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एन. रघुरामन का कॉलम:अच्छी चीजें कूड़े में या विष में भी हो सकती हैं, इन्हें खोजें

4 महीने पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

अगर आप सिर्फ 27 साल के हैं, हाथ में एमसीए की डिग्री है और निजी बैंक में सेल्स मैनेजर बन गए हैं, तो क्या आप तब भी राज्य परिवहन में ड्राइवर बनने के सपने का पीछा करेंगे? आपका जो भी जवाब हो, पर पुणे के निगड़ी में रहने वाली शीतल शिंदे ने चार साल तक एक निजी बैंक में नौकरी और केबिन का आनंद उठाने के बाद महाराष्ट्र के राज्य परिवहन निगम में ड्राइवर की नौकरी करने का निर्णय लिया है।

जब मुझे शीतल के बारे में पता चला तो सदियों पुरानी सूक्ति याद आ गई- विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाशितं। अमित्रादपि सद्दृत्तं अमेध्यादपि काञ्चनम्॥ जिसका मतलब है कि हमें अच्छी चीजें अपनाने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए, फिर चाहे वह कहीं से आएं। यह विष से अमृत हो सकता है, छोटे बच्चे से बुद्धिमानी भरी सलाह हो सकती है, शत्रु का अच्छा गुण हो सकता है या कूड़े से सोना।

कुछ को लगेगा कि वह ताजी हवा के केबिन से प्रदूषित हवा वाले केबिन में क्यों जा रही हैं। शायद शीतल को लगता होगा कि वह इस तथाकथित ‘विष’ से अमृत निकाल सकती हैं। आज उसका अमृत यात्रा करने, अलग-अलग तरह के लोगों से मिलने का जुनून नजर आता है। यही वजह हो सकती है कि उसने यह विकल्प चुना हो। करियर बदलने वाली शीतल महाराष्ट्र की विभिन्न डिपो में नौकरी के लिए ट्रेन्ड हो रही 100 महिलाओं के पहले बैच में हैं।

2019 में वह चुनी गईं लेकिन कोविड से ट्रेनिंग टल गई। अब सिर्फ 2 महीने की ट्रेनिंग बची है और मार्च 2023 से पहले वह अपने बैच के 18 साथियों के साथ आधिकारिक रूप से चालक की जिम्मेदारी संभालेंगी, आजादी के बाद से यह महिलाओं का पहला बैच होगा। उन्होंने 3 हजार घंटे की ट्रेनिंग की। यह अलग-अलग रोशनी व सड़कों की हालत में बंटी थी, जैसे दिन के साथ रात का अंधेरा और बदतर सड़कें और घाट आदि।

अब एक अन्य उदाहरण लेते हैं। ज्यादातर पेशों की तरह कूड़ा इकट्‌ठा करने व रिसाइकलिंग में दशकों से पुरुषों का वर्चस्व है, जो कि असंगठित क्षेत्र है। पर हम सब कॉलोनियों में बड़ी संख्या में पैदल कचरा बीनती महिलाएं देखते हैं। रोचक है कि कूड़ा इकट्‌ठा करने वालों में उनका हिस्सा 49% है, पर पुरुषों की तुलना में कमाई 33% कम है। वो इसलिए क्योंकि वे अपने घर से दूर नहीं जा सकतीं और बाकी काम के लिए जल्दी लौट आती हैं।

उन पर सर्वे करने वाली एक संस्था चिंतन एनवॉयरमेंट रिसर्च और एक्शन ग्रुप ने उनका आना-जाना बढ़ाने के लिए चैरिटी की मदद से साइकिलों की व्यवस्था की है। इस छोटे बदलाव ने उनकी आय बढ़ा दी। धीरे-धीरे ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 में बदलाव हुआ, जिसने नगरपालिकाओं को महिलाओं को शामिल करने और स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए नीतियां बनाने का निर्देश दिया।

हालांकि ये नियम लागू करना सालों से चुनौती भरा रहा, पर जहां लागू हुआ, वहां उनकी कमाई में फर्क आया। दिल्ली के चाणक्यपुरी में, जहां विदेशी दूतावास व कई सितारा होटल हैं, वहां की मटेरियल रिसाइकलिंग फेसलिटी का उदाहरण लें, जिसे कूड़ा इकट्‌ठा करने वाले एमआरएफ नाम से पुकारते हैं।

यहां कई महिलाएं 20 हजार रु. महीना तक कमाती हैं। बेंगलुरु की एमआरएफ सुविधा ‘हसिरु दाला’(कन्नड़ में अर्थ हरित सेना) देखें, यहां कामगारों में 80% महिलाएं हैं, जिन्हें बेहतर वेतन के अलावा वित्तीय नियोजन, ड्रग एब्यूज़, घरेलू हिंसा से निपटना सिखाया जाता है।

फंडा यह है कि हमें जो अच्छी चीजें चाहिए, वो हो सकता है कि कूड़े में दबी हों या कुछ के हिसाब से तथाकथित ‘विष’ में। अगर हमें उनकी जरूरत है तो अपना आराम छोड़कर इन्हें खोजना होगा।