दोपहर तीन बजे बमुश्किल कुछ दिख रहा था। अचानक तेज बारिश शुरू हो गई थी। सड़क पर 50 मीटर दूर भी नहीं दिख रहा था। इस शनिवार को मैंने अंतालिया में पास से गुजरती टैक्सी को इशारा किया, जो कि पीले रंग के कारण दिख गई थी।
कार में बैठने के बाद समझ आया कि ये मर्सिडीज है, हां पर टैक्सी थी। ड्राइवर ने गंतव्य पूछा, मुझे सीट बेल्ट बांधने के लिए कहा और एक्सीलेटर दबाया। अपने तीन दिन के अनुभव से मेरे दिमाग ने तुरंत ही गंतव्य तक के किराए का जोड़-घटाना शुरू कर दिया और यह सोचते हुए इसे चार से गुणा कर दिया कि मर्सिडीज का ड्राइवर ज्यादा चार्ज करेगा और पर्स में देखने लगा कि लीरा (स्थानीय तुर्की मुद्रा) कितनी है।
अचानक बारिश से सड़क सूनी थी। तुर्की में कुछ जंक्शंस की खूबसूरती ये है कि वहां दो सिग्नल्स होते हैं। दोनों एक ही समय पर येलो होते हैं। अगर ड्राइवर येलो होते ही किसी तरह पहला सिग्नल पार करने में कामयाब हो जाता है तो उसे दूसरे वाले के पहले रुकना ही होता है क्योंकि जब तक वह दूसरे सिग्नल तक पहुंचेगा, वह लाल हो जाएगा।
उस बिना गड्ढे वाली सड़क पर 100 किमी की गति से चल रही टैक्सी दूसरे सिग्नल पर अचानक रुक गई और इससे मुझे झटका लगा। 25 सालों से इस पेशे में होने के बावजूद ड्राइवर पीछे मुड़ा और ये कहकर माफी मांगी कि अगर वह लाल सिग्नल जंप कर देता, तो छह महीने के लिए लाइसेंस निरस्त हो जाता। मन ही मन मुझे अच्छा लगा कि एक चौथाई सदी के अनुभव के बाद भी उसे अधिकारियों का डर है कि वे सख्त सजा दे सकते हैं।
इस बुधवार की अपनी हालिया यात्रा में यह किस्सा तब याद आ गया, जब पता चला कि मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर सभी आरटीओ महज तीन महीने में गंभीर सड़क दुर्घटनाओं में 30% की कमी लाने में सफल रहे! यह सब संभव हो सका क्योंकि विभिन्न जिले, जहां-जहां से एक्सप्रेस-वे गुजरता है, वहां के सभी आरटीओ 1 दिसंबर 2022 को साथ आए और पूरे स्टाफ के साथ 24 घंटे का महाभियान चलाया, जहां सभी तरह के नियमों का उल्लंघन करने वाले, इनमें लेन तोड़ने वाले वाहनों के अलावा, गलत साइड ड्राइव करने वाले और बाकी अपराधों के अलावा अवैध पार्किंग वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की।
दिसंबर से फरवरी तक ऐसे महीने होते हैं, जब ज्यादातर गाड़ियां अनुकूल मौसम के कारण सड़कों पर होती हैं। साल 2021-22 के इन महीनों में इस एक्सप्रेस-वे पर 21 गंभीर हादसे हुए, इसमें 31 मौतें हुईं, वहीं 2022-23 के इसी समय में 14 हादसों में 14 मौतें हुईं।
आंकड़े खुद अपनी कहानी कह रहे हैं। सभी आरटीओ अधिकारी न सिर्फ पूरे एक्सप्रेस-वे पर गश्त करते हैं, बल्कि ब्लैक स्पॉट्स की पहचान करके दुर्घटना संभावित क्षेत्रों का अध्ययन करते हैं और वहां साइनेज रख देते हैं, इसके अलावा सीट बेल्ट नहीं पहनने वालों भी नजर रखते हैं।
जब मैंने गहराई से इन घटनाक्रमों का अध्ययन किया, तो समझ आया कि उन्हें बड़ी सफलता आवंटित लेन पर चलने वाले ट्रक चालकों पर भी कड़ी नजर रखने से मिली। यह अभियान और कड़ी चौकसी अगले तीन महीने तक जारी रहने की संभावना है।
अब मेरी चिंता ये है कि जब बारिश का मौसम आएगा तो क्या होगा? क्या अधिकारी तब भी उसी संख्याबल के साथ काम करेंगे या इन तीन महीनों के लिए कोई टेक्नोलॉजी फिक्स कर देंगे ताकि अनुशासन लाने में लगी उनकी छह महीने की मेहनत बेकार न हो जाए।
फंडा यह है कि अगर आप चाहते हैं कि आंकड़े खुद बोलें, तो जरूरत है दृढ़ता की, सभी अधिकारियों की सामूहिक शक्ति की, नियमों के कड़ाई से पालन की और सजा देने में भी उतनी ही सख्ती की भी।
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