अगर आप तुर्की के खूबसूरत पर्यटक शहर एंटाल्या जाएं तो पाएंगे कि वहां सुबह से लेकर देर रात तक ट्रांसपोर्ट के कई साधन सहजता से उपलब्ध हैं, ये शहर राजधानी इस्तांबुल से 516 किमी दूर है। वहां सभी तरह के ट्रांसपोर्ट के प्रयोग करने वाले लोग हैं।
वहां ऐसी कोई चीज नहीं, जो काम नहीं करती। सार्वजनिक जगहों जैसे एयरपोर्ट्स व बस में एस्केलेटर से लेकर, ट्राम स्टेशन तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट के कई विकल्प हैं। दुनिया की अपनी हालिया यात्राओं में मैंने देखा कि करीब 12 लाख आबादी वाले एंटाल्या का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सबसे विश्वसनीय व किफायती है।
दो तरह की ट्राम, कई बस ऑपरेटर, सैकड़ों टैक्सी पर्यटकों के साथ बिना धोखाधड़ी के लगातार चलते रहते हैं। पूरे शहर में कहीं भी फेंस व खंभों से बंधे इलेक्ट्रिक स्कूटर मिल जाते हैं। कई स्कूटर रेंटल कंपनियों के ये स्कूटर कम दूरी के लिए सुविधाजनक हैं।
अगर मौसम अच्छा है और आप स्थानीय लोगों की तरह शहर का लुत्फ लेना चाहते हैं तो एंटाल्या बाइसिकिल शेयरिंग एक और शानदार व सस्ता विकल्प है। कोई भी ट्रांसपोर्ट महज एक कार्ड से इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका सबसे अच्छा पहलू ये है कि कोई विदेशी शुल्क नहीं है, न्यूनतम शुल्क देकर कोई भी इसे ले सकता है और पहले से निर्धारित दरों पर कहीं भी यूज कर सकता है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट व स्टेशंस पर सहूलियत के साधन जैसे एस्केलेटर्स व लिफ्ट पर आज फोकस करने का कारण है, जब मैं होली के दिन मुंबई से निकला, तो पता चला कि मुंबई के 79 स्टेशंस पर लगे 111 एस्केलेटर्स में बहुत सारे काम नहीं कर रहे। पैदल चलकर थक गए यात्रियों के लिए एस्केलेटर वरदान हैं।
याद रखें देश में बड़ी संख्या में बुजुर्ग हैं, जो लगेज के साथ सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते। न सिर्फ मुंबई में बल्कि देश के कई स्टेशनों में एस्केलेटर निष्क्रिय होना असामान्य नहीं है। आपने ताज्जुब किया कि लंबी दूरी की ट्रेन आने से ठीक पहले ये इलेक्ट्रिक सीढ़ियां अचानक क्यों बंद हो जाती हैं?
रेलवे अधिकारियों को पक्का लगता है कि कुली, जिनकी आय इससे प्रभावित होती है, वे मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों के आने से ठीक पहले इन्हें खराब या बंद कर देते हैं। हालांकि कुली इससे इंकार करते हैं, पर एस्केलेटर निष्क्रिय होने से मना नहीं कर सकते।
न सिर्फ मुंबई बल्कि बेंगलुरु में भी मेट्रो स्टेशंस के नीचे परिवहन के सस्ते व वैकल्पिक माध्यम जैसे इलेक्ट्रिक स्कूटर-साइकिल काम नहीं करते क्योंकि आरोप है कि ऑटो-रिक्शा वाले इन्हें नुकसान पहुंचा देते हैं, ताकि यात्री उनके पास आएं।
अगर लोग इन्हें खराब करने में ऊर्जा खर्च करें, तो कोई भी देश तरक्की नहीं कर सकता, वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि इसने पुराने बिजनेस से जुड़े कुछ लोगों की आजीविका छीनी है। इसके बजाय उन्हें यह सोचना चाहिए कि अपने परिवहन के तरीके में आगंतुकों का अनुभव कैसे बढ़ाएं।
हमारी विकास रणनीति के तहत नई सुविधाएं, नए आइडियाज़ आएंगे। उन आइडियाज के बिना इस बढ़ती आबादी को कैसे संभाल सकते हैं? कल्पना करें अगर 1,55,000 पोस्ट ऑफिस अपने कर्मचारियों को इंटरनेट वायर काटने में लगा दें क्योंकि हमने उनके पोस्टमैन और पत्र वाली सुविधा लेना बंद कर दी है, तो संचार उद्योग का क्या होगा। एक समाज के रूप में हमें उसी काम को नए तौर-तरीकों से करने के रास्ते खोलने चाहिए और पुराने तरीकों को भुला देना चाहिए। इसमें नया कुछ नहीं है। यह प्रकृति का भी नियम है।
फंडा यह है कि प्रतिस्पर्धियों की ग्रोथ कम करने में अपनी ऊर्जा गंवाने के बजाय अगर हम इसे मौजूदा बिजनेस को मजबूत करने में लगाएं, तो देश के तौर पर अंतरराष्ट्रीय फलक पर अच्छा कर पाएंगे।
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