‘सर, मास्क पहन लें क्योंकि आज बहुत भीड़ है’। एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के लिए गेट से जाते एक आदमी को जोर से खांसता देखकर सुरक्षा अधिकारी ने शालीनता से यह कहा। खांसी से पहले ही परेशान वह शख्स पीछे मुड़कर जोर से बोला, ‘अब भारत में कोई मास्क नहीं पहनता और अब सैकड़ों लोग भी नहीं मर रहे।’
सुरक्षा गार्ड को सुनकर शॉक लगा और कहा, ‘आपने गलत समझा, हालांकि मैं माफी मांगता हूं। मैंने इसलिए कहा क्योंकि आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है और एयरपोर्ट पर आज वाकई बहुत भीड़ है।’ दूर जाते अधेड़ उम्र के उन शख्स ने आखिरी लाइन पर थोड़ा ध्यान दिया।
विमानों में आजकल यह दृश्य निर्मित होने लगा है। लोग ऐसे आते हैं जैसे पता ही न हो कि कोविड था, मतलब बिना मास्क के। वे सभी बेहद पढ़े-लिखे, उनमें ज्यादातर आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं, पर उड़ान के दौरान एेसे बंद माहौल में भी वे खुद को खतरे में डालकर बैठे रहते हैं, जबकि विमान में खुद वायरस का संभावित खतरा तैरता रहता है- यहां तक कि उन्हें यह पता होता है।
पर अपनी पिछली कुछ यात्राओं में मैंने देखा है कि किसी के सामने ज्यों ही कोई चंद बार खांसता या छींकता है, तो कुछ कतार पीछे बैठे व्यक्ति भी तुरंत अपने हैंडबैग में मास्क निकालकर पहन लेते हैं। वैसे सलवार कमीज पहने महिलाओं को बाकी लोगों की तुलना में फायदे हैं। वे तुरंत दुपट्टे से आंखें छोड़कर अपना पूरा मुंह ढंक लेती हैं, मानो वे दोपहिया चलाने जा रही हैं। और पिछले दिसंबर के बाद से यह अच्छी-खासी संख्या में हो रहा है।
वो इसलिए क्योंकि इन महीनों में वायरल से पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद भी गंभीर व लगातार खांसी बेतहाशा बढ़ी है। आमतौर पर तापमान घटने के साथ, जब प्रदूषक वातावरण में तैरते रहते हैं तो ऊपरी श्वसन तंत्र संक्रमण बढ़ना शुरू हो जाता है और दिसंबर के बाद ऐसे मामले बढ़ने का यही मुख्य कारण है।
प्रदूषक-घना स्मॉग बच्चों के लिए समस्या बढ़ा रहा है। आसपास देखें तो स्थानीय प्रशासन स्मॉग और प्रदूषण रोकने वाले टॉवर लगा रहा है। दिल्ली में 18 महीने पहले ये टावर लगाए गए वहीं मुंबई में इस साल लग रहे हैं। स्मॉग कम करने के लिए बड़े स्तर के एयर-प्युरिफायर लगाने (2018) वाला पहला बड़ा शहर बीजिंग था। हालांकि ये सुविधाएं समुद्र में कुछ बूंदों के समान हैं, पर ये पहल बताती हैं कि वायु प्रदूषण कितना खराब हो चुका है। और यह पहल लोगों के स्वास्थ्य पर आसन्न खतरे के बारे में भी बताती है।
मेडिकल भाषा में पोस्ट-वायरल कफ, तीन से आठ सप्ताह तक बना रहता है, यह हर किसी के इम्यून सिस्टम पर निर्भर है। डॉक्टर्स कह रहे हैं कि लंबी बीमारी की वजह स्मॉग व प्रदूषण है। पिछले दो महीनों में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में बच्चे हैं। जब तक तापमान बढ़ना शुरू नहीं हो जाता, फरवरी मध्य तक उम्मीद है, जब हवा में मौजूद प्रदूषक कारक कम होना शुरू हो जाते हैं, तब तक अगर आपके घर में कोई सदस्य लगातार खांस रहा है, तो उन्हें दिन में तीन बार गरारे करने के लिए कहें।
यह ज्यादातर मामलों में प्रभावी है जबकि गंभीर मामले में स्टेरॉयड दे सकते हैं, पर डॉक्टर की देखरेख में। हवा में बढ़ी रासायनिक धूल के लिए निर्माण उद्योग को दोष न दें। न तो इस बढ़ते उद्योग को रोक सकते हैं और न ही इसके बिना अर्थव्यवस्था चल सकती है जो गरीब तबके के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के लिए सबसे बड़ा नियोक्ता है।
फंडा यह है कि मास्क को अपना स्टाइल स्टेटमेंट बनाएं, जिससे आपके दो उद्देश्य पूरे होते हैं- आत्मविश्वास बढ़ता है क्योंकि यह स्टाइलिश है और जाहिर है यह वायरस से बचाएगा। इसके अलावा दिन में ढेर सारा तरल पिएं और दिन में दो-तीन बार गरारे करें।
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