आत्मा का धर्म है शांति, प्यार, सद्भावना और निडरता। इस समय हमें अपने धर्म पर टिकना है। यानी बाहर परिस्थिति हमारे अनुकूल नहीं है, लेकिन आत्मा को अपने स्वधर्म पर टिकना है। स्वधर्म मतलब निडर, शक्तिशाली, शांत, भविष्य के लिए असुुरक्षा नहीं। आपस में सद्भावना और प्यार, ये हमारा धर्म है। ये समय की पुकार है।
आत्मा के धर्म में जीने के लिए आज एक समीकरण पक्का करना है। हमारे मन की स्थिति परिस्थिति पर निर्भर नहीं होती है। ये एक बहुत बड़ी गलतफहमी है, जिसमें हम वर्षों से जी रहे थे। वैश्विक महामारी से पहले भी हमारे जीवन में ऐसी स्थिति थी कि हम कहते थे, ‘मुझे चिंता हो रही है क्योंकि ऊंगली कहीं बाहर जाती थी, किसी परिस्थिति या व्यक्ति के ऊपर। मुझे अच्छा नहीं लग रहा है क्योंकि...?’ हमने समझा कि आत्मा के संस्कार, संकल्प, सोच और भावनाएं हैं, वो परिस्थिति और व्यक्ति के व्यवहार पर निर्भर है।
फिर कोविड वाली परिस्थिति पुनः आ गई। जैसे ही ये परिस्थिति आई, तो सारे विश्व ने मिलकर कहा, डरना और चिंता तो नॉर्मल है, स्वाभाविक है। ऐसा सारा विश्व कह रहा है। अब आप एक मिनट के लिए उस दृश्य को देखें, जिसमें करोड़ों लोग इकट्ठे होकर कह रहे हैं इस समय डर और चिंता होना स्वाभाविक है। तो सोचिए इस समय सृष्टि की क्या स्थिति होगी। सृष्टि की तरंगें क्या होनी चाहिए और हो क्या हो चुकी हैं। जबकि सृष्टि को इस समय शांति और शक्ति की ऊर्जा की जरूरत है।
बीमारी खत्म करने के लिए मन की स्थिति कैसी होनी चाहिए? किसी भी बीमारी में डॉक्टर हमेशा यही कहता है, निश्चिंत रहो, हम अपना काम कर रहे हैं। इसी तरह इस समय सृष्टि पर एक बीमारी आई है तो सृष्टि के मन को शांत रहना चाहिए। सृष्टि का मन मतलब हम सबका मन। हमें अपने लिए एक बात पक्की कर लेनी है, जो हमेशा लाभदायक होगी। यहीं एक शब्द आता है- आत्मनिर्भर। हमारे मन की स्थिति, हमारी सोच परिस्थिति पर आधारित नहीं होती है। इसीलिए एक ही परिस्थिति में चार लोग अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं।
मान लें कि आपके घर में कोई समस्या आती है तो घर का पहला सदस्य कहता है इतनी बड़ी बात समस्या आई है, दूसरा कहता है हां बात तो बड़ी है, तीसरा कहता है छोटी-सी बात है, चौथा कहता है ये तो होता रहता है। एक ही परिस्थिति में चार लोग अलग-अलग तरह से सोचते हैं, क्योंकि उनकी सोच परिस्थिति पर आधारित नहीं होती है बल्कि उनके अपने संस्कारों, अपने मन की स्थिति पर आधारित होती है।
जीवन में अगर ये समीकरण पक्का कर लिया तो हम अपनी भाषा बदलेंगे। हम ये नहीं सोचेंगे और कहेंगे कि बात ऐसी है, तो डर लगेगा ही। हम कहेंगे कि बात बड़ी है इसलिए निडर और शांत रहना हमारी जिम्मेदारी है। अगर सबने अपने मन का ध्यान रख लिया तो परिस्थिति का सामना करना आसान हो जाएगा।
अगर देखा जाए तो सृष्टि पर होने वाली हर चीज के जिम्मेदार हम ही होते हैं। हर कर्म का परिणाम तो होता ही है। लेकिन ये न सोचें कि हमने क्या कर्म किया था, जिसकी वजह से ऐसा हुआ। ये सोचें कि अब हमारा कर्म कैसा हो। अगर हम अपने निजी जीवन में भी देखें तो हमारे जीवन में परिस्थितियां आती हैं, किसी को व्यापार या नौकरी में, किसी को स्वास्थ्य में, रिश्तों में कुछ हो सकता है। ये सब जो बातें आती हैं, ये हमारे कर्म का परिणाम ही होती हैं। लेकिन अब हम इसका कुछ नहीं कर सकते हैं। लेकिन अब हम जैसा सोचेंगे, जैसा बोलेंगे और जो कर्म करेंगे ये हमारा वर्तमान का कर्म होगा।
हमारा वर्तमान का कर्म हमारा वर्तमान और भविष्य के भाग्य का निर्माण करता है। हमने क्या किया था, जिसकी वजह से ये हुआ। इसको सोचना हमारे लिए यह बहुत अच्छी सोच नहीं होगी। जरूरी ये है कि अब हमें क्या करना है, यानी अब क्या कर्म करना है, अब कितनी सेवा करनी है, अब कैसे एक-दूसरे को सहयोग देना है। अब कैसे एक-दूसरे के मन का ध्यान रखकर अपने वर्तमान कर्म को इतना श्रेष्ठ बनाना है कि हम अपने लिए, देश के लिए, सृष्टि के लिए बहुत सुंदर भाग्य का निर्माण कर सकेंं। अतीत के कर्म तो हो चुके हैं, अब उसके लिए कुछ नहीं कर सकते, लेकिन वर्तमान कर्म पूर्ण रीति से हमारे हाथ में हैं। जिस पर हम जैसा चाहे वैसा भविष्य बना सकते हैं।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.