35 सालों की सरकारी नौकरी के बाद वह हाल ही में रिटायर हुईं। रिटायरमेंट के दो महीने बाद उनके पति को यह कहते हुए फोन आया कि वह 3,250 रु. की आखिरी किस्त भरकर 5 लाख रु. का फैमिली इंश्योरेंस का क्लेम ले सकते हैं।
जब उन्होंने इंश्योरेंस का ब्यौरा मांगा तो कॉलर ने आत्मविश्वास से कहा कि सभी रिटायर्ड कर्मियों के लिए ये सुविधा है और उसने रिटायरमेंट की सटीक जानकारी बताई और यहां तक कि पति के एक शब्द बोले बिना भी उनका पता बता दिया। कॉलर के पास परिवार के ठिकाने और हर सदस्य की छोटी से छोटी जानकारी भी थी।
कॉलर ने सिर्फ एक गलती कर दी कि उसने असल में रिटायर हुईं पत्नी के बजाय पति को फोन कर दिया। वो इसलिए क्योंकि उन्होंने पति का नाम उनके फोन नंबर के साथ नॉमिनी में डाला था और ये धोखाधड़ी गैंग भ्रम में पड़ गई कि कौन रिटायर हुआ है और गलती से उन्होंने पति को फोन कर दिया। परिवार चौकन्ना हो गया और इस तरह उनकी मेहनत की कमाई लुटने से बच गई।
पॉलिसीधारकों के साथ फ्रॉड की जांच करते हुए पिछले हफ्ते मुंबई की साइबर क्राइम शाखा को पता चला कि न सिर्फ अतीत में डाटा लीक की बड़ी घटनाएं हुईं हैं बल्कि अभी भी रोजमर्रा में यह हो रहा है, जहां अंदर के लोग बाहर गैंग को नवीनतम जानकारियां देते हैं।
एक और केस देखें। मुंबई में 56 वर्षीय शख्स को हाल ही में फोन आया और कहा कि इस महीने उनकी पॉलिसी मैच्योर हो रही है और उन्हें ऑटो डेबिट सुविधा बंद करने के लिए 5,575 रु. देने होंगे, ये उन्होंने कुछ साल पहले शुरू की थी।
चूंकि जानकारी सही थी, उन्होंने कॉलर द्वारा फोन पर भेजे क्यूआर कोड पर पे कर दिया और चंद मिनटों में उनके खाते से 1.12 लाख रु. कट गए। पुलिस कड़ी जोड़ते हुए चार साइबर अपराधियों तक पहुंचने में कामयाब रही।
पुलिस का मानना है कि इंश्योरेंस कंपनी छोड़ने वाले कर्मी ही पॉलिसीधारक का डाटा चुरा लेते हैं और पैसों के बदले फ्रॉड करने वालों को दे देते हैं, जबकि कुछ लोग खुद डाटा रखकर चीटिंग शुरू कर देते हैं। पॉलिसीधारक ऐसी कॉल्स में फंस जाते हैं, क्योंकि दूसरे छोर से मिली सूचनाएं प्रामाणिक होती हैं।
पुलिस के अनुसार महामारी के दौरान वर्क फ्रॉम होम से डाटा लीक बढ़ गया। इंश्योरेंस कंपनियों के कुछ कर्मियों ने माना कि दफ्तर में सभी सिस्टम पर निगरानी रहती है, जो कि रिमोट वर्किंग में नहीं हो पाती। और वरिष्ठ नागरिक फ्रॉड के सबसे बड़े शिकार होते हैं। डिप्टी कमिश्नर (साइबर) बालसिंह राजपूत ने माना कि अंदर के कर्मचारियों के बिना डाटा लीक मुमकिन नहीं।
हमारा डाटा भारी मात्रा में बाजार में घूम रहा है जैसे हर टेलीकॉलर के पास हमारा नंबर है, ऐसे में यह महसूस करते हुए साइबर अधिकारियों ने इस हफ्ते अधिसूचना जारी की और पॉलिसीधारकों को कहा कि वे थर्ड पार्टी से बातचीत न करें। अगर ऐसा फोन आए तो खुद कंपनी की नजदीकी शाखा में जाकर पता करें। ऐसा फोन आए तो दो चीजें करें।
1. घबराएं नहीं। फोन आने का वक्त देखें। ऑफिस घंटों के बाद कोई फोन नहीं आता। अगर फोन कामकाजी घंटों में है, तो कॉलर से ये कहकर बाद में कॉल करने को कहें कि आप मीटिंग में हैं या यात्रा में हैं और आवाज नहीं आ रही। इस बीच कंपनी के साथ छानबीन कर लें।
2. भेजी गई कोई लिंक या क्यूआर कोड स्कैन न करें। संदेहास्पद लगे तो राष्ट्रीय साइबर अपराध अधिकारियों को 1930 पर फोन करें।
फंडा यह है कि कई कारणों से हमारा निजी डाटा सब जगह मौजूद है, इसलिए चीटिंग से खुद को बचाने का समय आ गया है। बस इतना करें कि घबराएं नहीं और जाकर खुद फिजिकली जांच करें।
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