‘मैं वॉक पर जा रहा हूं।’ इन दिनों यह बहुत सुनने मिलता है। वॉक यानी पैदल सैर ज़रूरत न होकर, धीरे-धीरे फ़ैशन में तब्दील हो रही है। शीर्षक देखकर, क्या आप सोच रहे हैं कि ‘कैमल वॉक’ क्या होती है? तमाम कॉलोनियों में दंपति यह वॉक करते नज़र आते हैं। वे डिनर के बाद अक्सर कहते हैं, ‘चलो, थोड़ा टहलकर आते हैं।’ या गर्मियों में कहते हैं, ‘चलो थोड़ी वॉक करें और ताज़ा हवा लें।’ लेकिन कैमल वॉक करते हुए वे एक गलती करते हैं।
वे खड़े होकर कॉलोनी के दूसरे रहवासियों से बात करने लगते हैं और सोसायटी तथा व्यापार की समस्याओं पर चर्चा करते हैं। बात पूरी कर वे फिर टहलना शुरू करते हैं और घड़ी पर नज़र पड़ते ही वे कहते हैं, ‘चलो बहुत टाइम हो गया, सोना है।’ दूसरी तरफ़, कुंवारे लोग हेडफ़ोन लगाकर टहलते दिखते हैं। उनकी एक नज़र मोबाइल पर होती है, दूसरी आस-पास गुज़रते लोगों पर। ऐसे में, न वे अच्छे से संगीत सुन पा रहे हैं, न वॉक कर पा रहे हैं और न ही लोगों से गर्मजोशी से मिल पा रहे हैं। वे बस जान-पहचान वाले को देखकर सिर हिला देते हैं।
यह न कैमल वॉक है और न ब्रिस्क वॉक (थोड़ी तेज़ी से चलना)। अमेरिकी प्रकृति विज्ञानी, निबंधकार, कवि और दार्शनिक, हेनरी डेविड थोरो (1817-1862) ने कहा था कि ऊंट एकमात्र ऐसा जीव है, जो चलते हुए जुगाली या यूं कहें कि चिंतन करता है।
चलते हुए ऊंट एक तरफ के, आगे और पीछे के पैर, एक साथ आगे बढ़ाता है। उस गैर-मशीनी दौर में, थोरो ने अपनी किताब में प्रकृति की बीच रहकर सादा जीवन जीने की बात कही थी। इसमें कैमल वॉकिंग भी शामिल थी। उनकी सलाह का वैज्ञानिक आधार जो भी रहा हो, इंसानों के लिए विचारों की जुगाली के बहुत से फ़ायदे हैं। यह किसी चीज़ पर गहराई से सोचने की गतिविधि है। लेकिन इन दिनों जब गैजेट मिनट-दर-मिनट, हमारा सारा ध्यान नई-नई चीज़ों की ओर खींच रहे हैं, तब चिंतन का समय किसके पास है?
हम मोबाइल में आने वाली ढेर सारी जानकारी तो पढ़ते हैं पर उसपर विचार करना भूल जाते हैं। हेनरी को शायद लगा होगा कि लोगों को कुछ समय विचारों की जुगाली के लिए भी देना चाहिए। इसलिए उन्होंने कैमल वॉक का सुझाव दिया होगा।
लेकिन क्या आज के दौर में बेहतर सेहत के लिए कैमल वॉक पर्याप्त है? जवाब है साफ न। करीब 72,000 लोगों पर किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक एक दिन में, प्रत्येक अतिरिक्त 2,000 कदम चलने पर, समय से पहले मृत्यु की आशंका कम होती है। डेमेंशिया 50% तक कम होता है, जबकि हृदयरोग और कैंसर की आशंका 10% घटती है।
शोध का दावा है कि सर्वश्रेष्ठ नतीजों के लिए, कदमों की दर ज़रूरी है। हर मिनट 80-100 कदम चलने चाहिए। ब्रिस्क वॉक से समय से पहले मृत्यु की आशंका 35% तक कम होती है और हृदयरोग तथा कैंसर की आशंका 25% तक कम होती है।
लाइट यानी हल्की वॉक में आप गीत गुनगुना सकते हैं, इससे थोड़ी तेज़ वॉक में आप बात कर सकते हैं लेकिन गुनगुना नहीं सकते और ब्रिस्क वॉक में आप बात नहीं कर सकते। इस अध्ययन के एक लेखक के मुताबिक आपको लगातार 30-40 मिनट चलने की ज़रूरत नहीं है। बीच-बीच में थोड़ा तेज़ी से चलने पर, एक्सरसाइज से भी बेहतर नतीजे मिल सकते हैं।
फंडा यह है कि रोज़ के लिए अपनी वॉक का प्रकार तय करें। आपकी वॉक का कोई उद्देश्य होना चाहिए। जैसे सोचना या पड़ोसियों से मिलना-जुलना या कैलोरी घटाना। अगर आप इन सभी का मिश्रण करते हैं तो मैं इसे ‘कॉकटेल वॉक’ कहता हूं, जिससे आपका कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं होता है।
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