न्यूजीलैंड की सबसे कम उम्र की महिला प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न के पास पद भी था और शक्ति भी। वो बहुत लोकप्रिय रहीं और पूरी दुनिया में अपने काम से जानी गईं।
उनकी कुछ प्रभावशाली उपलब्धियों में बाल गरीबी के आंकड़ों को बदलने की जिजीविषा, श्रमिकों के वेतन और स्थितियों में सुधार करने से लेकर राष्ट्रीय पहचान के मुद्दों पर साहस से लिए गए फैसले सभी को याद हैं। जेसिंडा ने दो हफ्ते पहले आश्चर्यजनक रूप से इस्तीफा दे दिया। उनके अनुसार पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें पुकार रही थीं।
राजनीति में ऐसे फैसलों की आदत इस दुनिया को नहीं है। सत्ता यानी सबकुछ। इन दिनों दुनियाभर में प्रजातंत्र के हाल हम देख ही रहे हैं। ब्राजील से लेकर इजरायल तक सत्तासीन लोगों के खिलाफ लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में यह इस्तीफा बहुत कुछ कहता है।
उनके इस फैसले ने आज के समाज में सत्ता, जिम्मेदारी, परिवार, पुरुष और स्त्री के इर्द-गिर्द एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। जिस समाज में स्त्रियां अपनी मंजिल की तलाश में घर-बार या परिवार से भी दूर चली जाती हैं, ऐसे में यह फैसला नज़ीर है।
एक तरफ दुनियाभर की स्त्रियों के लिए उन्होंने नैतिक नेतृत्व का दुर्लभ उदाहरण रखा तो दूसरी ओर फैसला यह भी बताता है कि एक स्त्री के लिए उसका परिवार बहुत महत्वपूर्ण होता है। इंदिरा नूयी की कहानी कौन भूल सकता है भला! जब उनके बच्चे ने पत्र लिखकर यह मैसेज लिखा कि अगर उसकी प्यारी मां घर आ जाएंंगी तो वह उनको और ज्यादा प्यार करेगा।
राजनेता भी इंसान हैं और वह लोगों से मूल्यपरक दृष्टि चाहते हैं। मुझे लगता है कि यह समझ दुनिया में सभी नागरिकों को भी होनी चाहिए। यह माना गया कि ‘बड़ी शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी भी आती है!’ स्पाइडर-मैन फिल्म का यह संवाद काफी लोकप्रिय रहा है। जेसिंडा ने प्रधानमंत्री रहते हुए यह दिखा दिया और कुर्सी पर रहने और छोड़ने का फैसला उन्होंने जिम्मेदारी से लिया।
हार्वर्ड के मनोवैज्ञानिक कैरल गिलिगन का मानना है कि नैतिक दृष्टिकोण में अंतर जेंडर से भी संबंधित होता है- यानी, पुरुष और महिलाएं अपने जीवन में नैतिक विकास के अलग-अलग, लेकिन समानांतर रास्तों का पालन करते हैं। ये रास्ते उन्हें विभिन्न मानदंडों के आधार पर अपनी नैतिक पसंद बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।
गिलिगन के अनुसार जब निर्णय लेने की बात आती है तो कुछ लोग न्याय, समानता, निष्पक्षता और अधिकारों के सिद्धांतों पर नैतिक निर्णय लेते हैं। यह न्यायपरक दृष्टिकोण है। लेकिन अन्य लोग अपने निर्णयों में ‘केयर या देखभाल’ को तरजीह देते हैं। जेसिंडा अर्डर्न ने भी उस ‘केयर’ को अपने नैतिक फैसले का साधन और साध्य बना दिया। और दुनिया को बहुत आसानी से समझा पाईं कि जीवन सिर्फ पाना ही नहीं होता।
अगर किसी का चरित्र पहचानना है तो उसे पद या शक्ति दे दीजिए। पर सत्ता के बावजूद लिए गए नैतिक फैसले सच्ची लीडरशिप बताते हैं और सच्ची लीडरशिप कहती है कि जीवन का मतलब सिर्फ पाना ही नहीं होता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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