सा खाना पकाता है तो आप उसे क्या कहेंगे? यह खाना, मैगी में शहद से लेकर चॉकलेट सॉस में मिर्ची डालना तक हो सकता है। मेरे कई दोस्त हैं जो शाम को ‘रम और रसम’ ड्रिंक बनाते हैं। तीखी रसम को काली रम के साथ मिलाया जाता है। दूसरों को चौंकाने वाले ऐसे व्यवहार या जीवनशैली को ‘गॉब्लिन मोड’ कहते हैं।
यह नया शब्द है जो ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी के ‘वर्ड ऑफ़ द ईयर-2022’ की दौड़ में शामिल है। इसके जीतने की संभावना है क्योंकि इसे 3.18 लाख से ज्यादा वोट मिल चुके हैं। दरअसल गॉब्लिन एक छोटे पिशाच को कहते हैं जो कई यूरोपीय लोक कथाओं का हिस्सा है। इनमें पिशाच अलग-अलग शक्तियों, व्यवहार और रंग-रूप वाले होते हैं, जो कि इसपर निर्भर करता है कि कथा किस देश की है। ये शरारती से लेकर दुष्ट तक होते हैं।
इनकी शक्तियां किसी परी या शैतान जैसी होती हैं, जैसे रूप बदलने की शक्ति। वर्क फ्रॉम होम कल्चर और काम के अटपटे समय ने दुनियाभर के कई लोगों की जीवनशैली बदल दी है। जैसे, जयपुर, इंदौर, रायपुर या जमशेदपुर में रहने वाला कोई व्यक्ति अगर अमेरिकी कंपनी के लिए काम करता है तो उसका सोने से लेकर खाने तक का समय बदल जाता है।
इसलिए जिस किचन में आमतौर पर रात 9 बजे के बाद कोई गतिविधि नहीं होती, वहां आधी रात को भी हलचल होने लगती है। ‘गॉब्लिन मोड’ शब्द उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें ऐसे अटपटे समय पर मजबूरी में काम करना पड़ रहा है। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसे लोग ग्लानि महसूस करते हैं और बाकी लोगों के सामान्य जीवन में व्यवधान डालने के लिए माफी मांगते रहते हैं।
लेकिन यह शब्द उन लोगों के लिए है जो आधी रात को खटपट कर दूसरे सदस्यों को असहज महसूस कराते हैं लेकिन इसपर उन्हें कोई शर्मिंदगी या ग्लानि नहीं होती। वे ऐसे कपड़े भी पहनते हैं जो उन्हें खुद के लिए सही लगते हैं। भारत में ऐतिहासिक रूप से यह परंपरा रही है कि हम वही खाते हैं जो ज़बान को अच्छा लगे और वही पहनते हैं जो दूसरों की नज़र में अच्छा हो। लेकिन ‘गॉब्लिन मोड’ में रहने वाले लोग इसकी परवाह नहीं करते।
इसलिए पिछले कुछ महीनों में यह शब्द तेज़ी से मशहूर हुआ है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसे लोग वीकेंड से पहले अपना कमरा साफ़ नहीं करते। उनके अंदर यह भाव आ जाता है, ‘यह मेरा घर है, मैं जैसे चाहे रहूं।’ एक बार ‘गॉब्लिन मोड’ में रहने की आदत हो जाए तो फिर मेहमानों के आने पर भी नहीं बदलती। ऐसे लोग समाज में भी अलग-थलग पड़ जाते हैं। हम सामाजिक प्राणी हैं और समाज ने कुछ नियम बनाए हैं।
अगर इनमें से किसी नियम को तोड़ने पर कोई परेशान नहीं होता तो इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है। लेकिन जब नियम तोड़ना बाकी लोगों के लिए असुविधाजनक हो जाए तो समाज नियम तोड़ने वाले को किसी नाम से ताने मारने लगता है।
अब यह नाम ‘गॉब्लिन मोड’ है। इसलिए अगर कोई पानीपुरी में आलू की जगह श्रीखंड डालकर खाए क्योंकि वह ऐसा करना चाहता है, तो मुझे नहीं पता कि उन्हें क्या कहा जाएगा। लेकिन पानीपुरी के ठेले पर ऐसी मांग करने वाले को बाकी लोग ज़रूर अजीब मान सकते हैं, जिसे अब ‘जीने का गॉब्लिन तरीका’ कहा जा रहा है।
फंडा यह है कि अगर हम समाज के नियम नहीं मानेंगे तो वह हमें कई नामों से पुकार सकता है। अगर वे नाम हमें परेशान नहीं करते, तो हम पिशाच की तरह यानी ‘गॉब्लिन मोड’ में रह सकते हैं।
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