काम तो बहुत हैं लेकिन करने वाले नहीं हैं। हमारे देश में इस समय ऐसा ही दृश्य दिख रहा है। खबरों के सैलाब में पिछले दिनों तीन समाचार बह गए। उन्हें ध्यान से देखिएगा। एक समाचार रोबोट का था। आने वाले वक्त में रोबोट संस्कृति हावी हो जाएगी। दूसरी बात है कि आने वाले समय में भारत टेली-फैक्ट्री बन जाएगा। यहां बहुत योग्य लोग होंगे।
तीसरी दुखदायी खबर है एक इलेक्ट्रॉनिक सामान के ठीक होने में देर हुई तो सामान के मालिक ने टेक्नीशियन को गोली मार दी। यह जघन्य अपराध है। ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन इन तीनों खबरों के पीछे के दृश्य पर सोचने का समय आ गया। मनुष्य को सावधान रहने की जरूरत है। रोबोट और टेली-फैक्ट्री में जो लोग तैयार हो रहे हैं उनके भीतर की मनुष्यता भी बचाना है। ये गोली इसलिए चली कि अचानक लोग अब चर्चा करने लग गए हैं कि काम करने वाले मिलते नहीं हैं और जो कर रहे हैं वो निकम्मेपन, कामचोरी में डूबे हुए हैं।
अब तो इन दो बातों को भी दक्षता मान लिया गया है। हम सब मशीन की तरह होते जा रहे हैं। खुद को जानने की बात ही खत्म हो गई है। इसलिए बिना अध्यात्म पर टिके हुए कोई खुद को जान नहीं पाएगा और हम स्वयं क्या हैं, अगर हमने अपनी आत्मा स्पर्श नहीं की तो बाहर ऐसे ही दृश्य देखने को मिलेंगे। कामकाज कम होंगे, हिंसा ज्यादा होगी।
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