‘हम भले ही अलग-अलग तरह से भोजन तैयार करते हों, लेकिन हमें ‘मास्टरशेफ’ ने एक कर दिया है।’ इस मंगलवार को सिडनी में भारतवंशियों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 75 साल पुराने क्रिकेट-सम्बंधों को याद किया, बल्कि योग, फिल्मों और मास्टरेशफ को भी अपनी बातों में शामिल किया, जिनके कारण दोनों देशों में नई नजदीकियां बन रही हैं।
मास्टरशेफ एक टीवी कार्यक्रम भर नहीं है, वह किसी व्यंजन में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों के बारे में हमारी जानकारी भी बढ़ाता है, जिससे दर्शक रसोई-कला की बारीकियां समझ पाते हैं। भोजन पर केंद्रित कार्यक्रमों ने लोगों को बताया है कि आप जो भोजन करते हैं, उसी से आपके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
आगामी रविवार, 28 मई को विश्व पोषण दिवस मनाया जाएगा। इससे मुझे याद आता है कि किस तरह से पश्चिमी-संस्कृति से प्रभावित मेरी पत्नी और बेटी को हमेशा मेरी मां से रसोई में हार का सामना करना पड़ता था, जिनके पास अनेक वर्षों तक इस बात की वीटो पॉवर थी कि आज भोजन में क्या पकेगा।
मैं ऐसे घर में बड़ा हुआ, जिसमें साल में 300 दिन सुबह के नाश्ते में इडली और डोसा बनता था, और मेरी पत्नी और बच्चे हमेशा कहते कि इसमें पोषक-तत्व नहीं हैं। लेकिन अंत में हमेशा मां की जीत होती। मां का तर्क था कि खमीरीकरण से आंतों की सेहत सुधरती है, भोजन अमिनो एसिड्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और डाइटरी फाइबर से समृद्ध होता है जो कि हमारे लिए बहुत जरूरी हैं, और इससे हमें विटामिन बी, जिंक, आइरन जैसे पोषक-तत्व मिलते हैं। 1990 के दशक में मां हर भोजन-सामग्री की एक न्यूट्रिशन लिस्ट बनाया करती थीं।
जब वे मल्टीग्रेन डोसा बनातीं तो कहतीं, तुम मॉडर्न लोग भले ही चावल में मौजूद कार्बोहाइड्रेट्स को हिकारत की नजर से देखो, लेकिन तुम मूंग दाल की अनदेखी नहीं कर सकते, जो कि लो-फैट और हाई-प्रोटीन होती है। उनके मुताबिक मल्टीग्रेन डोसा में फोलेट, बी6, आयरन, मैग्नेशियम और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं। चने और ताजे नारियल से बनाई जाने वाली चटनी न केवल प्रोटीन से भरपूर होती है, बल्कि उसमें डाइटरी फाइबर भी होता है और उसका ग्लायसेमिक इंडेक्स कम होता है।
इसका यह मतलब है कि वह धीरे-धीरे एनर्जी रिलीज करती है, जिससे ब्लड शुगर नियंत्रित रहती है। वे हमें बताती थीं कि चावल में चना, उड़द, मेथी, बाजरा, ज्वार आदि मिलाने से कैसे वह बढ़ते बच्चों के लिए पोषक बन जाता है।
आधुनिक शेफ्स द्वारा डेली शो में विभिन्न प्रकार के डोसा सम्मिलित करने से बहुत पहले ही मां कम से कम 20 से 24 प्रकार के डोसे और इडली बनाया करती थीं। बाजरा, राजमा, सहजन, सफेद और पीले कद्दू हमारे साम्भर का नियमित हिस्सा हुआ करते थे और सब्जी में चुकंदर और कटहल जैसी वैरायटियां होती थीं। पीले कद्दू और कटहल के बीज ईवनिंग-स्नैक्स का हिस्सा हाेते थे।
मूंग दाल से बनाई जाने वाली मुंगोड़ी यूपी में लोकप्रिय है, उड़द दाल से बनने वाली सिंधीवाड़ी सिंधियों में प्रसिद्ध है, दक्षिण भारत में मानसून के दौरान चना दाल से परप्पुवडा बनाया जाता है जब ताजा सब्जियां मिलना कठिन होता है। रसोई के पीछे मां का यह विचार होता था कि हर भोजन पोषक होना चाहिए।
फंडा यह है कि आंतों को हमारे शरीर का दूसरा दिमाग कहा जाता है और उस अंग को स्वस्थ व सक्रिय बनाए रखना जरूरी है। ऐसा हम तभी कर सकेंगे, जब दिन में कम से एक ‘स्टैंड-आउट मील’ लें। विश्व पोषण दिवस से ही इस आदत को अपना लें।
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