• Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman's Column Everyone Gets Their Best Time Sometime In Life, So Need To Give Best All The Time

एन. रघुरामन का कॉलम:जीवन में कभी न कभी सबको उनका सर्वश्रेष्ठ समय मिलता है, इसलिए हर समय सर्वश्रेष्ठ देने की जरूरत है

4 महीने पहले
  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

‘जो नहीं हो सकता, वही तो करना है’, ‘मर जाएंगे, पर हारकर नहीं आएंगे’ 2007 में आई शाहरुख खान की फिल्म चक दे इंडिया के ये डायलॉग मुझे तब याद आए, जब मैंने रविवार को देखा कि सौम्या तिवारी गेंद पर प्रहार करने के बाद रनर की तरफ जल्दबाजी में दौड़ीं और दौड़ते हुए उन्होंने अपने हाथ उठाकर ड्रेसिंग रूम की तरफ लहराए और रन पूरा होते ही दूसरी तरफ झूम उठीं।

वो इसलिए क्योंकि उस रन के साथ ही भारत ने इंग्लैंड के खिलाफ सात विकेट से मैच जीतते हुए साउथ अफ्रीका में चल रहा टी-20 विश्वकप अपने नाम कर लिया था। ताज्जुब नहीं कि सौम्या को खुशी से चिल्लाते और एक-दूसरे पर कूदते साथी खिलाड़ियों-स्टाफ ने घेर लिया। जब टीवी क्रू ने उनसे कुछ बात करना चाही तो वे अवाक् और हकला रही थीं। यह महिला क्रिकेट की सबसे बड़ी और पहली जीत थी और वह भी अंडर-19 में।

यह सब मुमकिन हो पाया क्योंकि लेग स्पिनर पार्श्वी चोपड़ा मैदान पर आक्रामक रहीं, जिन्होंने हर दिन दर्जनों बार शेन वार्न के वीडियोज़ देखे और इसी वजह से उन्होंने इंग्लैंड के बल्लेबाजों को सताया। साथ ही तृषा और अर्चना जैसे फील्डर्स ने हर एक रन को बचाने के लिए प्रेक्टिस विकेट के तौर पर इस्तेमाल होने वाले कम घास के मैदान और पिच पर भी डाइव लगाने से हिचकी नहीं।

अर्चना ने दो शानदार कैच लपके और तृषा ने कीमती 24 रन बनाए। इन प्रतिभाशाली और युवा महिला खिलाड़ियों के लिए यह जीत विरोधियों को हराने से कहीं ज्यादा थी। जिताऊ रन लेने वाली सौम्या ने खेल की शुुरुआत कपड़े धोने वाली लकड़ी की मोगरी और पेपर की गेंद से की थी।

जैसा चक दे फिल्म में हॉकी टीम थी वैसे ही इन क्रिकेटर्स ने भी अपने-अपने स्तर और सामूहिक रूप से भी कई संघर्ष किए। दूर-दराज के गांवों में रहने वाले कुछ खिलाड़ियों के माता-पिता को लड़की को गलत रास्ते पर भेजने के ताने सुनने पड़ते थे, तो खिलाड़ियों को रिजेक्शन, आर्थिक तंगी, लैंगिक टिप्पणियां सुननी पड़ती थी।

इस जीत के लिए इससे बेहतर समय और क्या हो सकता था। चंद हफ्तों में वुमन आईपीएल के लिए पहली बार खिलाड़ियों की नीलामी है, एेसे में इनमें कुछ खिलाड़ी लखपति हो सकती हैं। यह टूर्नामेंट उनके लिए गेमचेंजर हो सकता है, खासकर विश्वकप में बेस्ट खेल दिखाने वालों के लिए।

ऐसे सबसे अच्छे-बुरे पल सिर्फ एक टीम तक सीमित नहीं होते। इकलौते लोग जैसे डॉ. भारती बोगामी ने भी यह झेला। जब वह 17 साल की थीं तो माओवादी ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में उनके पिता की हत्या कर दी थी। उन्हें दर्दनाक ब्रेन ट्यूमर हुआ, आर्थिक तंगी झेली। मुश्किलों का उन्होंने डटकर सामना किया, मेडिकल की पढ़ाई की और डॉक्टर बनीं और ऊपर से इंटर्नशिप पूरी कर घर लौट आईं।

उन्होंने मुंबई-पुणे का सुकून छोड़कर ऐसी आबादी के लिए प्राथमिक चिकित्सा देने का प्रण लिया, जो इससे वंचित है। उनके छोटे से अस्पताल में लंबा पैदल चलकर हजारों लोग आते हैं और उनकी ओपीडी में कभी भी फिक्स टाइम नहीं होता। बाबा आम्टे से प्रभावित वह और उनके डॉक्टर पति सतीश त्रिआंकर ग्रामीणों के लिए लगभग 24/7 काम करते हैं।

इससे मुझे एक लोकोक्ति याद आ गई कि ‘अप्राप्यं नाम नेहास्ति धीरस्य व्यवसायिनः’ मतलब जिसके पास साहस है और जो मेहनत करता है, उसके लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है।

फंडा यह है कि जीवन में कभी न कभी सबको उनका सर्वश्रेष्ठ समय मिलता है। चूंकि हमें पता नहीं होता कि वह समय कब आता है, इसलिए हर समय सर्वश्रेष्ठ देने की जरूरत है। जब बेस्ट टाइम, बेस्ट प्रयासों से मिल जाता है तो ये आपको स्टार बना देता है।