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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:सोते-जागते सांस के प्रति होशपूर्ण हो जाइए, फिर दुनिया में आपको कोई अशांत नहीं कर सकता

3 महीने पहले
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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar
पं. विजयशंकर मेहता

हम कोई भी काम करते हैं, उसमें सफलता की चाहत होती है। सफलता मिलते ही हम घमंड से भर जाते हैं। असफलता में उदासी में घिर जाते हैं। इन दोनों से बचने के लिए सांस पर काम किया जाना चाहिए। जब हम सांस से जुड़ते हैं तो यह हमारी आसक्ति पर नियंत्रण करती है और हमारे भीतर निष्काम भाव पैदा करती है।

हम चौबीस घंटे में 21600 सांस लेते हैं। थोड़ा पीछे चलें तो बारह घंटे में 10800, एक घंटे में 900 और एक मिनट में 15 सांस। यह आंकड़ा जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह सांस हमारे शरीर का संचालन कर रही है। अब इस 21600 के आंकड़े को आप अपनी सुविधा से सांस की जागरूकता बनाकर चलें।

भले ही एक मिनट की 15 सांस में जागें या एक घंटे की 900 सांस में, पर जागिए जरूर। इसलिए सोते-जागते सांस के प्रति होशपूर्ण हो जाइए। फिर दुनिया में आपको कोई अशांत नहीं कर सकता।