यह बात बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार ने एक निजी मुलाकात में मुझसे और एक टीवी प्रोग्राम में अनुपम खेर से भी कही थी और माना था कि वह कॉलेज ड्रॉपआउट हैं। कार्यक्रम में आगे उन्होंने कहा था कि अकादमिक ज्ञान कुछ भी हो, पर जीवन में अलग-अलग जगह काम आने वाला दुनियादारी का ज्ञान होना सबको जरूरी है। एक दशक पुरानी इस बातचीत को सोमवार को याद करने की वजह बेंगलुरु के सौरभ अग्रवाल हैं, जिन्होंने नागरिक के तौर पर मिले अधिकारों से इंकार किए जाने पर बैंक के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जीती।
मार्च 2021 में 26 वर्षीय सौरभ ने बैंक से 45 लाख रु. लोन लिया। जब उन्हें पता चला कि प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाय) के तहत 2.4 लाख रु. की सब्सिडी के लिए वह पात्र हैं तो उन्होंने आधार कार्ड की कॉपी व जरूरी दस्तावेजों के साथ आवेदन किया। पर आवेदन ये कहकर खारिज हो गया कि उनका आधार मास्क्ड था। (आईडी नंबर नहीं दिख रहा था।) वह सभी बैंक अधिकारियों से मिले और साबित किया कि कार्ड मास्क्ड नहीं था और संबंधित अधिकारी को वाट्सएप से कार्ड भेजा भी था, जिस पर आईडी नंबर साफ दिख रहा था। सारे प्रयासों के बावजूद बैंक ने दावा खारिज कर दिया।
सौरभ ने तब आरबीआई से इस तथ्य को दर्शाते हुए शिकायत की कि यूआईडीएआई आधार कार्ड की मास्किंग का विकल्प जुलाई 2021 में लेकर आई, जबकि सब्सिडी का आवेदन उससे बहुत पहले मार्च 2021 में जमा करने के बाद खारिज भी कर दिया।
संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो सौरभ ने सितंबर 2022 में बैंक के होम लोन विभाग के खिलाफ बेंगलुरु शहरी जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में शिकायत की। उसने दस्तावेजों के साथ अपना केस रखा जबकि बैंक प्रतिनिधि नोटिस के बावजूद हाजिर नहीं हुए, उसके बाद कोर्ट ने बैंक के खिलाफ एक्स-पार्टी ऑर्डर जारी कर दिया।
जजेस ने दो महीने से भी कम में केस एग्जामिन किया व पाया कि शिकायतकर्ता सब्सिडी के लिए पात्र था, पर बैंक ने गैरकानूनी रूप से मना किया, ये ग्राहक के प्रति सेवाओं में कमी-लापरवाही का मामला है। 14 नवंबर 2022 को जजेस ने फैसला सुनाते हुए बैंक को 2.4 लाख रु. (सब्सिडी राशि) देने के साथ, 10% ब्याज, 25 हजार रु हर्जाने व विधिक खर्चों के लिए 10 हजार रु. देने का आदेश दिया।
देश की निचली अदालतों में 4 करोड़ से ज्यादा मामले लंबित हैं और वकील नहीं होने से 63 लाख मामलों में निर्णय नहीं हो सके हैं। (20 जनवरी 2023 तक की स्थिति में) राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार इसमें कम से कम 78% मामले क्रिमिनल हैं और बाकी सिविल। उप्र में सबसे ज्यादा लंबित मामले हैं।
63 लाख मामलों में सेे 77.7% (49 लाख से ज्यादा) अकेले सात राज्यों उप्र, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और बिहार को मिलाकर हैं। इस रिपोर्ट को हाइलाइट करने की वजह यह समझना है कि भले हम बहुत बाद में न्याय के लिए दरवाजा खटखटाएं, पर असल में न्याय मिलने में सालों (कई बार दशकों भी) लग सकते हैं।
हमारी जो भी अकादमिक उपलब्धियां रहें, पर सबको एक नागरिक के तौर पर मिले अधिकारों, सरकारी सुविधाओं व रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाले कानूनों के प्रति जागरूक रहना चाहिए।
फंडा यह है कि ये निर्णय आपका है कि जिंदगी में कितनी अकादमिक ऊंचाई तक जाना चाहते हैं, पर हर चीज के प्रति जागरूक रहकर (अकादमिक ज्ञान मदद करेगा) आप किसी सरकारी संस्था द्वारा अपने मौलिक अधिकारों से वंचित किए जाने से बच सकते हैं।
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