इस शनिवार को मैं महाराष्ट्र के सोलापुर में दैनिक भास्कर और सोलापुर एडवर्टाइजिंग एजेंसी वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा ‘प्रिंट मीडिया में विज्ञापन की ताकत’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में अपनी बात रखने के लिए मौजूद था। मैं उस शहर में छह घंटे रुका, इसमें चार घंटे सेमिनार में, डेड़ घंटा लोकल ट्रैवल और डिनर में गया और सिर्फ तीस मिनट उस शानदार होटल में बिताया-जहां मैंने सिर्फ दो बार कपड़े बदले, एक बार सेमिनार में तैयार होने के लिए और दूसरी बार मुंबई आने के लिए ट्रेन पकड़ने से पहले जींस और टीशर्ट पहनने।
उन 30 मिनट में कुछ लोग मिलने आए, जिससे मेरा 20 मिनट का पर्सनल टाइम चला गया और देखा जाए तो सिर्फ 10 मिनट ही मैं खुद के साथ रूम में बिता पाया। पर मुझे वो होटल बालाजी सरोवर पोर्तिको पसंद आ गया। इसका कारण सिर्फ वहां की असाधारण बिल्डिंग और भव्य प्रवेश द्वार या फिर बड़े अंतरराष्ट्रीय नामों की तरह अनुभव देने और ख्याल रखने वाला शानदार स्टाफ ही नहीं था।
वे स्वागत-सत्कार के हर पहलू में अच्छे थे, जैसे अन्य महंगी होटल्स होती हैं। पर उनके सोचने का तरीका अलग था। इस विचार पर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं, किसी को ये अच्छा लगेगा और कुछ लोग पूरी तरह नकार देंगे। मैं पहले तरह के लोगों में हूं क्योंकि मुझे बोल्ड एक्सपेरिमेंट पसंद आते हैं।
आप सोच रहे होंगे कि वो क्या है? आमतौर पर किसी भी होटल में पेंसिल या पैन के साथ एक छोटा नोट पैड साइड टेबल पर टेलीफोन के बगल में रखा होता है, कुछ होटल्स में यह सुविधा राइटिंग टेबल पर भी होती है जहां एक दूसरा टेलीफोन होता है। पर इस होटल में नोट पैड और पेंसिल टॉयलेट सीट के सामने भी रखी थी।
ज्यों ही मैंने इसे देखा, पहले तो मेरी आंखें खुली रह गईं। पर जब मैंने इस बारे में सोचा तब याद आया कि कई सफल लोग दावा करते हैं कि उनके दिमाग में सबसे अच्छे विचार, आइडिया, स्पष्टता बाथरूम में आती है। इसे ध्यान में रखते हुए होटल उन विचारों को लिख लेने में मदद करता है ताकि व्यस्त जीवनशैली में इन्हें भूलने से पहले चाहें तो लिख लें।
मैं साफ सुन पा रहा हूं कुछ रीडर्स कह रहे हैं ‘छीइइइ’। तभी मैंने कहा था कि कुछ को ये पसंद आएगा और कुछ को नहीं। पर मेरे तर्क के पीछे अलग विचार था। यह एक अनुभव है, जो सालों याद रह जाता है। बाकी सभी चीजें किसी भी अच्छे होटल के बराबर होने के साथ सिर्फ एक बोल्ड आइडिया ने बालाजी सरोवर पोर्तिको को अलग बना दिया।
देश के सबसे महंगे होटल्स में से एक ताज होटल मुंबई का उदाहरण लें। उनकी गर्मजोशी की नकल करना मुश्किल है। अगर आप वहां जाकर साधारण-सा टॉयलेट का रास्ता भी पूछें तो स्टाफ का कोई भी सदस्य, फिर चाहे पदानुक्रम में कोई भी हो, वो आपको कहेगा, ‘कृपया आइए मैं आपको ले चलता हूं’ और फिर टॉयलेट के डोर तक ले जाएंगे।
एक बार मैंने वहां रिसेप्शन पर बैठी एक लड़की (सबसे जूनियर सदस्य) को हाउसकीपिंग स्टाफ को फोन पर कुछ निर्देश देते सुना। चूंकि चैक-इन करने वाला गेस्ट व्हीलचेयर पर था और दाईं तरफ से पैरालाइज्ड था, ऐसे में उसने हाउसकीपिंग को उस रूम की सारी एक्सेसरीज़ बाईं तरफ करने को कहीं। मेरा यकीन करें, उसके बाद से वो गेस्ट फिर किसी और होटल में नहीं रुके होंगे।
फंडा यह है कि यूनिवर्सल टैक्स प्रणाली होने के कारण कीमत और गुणवत्ता एक जैसी मिलेंगी, पर आप उन्हें महूसस करने के लिए जो अनुभव देते हैं, उससे ग्राहक आपके बिजनेस पर लौटकर आते हैं। यह आपकी पसंद का कोई एक बोल्ड एक्सपेरिमेंट हो सकता है जो शायद कुछ को पसंद आए और कुछ को नहीं।
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