शुक्रवार सुबह मैं अमृतसर होते हुए जालंधर जा रहा था, जहां मुझे दैनिक भास्कर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सम्मिलित होना था। फ्लाइट में मैंने देखा कि कुछ लोग एक व्यक्ति की तस्वीरें खींच रहे हैं। एयर होस्टेस आई और उसने भी उन वीवीआईपी के प्रति विशेष सौजन्य दर्शाया।
यह दो घंटे दस मिनट की यात्रा थी, इसलिए 60 से अधिक आयु के यात्रीगण वॉशरूम जाने के लिए कतार लगाए हुए थे। वीवीआईपी यात्री भी अपवाद नहीं थे। वे पंजाब के लोकप्रिय गायक 66 वर्षीय गुरदास मान थे। उन्हें देख लोगों ने उन्हें पहले जाने दिया, जबकि गुरदास कतार में खड़े होने को तैयार थे। कुछ ने उनके पैर भी छुए।
उन्होंने तीन साल के एक बच्चे को दुलारते हुए पूछा क्या तुम मुझे जानते हो और जब बच्चे ने जवाब दिया नहीं, तो मान समेत सभी जोर से हंस पड़े। सामान्यतया लोग किसी सेलेब्रिटी के इर्द-गिर्द मंडराते हैं, पर मान ने चतुराई दिखाते हुए उस बच्चे से दोस्ती कर ली और उसी के साथ खेलते रहे।
वे इससे चिंतित नहीं थे कि यात्री उनके साथ सेल्फी लेना चाहते थे, लेकिन उन्होंने बच्चे के साथ चुहलबाजी करते हुए दिमाग को व्यस्त रखा और शांत बने रहे। मुझे लगा लोगों से यह कहने के बजाय कि कृपया मुझे आराम करने दीजिए, गुरदास मान का यह तरीका ज्यादा समझदारी भरा था।
शाम को मैं त्रिपुरमालिनी गया। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। आजकल मैंने एक नई आदत बना ली है और वह है विभिन्न जगहों के पवित्र स्थानों की यात्रा करना, हालांकि मैं उन शहरों की यात्रा किसी पेशेवर प्रयोजन से करता हूं।
मुझे यह विचार तमिलनाडु के नाटुकोट्टाई चेट्टियार समुदाय से मिला, जो मानता है कि जब हम परिवार के प्रमुख के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके होते हैं, तब स्वास्थ्य-सम्बंधी समस्याएं होने से पहले हमें मंदिरों और पवित्र स्थलों की यात्रा करनी चाहिए। शुक्रवार होने के कारण मंदिर में खासी भीड़ थी।
यहां देवी की प्रतिमा छोटी-सी है, लेकिन उसके बारे में मान्यता है कि वह अपने में आस्था रखने वालों की बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी करने में समर्थ है। गर्भगृह के आभामण्डल का मैं वर्णन नहीं कर सकता। देवी के नेत्रों का मेरे हृदय पर गहन प्रभाव पड़ा। मुझे लगा मुझे उस मुखमण्डल से आंखें नहीं हटाना चाहिए, जो मानो अपने भक्तों से कह रहा था कि मैं यहां हूं, अपनी चिंताएं मेरे पास छोड़ जाओ।
मैं गर्भगृह से बाहर आया तो नीचे वहां बैठ गया, जहां भजन-कीर्तन हो रहे थे। यहां मुझे दो तरह के लोग दिखाई दिए। एक वे थे, जो इस बात को लेकर बुरा महसूस कर रहे थे कि वीवीआईपी मेहमानों को कतार में नहीं लगना पड़ रहा है और उन्हें विशेष दर्शन कराए जा रहे हैं।
उनका ध्यान देवी से अधिक मंदिर में आने-जाने वालों पर था। दूसरे वे थे, जो इस बात को लेकर खुश थे कि वीवीआईपी आ रहे हैं। इसका कारण यह है कि जब भी वीवीआईपी आते हैं तो बाहर जाने वाली लाइन को खाली करा लिया जाता है।
दर्शनार्थियों को उसी लेन से भीतर प्रवेश कराया जाता है, जबकि प्रवेश की लाइन को रोक दिया जाता है। इससे प्रवेश की लाइन में खड़े दर्शनार्थी देवी की प्रतिमा का अधिक समय तक दर्शन कर सकते हैं, क्योंकि पंडित और प्रशासकगण वीवीआईपी की सहायता में व्यस्त हो जाते हैं। पंजाबियों के इस दृष्टिकोण ने मुझे यह सोचने को विवश कर दिया कि यह समुदाय कितना समझदार है।
फंडा यह है कि जिन परिस्थितियों पर नियंत्रण न हो, उनमें दिमाग को शांत रखने से समस्याएं अपने उस बॉइलिंग पॉइंट पर पहुंच जाती हैं, जहां वे अंतत: भाप बनकर विलीन हो जाती हैं (यानी हमें उनके समाधान मिल जाते हैं)।
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