एक छोटे शहर में रहने वाले मेरे मित्र रोज सुबह 7.30 बजे एक भी मिनट की देरी किए बिना अपने दस साल पुराने स्कूटर से काम पर जाते हैं। आपको लगता है कि वो ऑफिस जाते हैं तो आप गलत हैं। उनके दोनों हाथ भरे होते हैं। दाएं हाथ में हरी मटर के छिलकों सहित, बची-खुची सब्जियों से भरा झोला होता है, जिन्हें वे ठिकाने लगाना चाहते हैं, वहीं दूसरे हाथ में कुछ औजार होते हैं, जो खेती में प्रयोग होते हैं।
वे बची सब्जियां फेंकते नहीं, बल्कि स्कूटर के आगे रख लेते हैं और दस किमी दूर खेत में पहुंचते हैं। खेत से बहुत पहले वो गाड़ी रोकते हैं और एक बड़े-से टोकरे में सब्जियों के बचे-खुचे हिस्से डाल देते हैं। ये टोकरा पड़ोस के एक किसान की गायों के लिए रखा है, जिसने उन्हें कुछ साल पहले अपनी जमीन का एक टुकड़ा बेचा था। वे चुपचाप गायों को चरते देखते हैं, ताजी हवा में सांस लेते हुए आसपास हरियाली देखते करते हैं।
उनके मन में खुशी है कि वे गुणवत्तापूर्ण जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने सरकारी नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी, क्योंकि वे वायु-ध्वनि प्रदूषण से भरे शहरी जीवन से दूर रहना चाहते थे। वे पाते थे कि शहरों में लोग किस्मत को कोसते हैं और गुणवत्तापूर्ण जीवन में रुचि कम होती है। वे शहरों में 25 साल बिताए अपने जीवन के बारे में रोज सोचते हैं और उसकी तुलना अपनी मौजूदा देहाती जिंदगी से करते हैं, जिसे उन्होंने बाकी का जीवन बिताने चुना है।
जब वे वहां खड़े ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर रहे होते हैं, तभी उन्हें चार एकड़ जमीन के दूसरे छोर पर शोर करती बाइक की आवाज सुनाई देती है। धीरे-धीरे आवाज के साथ बाइक सवार ओझल हो जाता है। यह उनके उस पड़ोसी का बेटा है, जिसने उन्हें अपनी यह चार एकड़ जमीन बेची थी। वह निजी कॉलेज से पढ़ा इंजीनियर है और उसके पास कोई नौकरी नहीं है। ये जमीन बेचकर उसके लिए बाइक खरीदी थी।
वह खेत में काम नहीं करना चाहता, क्योंकि उसे लगता है कि वह इंजीनियर है और उसके लिए खेत में काम करना शर्म की बात है। इसलिए उसने ड्राइवर की नौकरी कर ली है, जिससे उसे हर महीना 13 हजार मिलते हैं। इससे वह परिवार की मदद करता है। उसके पास बूढ़े मां-पिता को अस्पताल ले जाने का भी वक्त नहीं, जिन्होंने खेतों में काम करना बंद कर दिया है और अब खेत की देखभाल करने कोई नहीं है।
आने वाले सालों में शायद इसे भी किसी को बेच दिया जाएगा। शहरों के इर्द-गिर्द छोटे कस्बों में जाइए। आपको ये बदलाव दिखेंगे। आप देखेंगे ग्राहक नई जीवनशैली के लिए तैयार हैं। वे करियर के ज्यादा विकल्प चुनने को राजी हैं। अब उन्हें पड़ोसी-रिश्तेदार का दबाव महसूस नहीं होता। निर्णय-क्षमता में पहले से ज्यादा आत्मविश्वास-निजता दिखती है। विप्रो का उदाहरण लें, जिसने देहात-छोटे कस्बों में बिजनेस बढ़ाने का निर्णय लिया है।
एक साल में विप्रो ने 3000 गांवों, 700 वितरकों को बेहतर सर्विस रिटेल आउटलेट्स से जोड़ा है, कंपनी को इससे फायदा हुआ है। आपको इन जगहों पर जिम दिखेंगी, जहां नौजवान वर्कआउट करते हैं। ये वही हैं, जो खेतों में काम नहीं करना चाहते, पर दूरस्थ इलाके में ड्राइवर के काम से उन्हें परहेज नहीं है।
फंडा यह है कि ग्रामीण बच्चों को ये बताने का समय आ गया है कि अब शहरी आबादी एक बेहतर जीवन की तलाश में गांवों की ओर रुख कर रही है और देहाती शब्द शहरी से हरगिज कमतर नहीं है, क्योंकि गांवों में आज ऐसी कई खूबियां हैं, जिनकी मनुष्यों को तलाश है।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.