• Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman's Column It Is Not Possible To Erase The Digital Footprint. So Stop Going Down Unknown 'alleys'

एन. रघुरामन का कॉलम:डिजिटल फुटप्रिंट मिटा देना मुमकिन नहीं है। इसलिए अनजान ‘गलियों’ में जाना बंद कर दें

3 महीने पहले
  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

यह सदियों से चला आ रहा दक्षिण भारतीय तर्क है। इसके आखिर में हां में मिला जवाब हमेशा जीतता है। जीतने के लिए भले जो तर्क दिया जाए, पर मैं यकीन दिलाता हूं कि आज के दौर में इस प्रश्न का जवाब हां और सिर्फ हां है, खासकर उन युवाओं के लिए जो क्षणभर के मजे के लिए तस्वीरें-शब्दों के रूप में आपत्तिजनक चीजें गूगल पर खोजते हैं।

मुंबई में चंद दिनों पहले घटी दिलचस्प क्राइम स्टोरी से मैं ये समझाता हूं, पुलिस ने अपराधियों के डिजिटल फुटप्रिंट्स का पीछा करते हुए पिछले हफ्ते सारे बिंदू जोड़े, जिन्होंने दो शब्द- आर्सेनिक व थैलियम क्रमशः 105 व 156 बार गूगल पर खोजे थे।

इस सबकी शुरुआत 13 अगस्त 2022 को हुई थी, जब 65 वर्षीय मुंबईकर सरला देवी की निमोनिया से मौत हो गई थी और अस्पताल के दस्तावेज भी यही कह रहे थे। अस्पताल ने इसे प्राकृतिक मौत माना क्योंकि परिवार से किसी ने संदेह नहीं जताया था।

चूंकि वह बुजुर्ग भी थीं, ऐसे में डॉक्टर्स को भी शक नहीं हुआ। प्रक्रिया का पालन करते हुए अंतिम संस्कार हो गया। सरला देवी के निधन के चंद दिनों बाद 24 अगस्त को उनके बेटे कमलकांत शाह के पेट में दर्द हुआ और उल्टी शुरू हो गई। 3 सितंबर को हालत गंभीर हो गई और उन्हें अच्छे हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां खून की जांच में बहुत ज्यादा आर्सेनिक पाया गया।

कपड़ा व्यापारी कमलकांत का इलाज कर रहे डॉक्टर्स देखकर सतर्क हो गए कि उनके बालों, दाढ़ी और मूंछ के बालों में भी कोई ग्रोथ नहीं हुई। विसंगतियों के मद्देनजर डॉक्टर्स ने रक्त की बारीकी से जांच का कहा, जिसमें आर्सेनिक और थैलियम की अत्यधिक मात्रा की पुष्टि हुई।

जब परिवार को ब्लड टेस्ट के लिए कहा गया, तो उनकी पत्नी काजल जल्दी में निकल गईं, जिससे शक गहरा गया। 19 सितंबर को कमलकांत की भी मौत हो गई और काजल ने पोस्टमार्टम में आपत्ति ली। वह पति की संदेहास्पद मौत के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के खिलाफ थी। और तब कमलकांत के परिवार को गड़बड़ी का शक हुआ और शिकायत कराई गई।

तब पुलिस हरकत में आई और पाया कि आर्सेनिक और थैलियम को एक हर्बल हेल्थ ड्रिंक में मिलाया गया था, जिसे कमलकांत रोज पीता था। धीरे-धीरे केस आगे बढ़ा और उजागर हुआ कि हत्या में काजल और उसके प्रेमी हितेश जैन का हाथ है।

क्राइम ब्रांच ने पड़ताल में पाया कि काजल ने अचानक से पूरे परिवार के लिए कुकिंग शुरू कर दी थी और इस दौरान वह किचन में किसी को नहीं आने देती थी, सालों से काम कर रहे कुक को भी नहीं। दूसरी ओर एक टीम ने उनकी इंटरनेट सर्च हिस्ट्री चैक की और पाया कि उनकी सर्च और केमिकल के बीच संबंध है, जिससे उन्हें इसके सप्लायर तक पहुंचने में मदद मिली।

पुलिस का मानना है कि हितेश को इंटरनेट से आइडिया आया कि धीमे जहर से हत्या हो सकती है। उसे दिल्ली के बिजनेसमैन वरुण अरोरा की फिश करी में थैलियम मिलाकर परिजनों को देने वाली कहानी मिली और अन्य स्टोरीज में ईराक के पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन के बारे में भी पढ़ने मिला जो विरोधियों को मारने में केमिकल इस्तेमाल करता था। पुलिस ने हितेश व डीलर के बीच हुई वाट्सएप चैट देखी और लेनदेन की पुष्टि हुई। अब पुलिस का मानना है कि कुक की गवाही और वेब सर्च कोर्ट में पुख्ता सबूत होंगे।

यहां मर्डर स्टोरी बताने का मतलब ये था कि अगर हम आपत्तिजनक-अवांछित साइट्स सर्च करेंगे, तो ये आपको कहीं और ले जाएंगी। ये तर्क न दें कि हम हत्यारे नहीं, इससे संबंध नहीं क्योंकि कैसे ये साइट्स दिमाग घुमा दें और किसी और चीज से हमें लिंक कर दें, हमें नहीं पता।

फंडा यह है कि डिजिटल फुटप्रिंट मिटा देना मुमकिन नहीं है। इसलिए अनजान ‘गलियों’ में जाना बंद कर दें।