मैं दावे से कहता हूं कि ज्यादातर बुजुर्गों ने, खासकर पुरुषों ने शीशे में देखना कम कर दिया होगा। मैं स्वीकारता हूं कि मैंने ऐसा करना शुरू कर दिया है क्योंकि मैं शीशे में दिखने वाले आदमी को देखना पसंद नहीं करता। वह बिन बुलाए प्रकट हो जाता है और चौबीसों घंटे मेरे घर में रहता है। जब मैंने उससे पूछा, तुम कौन हो, तो मुझे देख ऐसे मुस्कराया, मानो कह रहा हो, जैसे तुम मुझे जानते नहीं! मेरा 100% यकीन है कि वह मुझ जैसा दिखता है पर वो मैं नहीं हूं।
मेरे अंदर कुछ ऐसा है जो अस्थिर है, जो ये मानने से इंकार कर देता है कि मैं बुजुर्ग होती आबादी का हिस्सा बन रहा हूं, जलवायु परिवर्तन के बाद ये दूसरा ऐसा मुद्दा है, जिससे वैश्विक समुदाय डील करना चाहता है। मेेरे दिमाग में विचारों की उथलपुथल चल रही थी कि तभी मैं मुुंबई मैराथन देखने गया।
रविवार की सुबह 13.8 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ सीजन की सबसे सर्द सुबह थी और मैं उन 1423 वरिष्ठ नागरिकों के साथ खड़ा था, जो मैराथन में आगे बढ़ते, गुनगुनाते-जोश में चिल्लाते अन्य 55 हजार धावकों की ऊर्जा के साथ बढ़ रहे थे। जब मैंने 91 साल के यशवंत ठाकरे को देखा तो खुद को काफी यंग महसूस किया, वह मुंबई से 130 किमी दूर पनवेल से यात्रा करके सुबह-सुबह इसमें हिस्सा लेने आए थे।
वहां साड़ी पहने 80 वर्षीय दो बच्चों की मां भी थी, जो नीले स्नीकर्स पहने दौड़ पूरी करने तेजी से चल रही थी। वहां 70, 75, 78 की उम्र के लोग थे, जिन्होंने एक लाइन में कहा, ‘उम्र सिर्फ एक संख्या है।’ वे न सिर्फ दौड़ का हिस्सा थे बल्कि अपने वर्ग की दौड़ पूरी करने के बाद नृत्य से मनोरंजन भी किया। यह उल्लास इन वरिष्ठ नागरिकों ने पैदा किया था।
एक अन्य उदाहरण देखते हैं। राउरकेला में बिरसा मुंडा इंटरनेशनल हॉकी स्टेडियम को सब जानते हैं, हाल ही में इसका उद्घाटन हुआ। वो इसलिए क्योंकि यहां 20 हजार लोगों के बैठने की क्षमता है और इस लिहाज से ये दुनिया का सबसे बड़ा हॉकी स्टेडियम है। पर कुछ ही लोग 71 वर्षीय हॉकी कोच डोमिनिक टोप्पो को जानते होंगे, राउरकेला के पास कुकाड़ा गांव के टोप्पो हर सुबह 6.30 बजे मैदान पहुंच जाते और अलग-अलग उम्र के खिलाड़ियों की खेल टेक्नीक ठीक करने के बाद शाम 5.30 के बाद जाते।
वह 22 सालों से ये कर रहे हैं और कहते हैं, यही करते दुनिया से विदा लेंगे। दो दशकों में वह 100 से ज्यादा राज्य स्तरीय खिलाड़ी तैयार कर चुके हैं। टोप्पो की हॉकी फैक्ट्री आधुनिक दौर से अलग है। उनकी देशी में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का सिर से पैर तक अवलोकन करके सीखते हैं। कई बार तो उनके पास खाने के 15 रु. भी नहीं होते, साधारण फोन है। हॉकी की अलख जगाए रखने उन्होंने सालों पहले 60 हजार रु. में 12 एकड़ जमीन गिरवी रखी थी, जो अब गंवा दी है। पर हॉकी में योगदान अमूल्य है।
अगर डोमिनिक जैसे लोग खेल के इकोसिस्टम के लिए जरूरी हैं तो आप और मुझ जैसे लोग बाकी दूसरे इकोसिस्टम जैसे मेडिसिन, इंजीनियरिंग या बाकी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण क्यों नहीं हो सकते, जहां हमने जवानी के 40 साल दिए या मौलिक ज्ञान को बढ़ाने जैसा एक साधारण क्षेत्र भी। जब भी शीशा आपको उम्र दिखाए, तो उस शख्स को पहचानने से इंकार कर दीजिए, बाहर जाइए और बुजुर्गों से प्रेरणा लेते हुए महसूस करिए कि भीतर का बच्चा अभी भी उम्र से परे है।
फंडा यह है कि जब हम कुछ चुने हुए क्षेत्रों में देश के लिए योगदान देने का निर्णय लेते हैं तो हम जॉर्ज बर्न्स का एक उद्धरण सच बना देंगे, जिन्होंने कहा था कि ‘आप बूढ़े होने में कुछ नहीं कर सकते पर आपको बूढ़ा होने की ज़रूरत नहीं है।’
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