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एन. रघुरामन का कॉलम:अन्न ब्रह्म के समान है। उसे बरबाद करना आपराधिक है और इससे देश को क्षति होती है

2 महीने पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु  - Dainik Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु 

सोमवार को जब मैं दिल्ली एयरपोर्ट के निकट प्राइड प्लाजा पर भोजन कर रहा था, तब दो चीजों ने मेरा ध्यान खींचा। रेस्तरां में एक टीवी स्क्रीन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष फूमियो किशिदा पानी-पूरी का मजा ले रहे थे। उन्होंने आम पना, लस्सी और फ्राइड इडली का स्वाद भी लिया।

मैंने उनकी जितनी तस्वीरें देखीं, उतना ही मेरे मन में उनके प्रति सम्मान का भाव जगा, क्योंकि उन्होंने उतना ही भोजन लिया था, जितने कि उन्हें जरूरत थी। जब मैं होटल के फूड काउंटर से अपना भोजन लेने लौटा, तो एक बड़े-से बोर्ड पर मेरी नजर पड़ी, जिस पर लिखा था- कृपया भोजन बरबाद न करें।

सामान्यतया एक पांच सितारा होटल इस तरह के बोर्ड्स नहीं लगाता है, क्योंकि माना जाता है कि अमीर लोग हिदायतें सुनना पसंद नहीं करते, खासतौर पर तब, जब उन्होंने किसी सुविधा के उपभोग के लिए पैसा चुकाया हो। लेकिन मैं भलीभांति जानता हूं कि होटल-मालिक, पुणे के सत्येन जैन इस बात की परवाह नहीं करते कि इस मामले में लोग क्या कहते हैं। मैं उन्हें 1990 के दशक से जानता हूं। वे आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति हैं। वे तब भी भोजन की बरबादी के विरोधी थे। उन्हें अपनी बात पर अडिग देख मुझे आश्चर्य नहीं हुआ।

भोजन का मजा लेते हुए मैंने मोबाइल पर अपने ईमेल चेक किए और वहां मुझे दैनिक भास्कर के एक पाठक का बहुत दिलचस्प पत्र दिखाई दिया। पत्र भेजने वाले रोहिणी, नई दिल्ली निवासी आर.पी. शर्मा थे। सोनीपत के मुरथल में एक ढाबे की यात्रा करने सम्बंधी मेरे एक लेख पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, क्या आपने नहीं देखा कि जीटी रोड पर मौजूद इन तमाम ढाबों में जितना भोजन बरबाद किया जाता है, उतना तो शहरों की होटलों में भी नहीं किया जाता।

इसके अनेक कारण हो सकते हैं, लेकिन अपने भोजन का इंतजार करते समय इतनी मात्रा में भोजन की बरबादी देखकर दु:ख होता है। ढाबा संचालकों को इस समस्या का समाधान करने के लिए प्रबंधन के स्तर पर कुछ कोशिशें करनी चाहिए। मैं उनकी बात से सहमत हूं। इसलिए मैं होटल-संचालकों के लिए कुछ उपायों की सूची बना रहा हूं, ताकि वे भोजन की बरबादी के विरुद्ध जागरूकता लाने के लिए कुछ कर सकें।

अनेक होटल संचालक अपने यहां विभिन्न प्रकार के बोर्ड लगा सकते हैं, जैसे 1. यह भोजन भगवान का प्रसाद है, कृपया इसे बरबाद न करें, 2. उतना ही लें, जितने कि आपको जरूरत है। आप चाहे जितनी बार ले सकते हैं, लेकिन भोजन बरबाद न करें, 3. इस भोजन को आपकी मेज तक लाने के लिए किसान ने पूरे साल कमरतोड़ मेहनत की है, कृपया इसका सम्मान करें, आदि।

कुछ होटल इस तरह का साहसी कदम भी उठा सकते हैं कि भोजन के बाद ग्राहकों को अपनी प्लेट या ट्रे को किसी निश्चित जगह पर जाकर रखने को कहें और वहां एक व्यक्ति खड़ा हो, जो प्लेट में जूठन होने पर उसे रखने देने से इनकार कर दे।

अनेक विदेशी होटलों में पिज्जा जैसी खाद्य सामग्रियों के छोटे टुकड़े कर दिए जाते हैं या वे उन्हें कई छोटे हिस्सों में बांट देते हैं, ताकि ग्राहक बचे हुए भोजन को अपने साथ घर ले जाएं। कुछ कर्मचारी पैक करने में उनकी मदद करते हैं तो कुछ खुद ग्राहकों को भोजन पैक करने के लिए पैकिंग-सामग्री दे देते हैं। हमें इस सबक को जल्दी से जल्दी सीख लेना चाहिए, क्योंकि आज भी ऐसे कई लोग हैं, जो अकसर भूखे पेट सोने को मजबूर होते हैं। वैसे भी हमारी 33 प्रतिशत खाद्य सामग्रियां खेतों से ट्रांसिट के दौरान नष्ट हो जाती हैं।

फंडा यह है कि अन्न ब्रह्म के समान है। उसे बरबाद करना आपराधिक है और इससे देश को क्षति होती है। हमें यह आदत बदलनी चाहिए।