एक भिखारी का अपने कुत्ते के साथ भोजन साझा करना अनोखी बात नहीं है, लेकिन वह दृश्य बिलकुल भिन्न था। मेरी कार एक सिगनल पर खड़ी थी, जो 180 सेकंड में ग्रीन होता है। इस तरह के लम्बे सिगनल्स मुम्बईकरों के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। तभी मेरी नजर फुटपाथ पर गई, जहां एक भिखारी बैठा था।
वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उसे कुछ रोटियां और एक एल्युमिनियम फॉइल में लिपटी सब्जी दी और आगे बढ़ गया। भिखारी ने उसे खोला। उसमें दो रोटियां थीं और सब्जी को अलग से बांधा गया था। जैसे ही उसने उसे खोला, उसका पालतू कुत्ता उठ खड़ा हुआ।
एक दोस्त की तरह भिखारी ने उसे दोनों रोटियां दिखाईं और इशारे से उसे बताया कि वह एक रोटी उसे दे देगा। फिर उसने जल्दी से पहली रोटी को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटा और उसे कुत्ते को खिला दिया। फिर उसने कुत्ते से कहा कि क्या अब मैं यह दूसरी रोटी खा लूं? मानो वह उसकी अनुमति ले रहा हो।
कुत्ता चुपचाप उसके पीछे चला गया, जहां प्लास्टिक का एक बॉउल रखा था। उसमें पीने का पानी था। जैसे ही वह पानी पीने को हुआ, भिखारी ने उसे रोक दिया, क्योंकि पानी में धूल के कण तैर रहे थे। तब कुत्ते ने वह किया, जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। जैसे ही भिखारी पानी से धूल हटाने के लिए मुड़ा, कुत्ता लपककर रोटी के सामने खड़ा हो गया, जैसे उसकी सुरक्षा कर रहा हो।
उसने उसे खाया नहीं। भिखारी ने कुत्ते के सिर को थपथपाया, मानो इसके लिए उसे शुक्रिया कह रहा हो। फिर वह अपने हिस्से की रोटी खाने लगा। यह दृश्य देखकर मेरे मन में जिज्ञासा जगी। मैं नीचे उतरा और उससे पूछा कि कुत्ता लपककर रोटी के सामने क्यों खड़ा हो गया था। उसने कहा, क्योंकि कभी-कभी आसपास मौजूद कौवे रोटी लेकर उड़ जाते हैं, इसलिए टॉमी हमेशा मेरे भोजन की रक्षा करता है।
यह सुनकर मेरी आंखें लगभग नम हो गईं, क्योंकि यहां दो भूखे प्राणी बड़े अनूठे तरीके से एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। मैंने अगला सिगनल मिस हो जाने दिया और ड्राइवर से कहा कि गाड़ी को साइड में पार्क कर दे। फिर मैंने उन दोनों प्राणियों का पेट भरने के लिए वही किया, जो मुझे करना चाहिए था।
कार में बैठने के बाद मैं फिर से अभिनेता मनोज बाजपेयी के बारे में वह स्टोरी पढ़ने लगा, जिसमें बताया गया था कि वे अपनी वेब फिल्म गुलमोहर को दर्शकों और समीक्षकों से मिली सराहना के कारण खुश हैं। वे इस फिल्म में शर्मिला टैगोर के साथ हैं। लेकिन दर्शकों और समीक्षकों की सराहना से भी बढ़कर खुशी उन्हें एक ऐसी चीज से मिली, जिसे बहुत सारे लोग अनदेखा कर सकते थे।
हाल ही में जब उन्होंने गुलमोहर की एक प्राइवेट स्क्रीनिंग की और फिल्म उद्योग के अनेक लोगों को इसके लिए निमंत्रित किया तो कुछ आए और कुछ अपने कामकाज के दबाव के चलते नहीं आ सके। सामान्यतया अभिनेता लोग अपने साथी कलाकारों को प्राइवेट स्क्रीनिंग पर बुलाते हैं और उनके साथ समय बिताते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे अपने सर्किल में उनके काम को प्रमोट करेंगे। लेकिन व्यस्त शेड्यूल के बावजूद अभिनेता अर्जुन कपूर ने एक भिन्न तरीके से बाजपेयी के निमंत्रण के प्रति अपना समर्थन जताया।
उन्होंने अपनी बहन अंशुला को उस स्क्रीनिंग में अपनी प्रतिनिधि के तौर पर भेजा। यह बात बाजपेयी के दिल को छू गई। मीडिया से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इसी से आपको एक व्यक्ति के विचारों और उसके चरित्र का पता चलता है। मैं इस छोटे-से जेस्चर को कभी नहीं भूलूंगा।
फंडा यह है कि सामाजिक मेलमिलाप में अपने व्यवहार में वॉर्म्थ (गर्माहट) बनाए रखने से आप भीड़ से अलग बनते हैं। आप छोटी और भली बातों के लिए पहचाने जाते हैं, फिर चाहे वो कितनी ही मामूली क्यों न हों।
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